करोड़ों खर्च के बाद भी रैंकिंग में नहीं हो सका सुधार
मेरठ ब्यूरो। स्वच्छता सर्वे 2023 में मेरठ की 17 वीं रैंक आने के बाद भी निगम के आला अधिकारी सर्वेक्षण को लेकर कुछ ज्यादा सक्रिय नही हैं। स्थिति यह है कि हर माह सफाई के नाम पर 14.25 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी साफ सफाई और कूड़ा निस्तारण की व्यवस्थाएं ठप हैं। केवल कागजों में काम चल रहा है।
क्यों फेल हो गए प्रयोग
इसी का नतीजा है कि सालभर में निगम द्वारा किए गए प्रयास जिनमें अंडर ग्राउंड डस्टबिन, कबाड़ से जुगाड़, सडक़ किनारे विलोपित कूड़ा स्थल, मुख्य चौराहों का सौंदर्यीकरण और ग्रीन बेल्ट की हालत बदत्तर हो चुकी है। इन कामों की जिम्मेदारी संभालने वाला स्वच्छ भारत मिशन(एसबीएम) यूनिट भी फेल साबित हो गया। उक्त यूनिट का प्रतिमाह 50 लाख रुपया निगम उठाता है, इसके बावजूद मेरठ के लिए टॉप-5 की सूची में शामिल होना एक सपना बना हुआ है।
14.25 करोड़ के खर्च के बाद भी शहर गंदा
गौरतलब है कि स्वच्छता सर्वेक्षण 2023 में प्रदेश में 17 नगर निगमों में से साफ-सफाई के मामले में मुरादाबाद और शाहजहांपुर के बाद मेरठ नगर निगम सबसे निचले पायदान पर था। करीब बीस लाख की आबादी वाले मेरठ शहर पर नगर निगम सफाई के मामले में प्रतिमाह 14.25 करोड़ रुपया खर्च करता है। इसमें 2415 अस्थायी स्वच्छता मित्र हैं, जिनको प्रतिमाह 3.74 करोड़ का भुगतान होता है। इसके लिए दिल्ली रोड, कंकरखेड़ा और सूरजकुंड वाहन डिपो बनाए हैं, जहां से साफ-सफाई से लेकर डोर-टू-डोर कूड़ा उठाने का कार्य चलता है। शहर की साफ सफाई के लिए गत वर्ष 2.50 करोड़ कीमत की सुपर सकर मशीन, रोड स्वीपिंग मशीन, रिफ्यूज कांपेक्टर, एंटी स्मॉग गन और रोबोट सहित कई संसाधन भी नगर निगम ने खरीदे थे। लेकिन इसके बाद शहर के मोहल्ले, बाजार, पार्क और चौराहे गंदगी से अटे हुए हैं।
कूड़ा कलेक्शन जारी पर नही हो रहा निस्तारण
डोर-टू-डोर कूड़ा उठाने वाली बीवीजी कंपनी के साथ निगम का पांच साल का अनुबंध है। निगम 211 वाहन और 32 ई-रिक्शा हस्तांतरित करने के साथ-साथ प्रतिमाह कंपनी को दो करोड़ का भुगतान करता है। वाहनों की मरम्मत में एक करोड़ खर्च, दो करोड़ का पेट्रोल-डीजल और अन्य संसाधनों पर निगम अलग से पैसा खर्च करता है। कूड़ा निस्तारण प्लांट के नाम पर दो-तीन करोड़ प्रतिमाह निगम खर्च कर रहा है। 500 करोड़ से ज्यादा लागत के वाहन निगम ने खरीद रखे है, लेकिन गली-मोहल्ले से कूड़ा उठाने में वह नाकाम है। गांवड़ी, मंगतपुरम और लोहियानगर में कूड़े के पहाड़ लगे है। पुराना कचरा कई सालों से पड़ा हुआ है।
महानगर की सफाई व्यवस्था बेहतर करने की एसबीएम की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। प्रोजेक्ट मैनेजर के साथ 10-15 कर्मचारियों का भुगतान निगम सिर्फ इसी बात पर देता है कि वह शहर को गंदा होने से बचाए। इसके लिए एसबीएस ने गत वर्ष कूड़े के ढेर हटवाकर सौंदर्यकरण के साथ मुख्य चौराहों पर कबाड़ से जुगाड़ वाला फार्मूला अपनाया था लेकिन यह फार्मूला आज शहर के चौराहों की बदसूरती बन गया है। रखरखाव के अभाव में कबाड़ से बनाए गए स्ट्रक्चर खुद कबाड़ हो गए हैं। एक्सपेरिमेंट हुए एक्सपायर
वहीं अगर बात करें कूड़ा ट्रांसफर स्टेशन, एमआरएफ सेंटर, आरआरआर, कूड़ा निस्तारण प्लांट या फिर विलोपित कूड़ा स्थल, अंडर ग्राउंड डस्टबिन जैसे एक्सपेरिमेंट, इन सभी मामलों में नगर निगम फेल साबित हो गया। सफाई के लिए किए गए ये सब प्रयास लापरवाही के चलते खुद कूड़ा स्थल में तब्दील हो गए हैं। आरआरआर सेंटर में किताब और कपड़ों की जगह कूड़ें का ढेर लग गया है। अंडर ग्राउंड डस्टबिन ओवरफ्लो हैं। एमआरएफ सेंटर पर ताला लगा हुआ है।
मंगतपुरम की फाइल ढूंढी
जुलाई 2023 में स्वच्छ भारत मिशन के तहत 9.20 करोड रुपये मंगतपुरम का कूड़ा हटाने के लिए नगर निगम को मिला था। लेकिन एक साल बीतने के बावजूद भी निगम ने टेंडर की प्रक्रिया पूरी नहीं की। इसके बाद कई बार रि-टेंडर भी सफल नहीं हुआ। अब स्वच्छ सर्वे की रैंक आने पर दोबारा से निगम में मंगतपुरम की फाइल ढूंढी जा रही है।
-मलबा निस्तारण (सीएंडडी वेस्ट) प्लांट के लिए ढाई करोड़ स्वीकृत हैं। शासन के निर्देश पर दो साल से टेंडर प्रक्रिया लंबित।
-मंगतपुरम में कूड़ा निस्तारण प्लांट के लिए 9 करोड़ मंजूर हैं। नगर निगम दो साल से इसका भी टेंडर न हुआ।
-11 एमआरएफ सेंटर में नौ बने हैं। पांच करोड़ रुपये मशीन खरीदने के लिए मिले हैं। ये काम भी लंबित है।
- 2 करोड़ से अधिक स्वच्छ भारत मिशन के प्रस्ताव लंबित हैं। निगम ने एक भी कार्य का नहीं किया।
- उपवन योजना लांच हुई है। अभी तक निगम ने डीपीआर बनाकर शासन को नहीं भेजी।
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को 15 वें वित्त में 200 करोड़ से अधिक मिले। इस पर भी नही शुरु हुआ काम कूड़ा निस्तारण प्रमुख समस्या है इस पर काम चल रहा है। बाकी कूड़ा कलेक्शन और साफ सफाई नियमित रुप से जारी है।
- डा हरपाल सिंह, नगर स्वास्थ्य अधिकारी