Meerut News : फार्मूला मिल्क का बड़ा सहारा है
मेरठ (ब्यूरो)। शहरीकरण, महिलाओं का वर्किंग कल्चर, सिजेरियन डिलीवरी, मिलावटी खानपान ने नवजात शिशुओं से अमृत छीन लिया है। मां के दूध की बजाए अब जन्म लेते ही बच्चों को डिब्बे यानी बेबी फार्मूला मिल्क पाउडर परोसा जा रहा है। इससे न केवल बच्चों का विकास प्रभावित हो रहा है बल्कि बच्चों में एग्रेशन, जिद, चिढ़चिढ़ापन भी खूब बढ़ रहा है। एक्सपट्र्स बताते हैं कि ये स्थिति काफी चिंताजनक है। मदर-चाइल्ड बांड न होने की वजह से बच्चों में इमोशनल डिसबैलेंस को देखने को मिल रहा है।
डॉक्टर्स लिख रहे फार्मूला मिल्क
बीते पांच वर्षों से जिले में सिजेरियन डिलीवरी का कल्चर बहुत तेजी से बढ़ा है। जिले में अब तकरीबन 20 फीसदी डिलीवरी ही नॉर्मल होती हैं। ऑपरेशन से होने वाले बच्चों को पहले घंटे में ही फार्मूला मिल्क दिया जा रहा है। मां के दूध का उत्पादन कम होने पर डॉक्टर्स भी इन्हीं को प्रिस्क्राइब कर रहे हैं।
रोजाना लाखों का कारोबार
फार्मूला मिल्क के कई विकल्प बाजार में उपलब्ध हैं। दवा व्यापारियों के अनुसार जिले में हर दिन लाखों रुपए का मिल्क पाउडर खप जा रहा है। अलग-अलग ब्रांड के मिल्क पाउडर की कीमत चार सौ से लेकर एक हजार रुपए तक है। बच्चे की उम्र के हिसाब से एक डिब्बा दो से चार दिन तक ही चल पाता है। औसतन दो हजार तक डिब्बे जिले में रोजाना बिक रहे हैं।
रिपोर्ट्स के अनुसार मां के दूध की कमी को देखते हुए कंपनियों ने बेबी फॉर्मूला मिल्क पाउडर का पूरा तंत्र फैला दिया है। एक्सपट्र्स बताते हैं कि इन्हें पानी में मिलाकर आसानी से तैयार किया जा सकता है, इसलिए पेरेंट्स को भी ये सुविधाजनक लगता है। एक्सपट्र्स बताते हैं कि फॉर्मूला मिल्क मां के दूध की बराबरी नहीं कर सकते। जन्म के साथ ही बच्चों को इनके सेवन से पोषण संबंधी समस्याएं घेर लेती हैं। माँ के दूध के मुकाबले इनके पोषण मानक भी अलग होते हैं। इन्हें यदि सही तरीके से तैयार न किया जाए या अगर बच्चे की जरूरतों के अनुसार न हो तो इससे नुकसान भी हो सकता है। ये हो सकते हैं नुकसान
एलर्जी हो सकती है।
फॉर्मूला मिल्क को सही तरह से स्टोरेज न करने की वजह से इंफेक्शन हो सकता है।
इनमें प्रॉपर एंटी बॉडीज नहीं होते हैं।
बच्चों का इम्यून सिस्टम डेवलप नहीं हो पाता है।
इनका है कहना
मां के दूध में एंटी बॉडीज और अन्य पोषक तत्व होते हैं, जो बच्चे के इम्यून सिस्टम को मजबूत करते हैं। फॉर्मूला मिल्क में ये तत्व नहीं होते हैं। बच्चों को इन्हें देेने से पहले एक्सपर्ट एडवाइज लेना जरूरी होता है।
डॉ। नवरत्न गुप्ता, विभागाध्यक्ष, मेडिकल कॉलेज
विकास गिरधर, दवा कारोबारी फार्मूला मिल्क के कई ब्रांड उपलब्ध हैं। हर छह महीने में नंबर बदलकर इन्हें देना होता है। अधिक मांग नंबर एक और दो की ही रहती है। छह महीने तक के बच्चों को नंबर एक दिया जाता है।
रजनीश कौशल, दवा कारोबारी