आधे शहर को पता ही नहीं कि सफाई क्या चीज है
मेरठ (ब्यूरो)। स्वच्छता सर्वेक्षण का असर केवल शहर के कुछ वीआइ्रपी वार्ड या क्षेत्रों तक ही सीमित है। मगर शहर का असल चेहरा देखना है तो पुराने शहर की सैर करें। जाम पड़ी नालियां, कूड़े से अटी पड़ी गलियां, जगह-जगह फैली गंदगी, नालों में गंदे पानी का जमाव, जलभराव से जूझते इलाके, चोक पड़ी सीवर लाइन, खराब स्ट्रीट लाइट और जर्जर सड़केंबस यही नजर आता है। ऐसा आखिर क्यों है यही जानने के लिए दैनिक जागरण आईनेक्स्ट सात दिन का एक अभियान शुरू कर रहा है। अभियान का उद्देश्य नगर निगम की उन कमियों को उजागर करने का है, जिनके चलते शहर की करीब 60 प्रतिशत आबादी स्वच्छता सर्वेक्षण से दूर है।
नहीं सुधर रहे हालात
स्वच्छता सर्वेक्षण 2022 में मेरठ ने 12 नंबर की छलांग लगाई है। 2021 में मेरठ देश के दस लाख से अधिक आबादी वाले 47 शहरों की सूची में 27वें स्थान पर था। जबकि इस बार 15वें स्थान पर रहा। वहीं इस रैंकिंग सूची में 10 लाख से अधिक आबादी वाले प्रदेश के सात शहरों में मेरठ नगर निगम को दूसरा स्थान मिला है। लेकिन शहर के अधिकतर इलाकों में गंदगी और नालों की हालत जस की तस है।
एक नजर में
नगर निगम को इस साल जीएफसी (गार्बेज फ्री सिटी) वन स्टार और ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) प्लस प्लस प्रमाण पत्र मिला है लेकिन शौचालयों पर लगा ताला और जगह-जगह कूड़ा इस प्रमाण पत्र पर सवाल उठाता है।
इनका है कहना
स्वच्छता सर्वेक्षण महज खानापूर्ति तक सीमित रहता है। शहर में कहीं स्वच्छता सर्वेक्षण का असर पूरे साल नहीं दिखाई देता है।
रविन्द्र
सुभाष सर्वेक्षण में हर साल शहर की रैंकिंग सुधर रही है। यह शहर के लिए अच्छी बात है लेकिन धरातल पर भी इसका कुछ असर दिखाई देना चाहिए।
घनश्याम शहर के नाले गंदगी से अटे हुए हैं। जगह-जगह कूड़े के ढेर लगे हुए हैं। आवारा पशु सड़कों पर मंडरा रहे हैं। कैसे कह सकते हैं कि हम अच्छी स्थिति में हैं।
विनोद शर्मा स्वच्छता सर्वेक्षण के अलावा भी पूरे साल शहर में लगातार सफाई अभियान नियमित रूप से चलाया जाता है। शहर की आबादी के हिसाब से कुछ वार्डों में सफाई कर्मचारी की संख्या कम है। जिस कारण से रेगुलर सफाई नहीं हो पाती है। लेकिन नियमित रूप से डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन समेत सफाई की जा रही है। जहां कमी है वहां संरक्षण कर गंदगी को दूर किया जाएगा।
हरपाल सिंह, प्रभारी नगर स्वास्थ्य अधिकारी