युवाओं को नशे की लत से मुक्ति दिलाने में मदद कर रहे डॉ संजीव अग्रवाल
मेरठ ब्यूरो। यह बात साल 1970 के आसपास की है। शाम का वक्त था। लोग कामकाज निपटाकर अपने-अपने घर जा रहे थे। मेरी उम्र 12 साल की रही होगी। वैसे मेरा घर नील गली में है, बहुत पहले वहां पर शराब का ठेका था। उस दिन मैं घर के बाहर दोस्तों के साथ घूम रहा था। मैने देखा कि एक व्यक्ति शराब पीकर ठेके के बराबर में ही बेसुध हो पड़ा है। वह कुछ बड़बड़ा रहा था। लोगों की भीड़ जुट गई। इसी बीच उसकी पत्नी रोते बिलखते गोद में अपने छोटे से बच्चे को लेकर आ गई। वह उस व्यक्ति को उठाने की कोशिश करती, लेकिन वह व्यक्ति अपनी को गाली देता, उसे मारता पीटता। बेबस पत्नी और उसका छोटा बच्चा सडक़ किनारे रोते बिलखते। उसकी पत्नी ने बताया कि कई दिनों से हमने खाया नहीं खाया है। बच्चा भूखा है, लेकिन पति रोज शराब पीकर मारता पीटता है। हमारी जिंदगी तो नरक जैसी हो गई है। भगवान मुझे और मेरे बच्चे को आज ही उठा ले, तो मुक्ति मिल जाए। इतना कहकर उसकी आंखों से आंसू छलक आए। बचपन के इस दृश्य ने मेरे जीवन की कहानी बदल दी। मैं सोचने लगा कि न जाने ऐसे कितने परिवार होंगे जिनका जीवन इसी नशे की भेंट चढ़ गया है। उनका परिवार किस स्थिति में रहता होगा। रोज घरों में झगड़ा होता होगा, मारपीट होती होगी। उसी दिन से मैंने संकल्प लिया कि युवाओं को नशे की लत से छुड़वाकर ही दम लूंगा। बस बचपन की वो घटना आज मेरे जीवन का सबसे बड़ा मकसद बन गई है।
युवाओं से नशा छुड़वा रहा हूंयह कहानी मेरी है मैं यानि डॉ। संजीव अग्रवाल, वैसे तो मेरा प्रोफेशन ज्वेलरी मार्केट से जुड़ा है। सोने चांदी के रॉ मैटेरियल को खूबसूरत आभूषण में तब्दील करता हूं। वहीं दूसरी ओर युवाओं को नशा छुड़वाकर उन्हें एक बेहतरीन नागरिक बनाने के लिए प्रेरित करता हूं। नशा ऐसी चीज है जो न सिर्फ परिवार को बर्बाद करता है, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी नासूर है। बस मेरी कोशिश है कि युवा नशे से दूर रहें और एक बेहतर जिंदगी जिएं, इसके लिए मैं अपनी तरफ से कोशिश करता हूं।
अब जानिए कैसे हुई शुरुआत
युवाओं को नशे की हालत से छुड़वाना मेरे जीवन का मकसद था। वैसे मेरा संकल्प बड़ा था, लेकिन उम्र बहुत छोटी, पर कहते हैं न जब आप एक अच्छे कार्य के लिए आगे बढ़ते हैं तो कई लोग आपके साथ आ जाते हैं। ऐसा मेरे साथ भी हुआ। उस समय कामरेड टुल्लन सिंह से मेरी मुलाकात हुई। साल 1970 में मैं उनके साथ मिलकर युवाओं को नशे से दूर रहने के लिए प्रेरित करने लगा। हालांकि, शुरुआत में कुछ विरोध हुआ, लेकिन एक अच्छे मकसद की ओर चले कदम आज तक पीछे नहीं हटे।
घरों में कलह देखकर दुखी
मेरेे घर से कुछ ही दूरी पर बाल्मीकि बस्ती है। उस दौर में यहां पर शिक्षा का अभाव था। इसलिए यहां पर युवा नशे की गिरफ्त में थे। मैं अपने दोस्तों के साथ वहां जाकर देखता, तो मन दुखी हो जाता, यहां पर हर घर में युवा शराब आदि नशे की गिरफ्त में थे। इसलिए इन घरों में कलह होती थी। एक बार की बात है। 15 अगस्त की तारीख थी। मेरे प्रेरणाश्रोत कामरेड टुल्लन सिंह बाल्मीकि बस्ती गए, उन्होंने कुछ युवाओं को नशा छोडऩे के लिए प्रेरित किया। इसका असर यह हुआ कि कुछ युवा नशा छोडक़र अब व्यवसाय करने लगे। साथ ही दूसरे लोगों को भी सुधारने में जुट गए। यह बदलाव देखकर मुझे भी लगा कि अच्छे कार्य में देर हो सकती है, परंतु उसका असर दिखता है। कामरेड टुल्लन सिंह और मैं युवाओं के सुधार की दिशा में काम कर रहे थे, लेकिन मुझे गहरा झटका तब लगा जब 1980 उनकी मौत हो गई। अब मैं अकेला था, लेकिन संकल्प मजबूत था, इसलिए उस दिन से लेकर आज तक मैं इस कार्य में जुटा हूं।
अब इस कार्य में जुटे हुए करीब 4 दशक से ज्यादा का समय बीत चुका है। आज भी मैं उसी उम्मीद के साथ घर से निकलता हूं, कि दो-चार युवाओं के जीवन से नशा छुड़वाकर ही रहूंगा। शहर के घंटाघर के पास की वाल्मीकि बस्तियों और आसपास के इलाकों में घूमता रहता हूं। ऐसे युवाओं पर नजर रखता हूं, जो नशे की गिरफ्त में आकर जीवन बर्बाद कर रहे हैं। पहले उनके घर जाता हूं। उनकी काउंसिलिंग करता हूं, यही नहीं, नशे छुड़वाने के लिए उनका ट्रीटमेंट भी कराता हूं। इस प्रयास से अब तक करीब 700 युवा नशे की गिरफ्त से बाहर आ चुके हैं, और अब परिवार के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं।
गरीब बच्चों की पढ़ाई में मदद
कुछ संस्थाओं के साथ जुडक़र मैं गरीब बच्चों की पढ़ाई में भी मदद करता हूं। इनमें मेन चैम्बर ऑफ एमएसएमई है। इसके जरिए युवाओं को मदद दिलवाता हूं। ताकि वे बेहतर जीवन जी सकें। इसके साथ ही एंट्री ड्रग्स सोसाइटी के जरिए भी कांउसिलिंग कराई जाती है। वैसे अब तक करीब 400 गरीब बच्चों की फीस का इंतजाम करके उनकी पढ़ाई सुचारू कराई है। ताकि वे बच्चे पढ़ लिखकर समाज में अपना नाम रोशन करें। साथ ही गंगा बचाओ अभियान के साथ भी जुड़ा हूं। मेरे जीवन का यही मकसद है कि एक बेहतर समाज के निर्माण में कुछ सहयोग कर सकूं।