Meerut News : डियर फ्रेंड्स! फास्ट फूड से हाइट नहीं, बस वेट बढ़ता है
मेरठ (ब्यूरो)। कुछ भी खा लेने की आदत शहरवासियों पर भारी पड़ रही है। चिप्स, मोमो, बर्गर, पिज्जा जैसे फूड्स का एक्सेसिव कंजप्शन बच्चों को कुपोषित कर रहा है। मेरठ में एक से पांच साल के बच्चों की एक चौथाई आबादी कुपोषण का शिकार पाई गई है। नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट इसकी तस्दीक करती है। एक्सपट्र्स बताते हैं कि रेडिमेड पैक्ड फूड से जरूरी न्यूट्रिशियंस नहीं मिल रहे हैं। घर के खाना न के बराबर रह गया है। जिससे बीमारियां बढ़ रही हैं।
ये है रिपोर्ट
रिपोर्ट के मुताबिक एक से पांच साल के 23.7 फीसदी बच्चों की आबादी की लंबाई उनके वजन के अनुसार नहीं बढ़ रही है। इनका वजन लंबाई के तय मानकों से काफी कम पाया गया। 2015-16 में ये आंकड़ा 35.2 प्रतिशत था। कुपोषित बच्चों की दर कम करने के लिए सरकार द्वारा कई तरह के अभियान भी चलाए गए। अवेयरनेस कैंप लगाए गए लेकिन पांच साल में इस स्थिति में सुधार का स्तर बहुत अच्छा नहीं मिला। अभी भी आंकड़ा चिताजनक स्तर पर है।
नहीं मिल रही बैलेंस्ड डाइट
रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। इसके तहत जन्म लेने के तीन वर्ष तक के बच्चों की 92 फीसदी आबादी बैलेंस्ड डाइट से दूर है। इन बच्चों को खाने से मिलने वाले जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल रहे हैं। इनकी थाली से पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, खनिज और पानी जैसे तत्व नदारद पाए गए। पोषण संबंधी तमाम योजनाएं चलाने के बाद भी पांच वर्ष में मात्र 0.2 फीसदी आबादी ही जागरूक हो पाई है।
पोषण के बिगड़े संतुलन की वजह से ओवरवेट बच्चों का आंकड़ा भी बढ़ रहा है। जिले में बीते पांच साल में 1.3 प्रतिशत बच्चे ओवरवेट कैटेगरी में पाए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2015-16 में जहां सिर्फ 0.6 प्रतिशत बच्चों की आबादी ही मोटापे की जद में थी, वहीं 2019-21 में कुल 1.3 प्रतिशत बच्चों में मोटापा आया है। ये हैं कुपोषण के कारण
रोजाना आवश्यक मात्रा से कम कैलोरी लेना।
प्रोटीन की कमी से विकास प्रभावित होता है।
आयरन, कैल्शियम, विटामिन-डी, और अन्य महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की कमी।
माइक्रोन्यूट्रिएंट्स जैसे जिंक, विटामिन-ए, विटामिन-बी 12 समेत कई माइक्रो न्यूट्रिएंटस एलीमेंट की कमी।
आर्थिक, भौगोलिक और मौसमीय कारण।
उचित आहार और पोषण के बारे में जागरूकता की कमी।
अत्यधिक शुगर और फैट वाले खाद्य पदार्थों का सेवन
माताओं की पोषण की स्थिति भी बच्चों के पोषण को प्रभावित कर सकती है।
खाने में इन्हें करें शामिल
मौसमी फल और हरी पत्तेदार सब्जियां, जैसे पालक, ब्रोकली, और गाजर, टमाटर, घीया तोरी, खीरा, चकुंदर आदि।
रागी, बाजरा, ज्वार, गेहूं, ओट्स, क्विनोआ, दलिया आदि।
चिकन, मछली, अंडे, टोफू और दालें आदि।
कम वसा वाला दूध, दही, पनीर आदि।
बादाम, अखरोट, फ्लैक्ससीड्स, चिया सीड्स जैतून का तेल, एवोकाडो आदि।
चिप्स, बर्गर, पिज्जा, और तले हुए खाद्य पदार्थ जो कैलोरी में हाई और पोषक तत्वों में कम होते हैं।
शुगर आइटम्स जैसे चॉकलेट, टॉफी कैंडी, मिठाइयां, पेस्ट्री, केक आदि इनमें अतिरिक्त कैलोरी और कम पोषण होता है।
रिफाइंड अनाज जैसे सफेद ब्रेड, सफेद चावल, मैदा, रिफाइंड तेल , मेयोनीज आदि।
ट्रांस फैट वाले आइटम जैसे प्रोसेस्ड मीट, प्रोसेस्ड फूड आदि।
अधिक नमक-अत्यधिक नमक वाले स्नैक्स, जैसे पैकेट चिप्स, नमकीन, क्रैकर, पैक्ड आइटम आदि। इनका है कहना
बच्चों में अंसतुलित वजन और मानकों के तहत कम या ज्यादा लंबाई की वजह से सही पोषण न होना है। पौष्टिक व मुख्य आहार की जगह बच्चे फास्ट फूड, कोल्ड ड्रिंक, पिज्जा, बर्गर खा रहे हैं। ऐसे ही रेसिपी अब घरों में बनने भी लगी हैं। जो बच्चों की सेहत को बिगाड़ रही है।
डॉ। सोनाक्षी गोयल, आयुर्वेदिक व पंचकर्म फिजिशियन
बच्चों की थाली में अब फल, सब्जियां, अनाज, रूट्स, दाल आदि शामिल ही नहीं होते हैं। खेल भी बच्चों की जीवनशैली से भी दूर हो गए हैं। सुबह-शाम की धूप बच्चों को नहीं मिलती, पेरेंट्स जागरूक नहीं हैं। जिससे ये समस्याएं हो रही हैं।
डॉ। अरविंद कुमार, एचओडी मेडिसिन, मेडिकल कॉलेज
डॉ। अशोक कटारिया, सीएमओ, मेरठ