लोभ पाप का बाप और तृष्णा मां है : ज्ञानानंद महाराज
मेरठ ब्यूरो। लोभ हमारे जीवन में पाप उत्पन्न करता है। इसलिए इसे पाप का बाप कहा जाता है। हमारे जीवन में लोभ होने से पाप बढ़ रहे हैं। यह बात ज्ञानानंद महाराज ने प्रवचन के दौरान कही। असोड़ा हाउस स्थित जैन मंदिर में सुबह पहले अभिषेक और शांतिधारा हुई। इसमें सौधर्म इंद्र बनने का सौभाग्य श्वेतांक जैन सोनिया जैन परिवार को मिला। इसके बाद पूजन विधान संपन्न किया गया। पाप कर्म से दूर रहें
मुनिश्री ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि लोभ पाप का बाप और तृष्णा पाप की मां है। इसलिए इन दोनों से ही हमें बचने की आवश्यकता है। बुरा काम करने से आत्मा पतन की ओर चली जाती है। पाप करने वाले व्यक्ति को त्रयंच गति यानि जलचर, थलचर और नभचर में जाना पड़ता है। किसी जीव की हिंसा करना, झूठ बोलना, चोरी करना पाप कहलाता है। कुशील पाप को बताया उन्होंने कहाकि हिंसा के बारे में सोचना भी पाप है। लंकापति रावण ने भी माता सीता का हरण किया था। ऐसे पाप को कुशील पाप कहा जाता है। जब हम आवश्यकता से ज्यादा वस्तुओं व धन का संग्रह करते है तो परिग्रह पाप कहलाता है। परिग्रह पाप सबसे बड़ा पाप है। धर्म का रास्ता अपनाएं नवीन मुनि महाराज ने कहा कि व्यक्ति पापों से बचने के लिए धर्म के रास्ते को अपनाता है। पुण्य करने वाला व्यक्ति देव लोक में जाता है,शरीर और जीव एक है। श्रद्धालुओं ने महाराज के मीठे वचन सुने एवं महाराज ने प्रश्नोत्तरी कराई गई। जिसमें सभी विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। मंदिर परिसर में विनोद जैन, विपिन जैन, रचित जैन विपुल जैन राजपियूष जैन संजय जैन मनीषा नीना सौम्या दीपाली आदि उपस्थित रहे।