योगी जी! चोरी हो गई
मेरठ (ब्यूरो)। ये चोरी की ऐसी कथा है, जो पुलिस के किसी रजिस्टर में आपको दर्ज नहीं मिलेगी। माजरा ये है कि हर साल अभियान चलाकर बड़ी संख्या में अवैध विज्ञापन पट, होर्डिंग्स और बैनर जब्त किए जाते हैं, पर कभी बेचे नहीं जाते। भ्रष्ट तंत्र की मिलीभगत से करोड़ों का यह कबाड़ लगातार गायब हो रहा है। एक तरफ नगर निगम रेवेन्यू का रोना रोता रहता है, वहीं दूसरी तरफ इतना बड़ा खेल। यह सब पिछले 22 साल से चल रहा है और किसी को इसकी भनक तक नहीं? यूं तो योगी सरकार ने भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रखी है, लेकिन लगता है कि ये मैसेज नीचे तक ठीक से नहीं पहुंचा है।
अभियान तक सीमित
दरअसल, नगर निगम सीमा के दायरे में विज्ञापन पट, होर्डिंग्स और बैनर आदि लगाने को बकायदा अनुमति लेकर इस बाबत शुल्क जमा करना पड़ता है। इसके बाद निगम निर्धारित मानकों पर विज्ञापन या प्रचार प्रसार की अनुमति देता है। लेकिन बिना अनुमति भी शहर की सड़कों से लेकर बाजारों, चौराहों और गलियों में हजारों की संख्या में छोटे बड़े बैनर व पोस्टर लग जाते हैं। ऐसे अवैध विज्ञापन पटों, होर्डिंग्स को हर साल निगम समय-समय पर अभियान चलाकर जब्त कर लेता है। जिसके बाद इन्हें निगम के स्टोर रूम में जमा करा दिया जाता है।
नियमानुसार नगर निगम हर साल टेंडर प्रक्रिया के माध्यम से इन अवैध विज्ञापन पटों के लोहे के फ्रेम, होर्डिंग्स को बेच सकता है। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि पिछले 22 साल यानी साल 2000 से नगर निगम को इनका ख्याल तक नहीं है। नतीजतन, आज निगम के स्टोर रूम में इनको रखने की जगह तक नहीं बची है और निगम परिसर से लेकर टाउनहाल परिसर तक यह कबाड़ फेला हुआ है। विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 22 साल से नगर निगम के स्टोर विभाग से लेकर विज्ञापन विभाग में तैनात कर्मचारी मिलीभगत से करोड़ों का कबाड़ खपा चुके हैं। मगर हैरत है कि निगम को इस बाबत कोई जानकारी नहीं है।
आरटीआई में खुलासा
दरअसल, समाजसेवी संजीव अग्रवाल ने गत माह आरटीआई के जरिए निगम से जब्त किए गए विज्ञापन पटों, होर्डिंग्स और बैनरों की नीलामी और उससे होने वाली आय के संबंध में जानकारी मांगी थी। इसके जवाब में नगर निगम के जनसूचना अधिकारी ने जवाब दिया कि उनके विज्ञापन शुल्क अनुभाग में इस संबंध में कोई विवरण उपलब्ध ही नहीं है। क्योंकि 22 साल पुराना रिकार्ड है इसलिए इसका विवरण एकत्र करने में समय लगेगा।
नगर निगम के पास इस तरह के स्क्रैप के टेंडर की व्यवस्था नहीं है। इनका रिकार्ड मेंटेंन किया जाता है। बीच बीच में जरूरत पडऩे पर हम इस स्क्रैप का अन्य चीजों की रिपेयरिंग में प्रयोग करते रहते हैं। बाकी स्क्रैप की चोरी और रिकार्ड के मामले की अब जांच कराई जाएगी और इसका निस्तारण किया जाएगा।
मनीष बसंल, नगरायुक्त