परिवहन विभाग के आंकड़ों में जनपद में 15687 ऑटो व ई-रिक्शा दर्ज हैं. इनमें से 4091 ई-रिक्शा रजिस्टर्ड हैं. जबकि 10526 पैसेंजर थ्री व्हीलर और 1070 गुड्स थ्री व्हीलर का रिकॉर्ड विभाग के पास है. विभाग से 660 ऑटो रिक्शा को सिटी सेंटर के लिए परमिशन मिली हुई है.

मेरठ (ब्यूरो). एकबारगी किसी को भी ऐसा लग सकता है कि इस हादसे का विलेन ऑटो वाला है। लेकिन घटना की तह में जाएंगे तो पता चलेगा कि दोषी और भी हैं। जैसे कि परिवहन विभाग, ट्रैफिक पुलिस, प्रशासन आदि। ऑटो स्कूल वाहन के तौर पर इस्तेमाल नहीं हो सकता, लेकिन हो रहा था। कुल-मिलाकर हर स्तर पर जिस तरह कायदे-कानून की अनदेखी की गई, कभी न कभी अनहोनी तो होनी ही थी। दरअसल, मंगलवार को पुलिस, प्रशासन और परिवहन विभाग की लापरवाही और अनदेखी के चलते एक स्कूली छात्र की जान चली गई।

परमिट से तीन गुना ऑटो
परिवहन विभाग के आंकडों पर नजर डालें तो जनपद की सड़कों पर चलने के लिए मात्र 15687 ऑटो व ई-रिक्शा रजिस्टर्ड हैं। इनमें से भी मात्र 2957 आटो रिक्शा शहर के लिए स्वीकृत हैं। जबकि 10 हजार से अधिक ऑटो रिक्शा शहर की सड़कों पर दौड़ रहे हैं। जबकि शहर के अंदर के लिए मात्र 660 ऑटो रिक्शा पंजीकृत हैं। पूरे जनपद बात करें तो लगभग 10526 पैसेंजर थ्री व्हीलर और 1070 गुड्स थ्री व्हीलर ही विभाग में पंजीकृत हैं। जबकि अकेले लिसाड़ीगेट, गोला कुंआ, भूमियापुल, बागपत रोड, दिल्ली रोड पर ही 30 हजार से अधिक अवैध ऑटो रिक्शा संचालित हो रहे हैं।

मानकों के विपरीत
परिवहन विभाग की मानें तो ऑटो रिक्शा को सवारी ढोने के मानकों के हिसाब से परमिट दिया जाता है। इसमें स्कूली बच्चों की सुरक्षा के लिए कोई अलग से व्यवस्था नहीं होती है। स्कूली बच्चों को लाने व ले जाने के लिए ऑटो रिक्शा में खुद ही रिक्शा चालक बदलाव करा लेता है जो कि मानकों के विपरीत है।

हादसों का सबबा बन रही लापरवाही
1. क्षमता से अधिक बच्चे ऑटो रिक्शा में बैठाना।
2. ऑटो रिक्शा के फ्रंट शीशे के सामने बैग लादना।
3. ऑटो के पीछे खुली सीट पर बच्चों को बैठाना।
4. ऑटो में ड्राइवर सीट के दोनों तरफ बच्चों को बैठाना।
5. सीट बेल्ट जैसा कोई विकल्प ऑटो में न होना।
6. सीएनजी ऑटो में फायर सिस्टम न होना।

कलर कोड व्यवस्था धड़ाम
शहर के अंदर जाम की व्यवस्था निपटने के लिए कुल साल पहले ऑटो पर कलर कोड की व्यवस्था बनाई गई थी। इसमें गढ़ रोड, बेगमपुल रोड, आबूलेन आदि इलाकों में ऑटो व ई-रिक्शा प्रतिबंधित था। बाकि सड़कों पर संचालन के लिए भी ऑटो रिक्शा के लिए कलर कोड जैसे देहात के ऑटो के लिए मेडिकल कॉलेज तक पीला रंग, शहर में हापुड अड्डे से अंदर संचालन के लिए सफेद रंग को लागू किया गया था। मगर आज यह व्यवस्था धड़ाम हो चुकी है। शहर की सड़कों पर 10 साल से पुराने डीजल ऑटो फर्राटा मार रहे हैं।

बिना पीयूसी दौड़ रहे ऑटो
वहीं अगर पीयूसी यानि पॉल्यूशन जांच की बात करें तो आरटीओ के पास अभी ऐसे ऑटो रिक्शा का रिकार्ड नहीं है। जो पीयूसी लेकर चलते हैं। सिर्फ फिटनेस के लिए आने वाले नए ऑटो रिक्शा का पीयूसी देखकर उसे फिट कर दिया जाता है। वहीं सीएनजी ऑटो की संख्या शहर में काफी बढ़ गई है। मगर इनकी आड़ में डीजल ऑटो रिक्शा फर्राटा भर रहे हैं।

कोट्स
कम से कम स्कूली बच्चों को लाने ले जाने के लिए ही ऑटो का संचालन रोक दिया जाए। इससे काफी हद तक बच्चे सुरक्षित रहेंगे।
देव

यातायात पुलिस की मिलीभगत से अवैध ऑटो और ई-रिक्शा सड़कों पर दौड़ रहे हैं। उनकी नजर के सामने ही चौराहों से सवारियां बैठाने के लिए जाम लगा दिया जाता है।
मनीष जैन

अवैध ऑटो और ई-रिक्शा सड़कों पर दौड़ रहे हैं। साथ ही ड्राइवर ऑटो रिक्शा की रेस लगाते हैं, जिससे दुर्घटना की संभावना बनी रहती है।
दीपक वर्मा

वर्जन
ऑटो रिक्शा को ओवरलोड करके चलाया जाता है। इससे हादसों की संभावना बढ़ जाती है। जिन ऑटो को परमिट नहीं है, उन पर समय-समय पर कार्रवाई की जाती रही है।
सुधीर कुमार, एआरटीओ प्रवर्तन

Posted By: Inextlive