धूप धूल और धुआं....ये तीनों मिलकर जिंदगी का दम घोंट रहे हैं। इनसे कई मरीजों को सांस का अटैक पड़ रहा। हालत यह है कि धूल के कणों के साथ एलर्जिक रानाइटिस साइनोसाइटिस अस्थमा एवं सीओपीडी के पुराने मरीजों की सांस उखड़ रही है।

मेरठ ब्यूरो। मेरठ में ऐसी कोई सडक़ नही है जहां दिनभर धूल मिटटी का सामना वाहन चालकों को ना करना पड़ता हो। खासतौर पर दिल्ली रोड पर रैपिड रेल का काम सडक़ पर चलने वाले वाहन चालकों, पैदल, राहगीरों के सांस का दुश्मन बन चुका है। स्थिति यह है कि धूल और धुंए के कारण सरकारी अस्पतालों की ओपीडी में सांस के मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। लेकिन बावजूद इसके धूल पर काबू के इंतजाम अधूरे हैं।

रोगों को करना पड़ रहा सामना
सडकों पर उड़ती धूल के साथ पॉल्यूशन सांसों में जहर घोल रहा है। इसके कारण सीओपीडी, अस्थमा, खांसी, दिल के मरीज, लंग्स कैंसर, चर्म रोग एवं गले में खराश की समस्या अधिक बढ़ रही है। धूल के कणों के साथ सल्फर एवं नाइट्रोजन डाई आक्साइड की मात्रा बढऩे से सांस लेने के दौरान नलिका में अम्ल बनने से श्वसन तंत्र और हार्ट में गंभीर विकार आ रहे हैं।

भ्रम और बेहोशी के भी लक्षण
धूल कण नाक की नलियों में एलर्जी पैदा करते हैं। मरीजों की सांस फूलने के साथ बुखार भी उभर रहा है। इसे हे-फीवर कहते हैं। खांसी, बेचैनी, छाती में दर्द, गले में हल्की खराश, गले में सूखापन होता है। गंभीर स्थिति में होठ और नाखून नीले पड़ जाते हैं। मरीज बोल भी नहीं पाता।

धूल के गुबार पर खड़ा वायु प्रदूषण
प्रदूषण विभाग के आंकडों के अनुसार एनसीआर में पीएम-2.5 एवं पीएम-10 में 40 प्रतिशत मात्रा धूल कणों की है। उखड़ी सडक़ों, अनियंत्रित निर्माण, पालीथिन एवं ठोस कचरा दहन और औद्योगिक इकाइयों से उडऩे वाली काली राख भी वायु प्रदूषण के महत्वपूर्ण कारक हैं।

धूल की समस्या रोकने को ये करना चाहिए उपाय
- सफाई कर्मी गलियों की सफाई करने के साथ ही सडक़ों की भी सफाई करें।
- धूल एकत्र करने के लिए नगर निगम को सभी प्रमुख सडक़ों पर क्लीन स्वीपिंग मशीन प्रतिदिन संचालित करना चाहिए।
- सडक़ों पर पानी का छिडक़ाव प्रतिदिन हो।
- रेत से भरी ट्राली, डंपर व ट्रक को ढक कर ले जाना चाहिए।
- निर्माण सामग्री बेचने वाले लोग यदि खुले में सामग्री बेचते हों तो उन पर कार्रवाई हो क्योंकि निर्माण सामग्री ढकी होनी चाहिए।
- भवन या कोई ढांचा निर्माण होने पर पर्दे की दीवार हो ताकि उसकी धूल आसपास न फैले।
- कूड़ा जलाने पर कार्रवाई होनी चाहिए।

प्रदूषण और धूल से बचने के लिए ये करें
- घर से निकलते वक्त मुंह और नाक को रूमाल आदि से जरूर ढककर चलें।
- घर के दरवाज़े और खिड़कियां बंद रखें खिड़कियों और दरवाज़ों से ज़हरीले प्रदूषक घर में प्रवेश कर जाते हैं, इसलिए इन्हें बंद रखें।
- इसके अलावा धूल में या घर ज़्यादा साफ-सफाई का काम करने से भी बचें।
- सांस से जुड़ी बीमारियों से परेशान लोगों को डॉक्टर घर में एयर प्यूरीफायर लगा सके हैं। जो अशुद्ध हवा को घर से बाहर निकालने में मदद करते हैं।

- इस दौरान छोटे बच्चों और बुज़ुर्गों को घर से बाहर कम से कम निकलना चाहिए। नवजात बच्चों को बाहर ले जाने से बचें और बड़े बच्चों को बिना मास्क के बाहर न जाने दें।

ब्रोंकाइटिस, गले में खरास, सांस की दिक्कत, वायरल और निमोनिया की संभावना भी बढ़ जाती है। हवा में धूल कणों के साथ ही सल्फर, अमोनिया, नाइट्रोजन व मोनोआक्साइड जैसी गैसें भी हैं। बैक्टीरिया धूल के कणों के साथ चिपक कर शरीर में पहुंच जाते हैं। मास्क का प्रयोग करके इससे बचा जा सकता। लिक्विड अधिक लें, फ्रेश फूड अधिक लें।
- डा। वीरोत्तम तोमर, सांस एवं छाती रोग विशेषज्ञ

Posted By: Inextlive