बीते तीन महीने में डिजिटल अरेस्ट कर साइबर क्रिमिनल कर चुके हैैं आठ करोड़ रुपये से अधिक की ठगी वीडियो कॉल कर खुद को बताते हैैं अधिकारी ड्रग्स तस्करी मनी लॉन्ड्रिंग और राष्ट्रद्रोह का लगाते हैैं आरोप।

केस-1
कंकरखेड़ा निवासी एक बुजुर्ग को डिजिटल अरेस्ट कर 28 लाख रुपये की ठगी कर ली गई। बुजुर्ग को साइबर ठगों ने जूनियर टेलीकॉम अधिकारी बनकर डराया। उनसे कहा गया कि वह मनी लांड्रिंग जैसे अवैध काम कर रहे हैं। बुजुर्ग डर गए और उन्होंने पैसे ट्रांसफर कर दिए।

केस-2
बैंक एक रिटायरकर्मी से साइबर ठगों ने डिजिटल अरेस्ट कर 1.74 करोड़ रुपये ठग लिए। ठगों ने उन्हें भी मनी लांड्रिंग में लिप्त होने की बात कहकर उन्हें धमकाया। ठगों ने खुद को टेलीकॉम डिपार्टमेंट का अधिकारी बताया। बैंक कर्मी और उनकी पत्नी ठगों की बात सुनकर डर गए और पैसे ट्रांसफर कर दिए।

केस-3
दौराला निवासी किरणपाल को डिजिटल अरेस्ट कर साइबर ठगों ने 11 लाख रूपये ठग लिए। साइबर ठगों ने उन्हें सीबीआई अधिकारी बनकर कॉल किया। उनके अकाउंट से टेरर फंडिंग होने का डर दिखाया। डरा-धमकाकर और दबाव बनाकर उनसे ठगों ने पैसे ट्रांसफर करवा लिए।

मेरठ (ब्यूरो)। डिजिटल अरेस्ट के मामले मेरठ में तेजी से बढ़ रहे हैं। बीते तीन महीने में आठ करोड़ रुपये से अधिक की रकम डिजिटल अरेस्ट कर ठगी जा चुकी है। शिकार होने वाले अधिकतर पीडि़त रिटायर लोग ही निकल रहे हैं। एक्सपट्र्स का कहना है कि साइबर क्रिमिनल्स बहुत तेजी से अपना नेटवर्क बढ़ा रहे हैं। दिन-रात वह लोगों की जानकारी जुटाने में लगे हैं। लोगों में जागरूकता की कमी है इसलिए वह ठगी के शिकार हो रहे हैं। कम या अधिक उम्र के लोग जल्दी झांसे में आ जाते हैं इसलिए वह अधिक निशाने पर आ रहे हैं।

ये है डिजिटल अरेस्ट
साइबर ठग व्हाट्सएप के जरिए वीडियो कॉल कर किसी व्यक्ति को अधिकारी बनकर कॉल करते हैं। व्यक्ति को ड्रग्स डीलिंग, तस्करी, मनी लॉन्ड्रिंग, राष्ट्रद्रोह जैसी गतिविधियों में शामिल होने और पकड़े जाने का हवाला दिया जाता है। फिर उन्हें डिजिटल अरेस्ट यानी फोन के जरिए ही अरेस्ट होने की बात कही जाती है। इसमें पीडि़त की स्क्रीन पर पूरे पुलिस स्टेशन का सेटअप रहता है। पुलिस की यूनिफॉर्म में एक व्यक्ति सामने बैठकर बात करता है। कुछ अधिकारी थाने के सेटअप के अंदर ही यहां-वहां घूमते नजर आते हैं। पहले जरूरी जानकारी पीडि़त से ही कलेक्ट करते हैं। जानकारी लेने के लिए अपने सीनियर अधिकारी से बात करवाते हैं। संबंधित डॉक्यूमेंटस भी पीडि़त को दिखाएं जाते हैं ताकि पूरा मामला रियल लगे। पूरा प्रोसेस काफी तेज होता है और पीडि़त को कुछ समझ नहीं आता। डर और दबाव के चलते जैसा ठग कहते हैं, पीडि़त वैसा ही करते जाते हैं। कुछ घंटों से लेकर कुछ दिन तक पीडि़त को उसके घर पर ही अरेस्ट करके रखा जाता है। इस दौरान उसे कहीं भी आने-जाने या किसी से बात करने की इजाजत नहीं होती है। जमानत के नाम पर लाखों-करोड़ों रूपये की ठगी की जाती है।

