बसानी तो थी ग्रीन बेल्ट, लेकिन कंक्रीट के जंगल बस गए
मेरठ (ब्यूरो)। शहर में हर साल हरियाली को बढ़ाने के लिए बड़े स्तर पर पौधरोपण अभियान चलाया जाता है। वन विभाग से लेकर जनप्रतिनिधि तक पौधरोपण के दौरान फोटो सेशन कराते हैं। बावजूद इसके, हरा-भरा शहर बनाने की योजना महज कागजों में सिमट जाती है। यही नहीं, हरियाली की जगह पर कंक्रीट के जंगल बन गए हैं। बड़ी-बड़ी इमारतें बन गई हैं। वैसे तो सर्वे आफ इंडिया (एफएसआई) के मुताबिक जिले में 33 प्रतिशत हिस्से में हरियाली होनी चाहिए। पर हकीकत यह है कि महज 2.67 प्रतिशत क्षेत्र पर ही हरियाली है। यानि आंकड़े गवाह है कि हरा-भरा शहर बनाने के दावे कितने सार्थक हैं।
सिर्फ ट्री गार्ड ही बचे
पौधरोपण अभियान की दूसरी हकीकत यह भी है कि शहर में तेजी से बढ़ रहे क्रंक्रीट के जंगलों के बीच हरियाली गुम हो रही है। शहर में जगह ही नहीं है, इसलिए शहर के बाहर ही करीब 70 फीसदी पौधरोपण किया जाता है। यानि शहर के अंदर सिर्फ इमारतें ही चमकती दमकती है। असर यह है कि शहर की आबोहवा हर साल दूषित हो रही है। शहर के पार्कों में भी नाम मात्र के पेड़-पौधे बचे हैं।
गुम हो गई हरियाली
गौरतलब है कि हर साल बढ़ रहे पौधारोपण से जनपद में ट्री कवर (पेड़ों का आवरण) जरूर बढ़ा है। लेकिन इस ट्री कवर का दायरा शहर के अंदर पुराने शहर की गलियों और बाजारों से ज्यादा शहर के बाहर खाली मैदान पर अधिक बढ़ रहा है। इसका नतीजा है कि शहर के अंदर हरियाली के स्थान पर अतिक्रमण और जाम है। शहर के अधिकतर सभी पुराने मोहल्ले और बाजारों में हरियाली सिर्फ गमलों और पौधों तक ही सीमित है। शहर के अंदर सड़क के बीच डिवाइडर और सड़क किनारे तक से पौधारोपण के दौरान रोपे गए पौधे गायब हो चुके हैं। हरियाली की तलाश में लोगों के लिए के लिए केवल पार्कों का विकल्प ही बचा हुआ है जो कि तेजी से सिमटते जा रहे हैं।
बढ़ रहा प्रदूषण का स्तर
पौधारोपण की कमी के चलते शहर में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। सर्दियों के चार महीने शहर स्मॉग की चादर ओढ़े रहता हे। हर साल नवंबर से लेकर फरवरी माह तक शहर के एक्यूआई 400 के करीब खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है। इस साल जनवरी माह में 6, 8 और 10 जनवरी का एक्यूआई 379 से 381 तक रहा था। जबकि फरवरी माह में 20 फरवरी को एक्यूआई 388 तक पहुंच गया था। हालांकि जून जुलाई में मानसून के आगमन के साथ शहर का प्रदूषण स्तर सुधरना शुरू हो जाता है लेकिन हरियाली की कमी के चलते मानसून के बाद जनपद प्रदूषण से जूझता है।
भूमिया पुल, खत्ता रोड, कमेला पुलिया क्षेत्र
ऊंचा सदीदक नगर, समर गार्डन, मदीना कालोनी
वैली बाजार, सर्राफा बाजार, खैरनगर, लाला का बाजार
मोदी पाड़ा, सुभाषनगर, बुढ़ाना गेट
जली कोठी, सोतीगंज, घंटाघर
हापुड अड्डा, गोलाकुंआ
सोतीगंज, थापरनगर
जयदेवीनगर, कैलाशपुरी, फूलबाग, नेहरूनगर
मोहनपुरी, विजयनगर ग्रीन बेल्ट भी वीरान हुई
वैसे तो मोहल्लों में हरियाली बढ़ाने और खूबसूरत बनाने के लिए ग्रीन बेल्ट बनाई गई थी। माधवपुरम में बकायदा मुख्य रोड पर ग्रीन बेल्ट डेवलप की गई, लेकिन अब वह अतिक्रमण, कूड़ा घर और जलभराव से जूझ रही है। जगह-जगह गंदगी, जलभराव ने पूरी ग्रीन बेल्ट खराब कर दी है। शास्त्रीनगर एल ब्लॉक से पीवीएस मॉल होते हुए तेजगढी तक ग्रीन बेल्ट पर जगह जगह कब्जा व अतिक्रमण हो चुका है। दिल्ली रोड पर रैपिड रेल काम के चलते ग्रीन बेल्ट डिस्टर्ब है।
पौधारोपण के लिए लगातार नई जगहों की तलाश कर हरियाली का दायरा बढ़ाया जा रहा है। कई नई साइटें तलाशी गई हैं। लेकिन शहर के अंदर जगह की कमी है जिसके विकल्प के तौर पर शहर की सड़कों पर डिवाइडर, चौराहों के बीच के स्थान पर, पार्क, स्कूल कालेज के मैदान, स्पोटर्स ग्राउंड, सरकारी कार्यालयों के परिसरों में पौधारोपण को बढ़ाया जा रहा है।
राजेश कुमार, डीएफओ