आरटीओ में फिटनेस ट्रैक तो फिट है, पर जांच नहीं हो रही है
मेरठ ब्यूरो। कॉमर्शियल वाहनों की फिटनेस शहर के पर्यावरण और सडक़ों हादसों को रोकने के लिए जरूरी है। इसमें लापरवाही का मतलब सीधे-सीधे सडक़ दुर्घटना को बढ़ावा देना है। फिटनेस की गंभीरता को देखते हुए पांच साल पहले आरटीओ में अत्याधुनिक फिटनेस ट्रैक बनाया गया था। मकसद था कि वाहनों की फिटनेस को दुरुस्त किया जाए, लेकिन कुछ ही दिनों में फिटनेस ट्रैक की ही फिटनेस खराब हो गई। अब हालत यह है कि अत्याधुनिक फिटनेस ट्रैक तो है, लेकिन वाहनों की फिटनेस जांच परंपरागत तरीकों से ही होती है। ऐसे में वाहनों की छोटी मोटी कमियां तो दूर बड़ी-बड़ी कमियों को अनदेखा कर दिया जाता है।
फिटनेस ट्रैक की हालत खराब
गौरतलब है कि आरटीओ कार्यालय में सभी प्रकार के कामर्शियल वाहनों को फिटनेस के लिए निर्धारित समय पर आना पड़ता है। करीब 100 से 125 वाहनों की रोजाना फिटनेस की जाती है। इसके लिए महज एक आरआई टेक्निकल की नियुक्ति है। जो ऊपरी तौर पर वाहनों के बेसिक मानक देखकर फिटनेस जारी कर देते हैं, जबकि वाहनों की पूरी फिटनेस जांच के लिए कंप्यूटराइज्ड फिटनेस ट्रैक छह साल से आरटीओ कार्यालय परिसर में मौजूद हैं। छह साल पहले आरटीओ विभाग के फिटनेस टेस्टिंग ट्रैक के निर्माण हुआ था। इसमें आरआई केबिन के साथ शैडो का निर्माण किया गया था इसके बाद करीब तीनसाल तक यह ट्रैक सुविधाओं के अभाव में लावारिस पड़ा रहा। क्योंकि ट्रैक को आधुनिक तकनीकि से लैस कर बनाया जाना था, लेकिन ट्रैक को बिना किसी कंप्यूटराइज्ड सिस्टम, सेंसर के तैयार कर खानापूर्ति कर दी गई।
समाज कल्याण विभाग से इस ट्रैक के निर्माण के लिए करीब 20 लाख रुपए का बजट जारी किया गया था। इसमें ट्रैक, आरआई केबिन, शैडो समेत कंप्यूटराज्ड सिस्टम कैमरे, सेंसर आदि लगना था, लेकिन केवल फिटनेस ट्रैक और आरआई केबिन को तैयार कर काम पूरा कर दिया गया। गाडिय़ों को ट्रैक पर खड़ा कर ऊपरी तौर पर ही जांचा जाता है। अंदाज लगाया, जांच पूरी
- जांच के नाम वाहनों का अधूरा निरीक्षण ही होता है - ट्रैक पर लाइट न होने से चेसिस और बॉडी डैमेज की जांच अधूरी रहती है वाहन की आवाज सुनकर और एग्जास्ट का धुआं देखकर अंदाजे से फिटनेस सर्टिफिकेट देते हैं
एटीएस की राह भी अभी दूर
गत वर्ष ऑटोमेटिक टेस्टिंग स्टेशन (एटीएस) खोले जाने का आदेश जारी हुआ था, लेकिन आरटीओ कार्यालय में बने इस फिटनेस ट्रैक को अपडेट करने की पूरी कवायद पर ही ब्रेक लग गए। शासन के आदेश के बाद अब गाडिय़ोंं की फिटनेस पूरी तरह प्राइवेट सेंटर को देने की कवायद शुरु हो चुकी है। एटीएस सेंटर खोलने के लिए ऑनलाइन आवेदन मांगे गए थे लेकिन अभी तक जनपद में मात्र एक सेंटर ने आवेदन किया है लेकिन उसके मानक भी अभी अधूरे हैं।
फिटनेस ट्रैक में लाइट, सेंसर और कैमरों की सुविधा अधूरी। स्लीपर और पैसेंजर्स बसों में व्हील बेस के मुताबिक सीटों की होती है जांच। बैलेंसिंग, इमरजेंसी विंडो, इंजन में आवाज आदि को जांचा जाता है। सीएनजी वाले ऑटो-टेंपो की हर छह-छह महीने में पाइप की जांच होनी है जरूरी।
सभी कमर्शियल वाहनों में ब्रेक, पहिए की स्थिति, ब्रेक की क्षमता, लाइट, रेट्रो रिफ्लेक्टो टेप की जांच अनिवार्य।
फिटनेस चेकिंग के दौरान कॉमर्शियल वाहनों के इंजन, पहिये, व्हील बेस से लेकर पूरी बॉडी की जांच की जाती है। अब एटीएस पर काम चल रहा है आवेदन आ रहे हैं मानकों की जांच के बाद जल्द ये पूरा काम प्राइवेट सेंटर को दिया जाएगा।
- राहुल शर्मा, आरआई