डिजिटल अरेस्ट का पैटर्न
साइबर सेल एक्सपर्ट ने बताया कि डिजिटल अरेस्ट कर ठगी करने के लिए साइबर ठग पुलिस, सीबीआई, इनकम टैक्स, कस्टम, नारकोटिक्स विभाग, खुफिया विभाग के अधिकारी बनकर व्हाट़्सएप पर कॉल करते हैं। इसमें अवैध सामान की खरीददारी, मनी लॉन्ड्रिंग, टेरर फंडिंग, ड्रग्स डीलिंग और बच्चों के रेप केस में गिरफ्तार करने की बात कहकर डराया जाता है।

कई राज्यों में फैला नेटवर्क
साइबर क्रिमिनल्स का नेटवर्क कई राज्यों तक फैला हुआ है। डिजिटल अरेस्ट के मामलों में हुई जांच में अब तक हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कोलकत्ता, राजस्थान से तार जुड़े हुए पाए गए। जबकि एक लिंक पुलिस को दुबई का भी मिला। साइबर सेल के अधिकारियों ने बताया कि साइबर क्रिमिनल्स का नेटवर्क दूसरे देशों से भी लिंक हो रहा है।

इन बातों का रखें ध्यान
बाहर के नंबरों से आने वाली कॉल्स से बचें।
किसी को भी अपनी पर्सनल जानकारी न दें।
अपना कोई डाटा किसी को शेयर न करें।
फोन पर यदि कोई धमकाए तो दबाव में न आएं।
यदि कोई कॉलर फोन कर किसी विभाग के अधिकारी होने का दावा करे तो पहले पुष्टि करें।
यदि साइबर क्राइम के शिकार हो जाएं तो तुंरत थाने में शिकायत करें।
किसी भी जानकारी को बिना वेरीफाई करें प्रयोग न करें।

इन बातों का रखें ध्यान
पुलिस प्रशासन में डिजिटल अरेस्ट कोई टर्म नहीं है।
पुलिस इस तरह से कभी गिरफ्तारी नहीं कर सकती।
ऐसे कॉल आएं तो डरें नहीं, इन नंबर्स को तुरंत ब्लॉक कर दें।
यदि ठगी के शिकार हो गए हैं तो तुंरत हेल्पलाइन नंबर 1930 पर कॉल कर सूचना दें।

फैक्ट फाइल पर एक नजर
8 करोड़ रुपये से अधिक की ठगी बीते तीन महीने में डिजिटल अरेस्ट की जा चुकी है।
37 केस अगस्त, सितंबर, अक्टूबर में दर्ज किए गए हैं।
22 मामले तीन महीने में साइबर सेल में दर्ज किए गए हैैं।
15 मामले स्थानीय थाने में दर्ज हुए हैैं।
एक लाख रुपये से कम की ठगी के मामले स्थानीय थानों में दर्ज किए जाते हैं।

पुलिस कभी भी सोशल मीडिया के जरिए अरेस्ट नहीं करती है। लोगों के बीच जागरूकता की कमी है। वहीं साइबर क्राइम होने के बाद पीडि़त रिपोर्ट दर्ज करवाने में देर करते हैं। इसकी वजह से कई घंटे खराब हो जाते हैं। ऐसी किसी भी ठगी होने पर 24 घंटे के अंदर शिकायत दर्ज करवा दी जानी चाहिए।
नेत्रपाल सिंह, प्रभारी, साइबर सेल

Posted By: Inextlive