करीब सात साल से अधर में चल रही कैंसर मरीजों की थैरेपी जल्द शुरू हो सकती है. पिछले सात साल से रेडियो एक्टिव सोर्स की कमी के कारण मेरठ के सरकारी अस्पतालों में कैंसर के मरीजों को थैरेपी नहीं मिल पा रही थी. कैंसर पीडि़तों को थैरेपी के लिए दिल्ली जाना पड़ रहा था.

मेरठ (ब्यूरो)। करीब सात साल से अधर में चल रही कैंसर मरीजों की थैरेपी जल्द शुरू हो सकती है। पिछले सात साल से रेडियो एक्टिव सोर्स की कमी के कारण मेरठ के सरकारी अस्पतालों में कैंसर के मरीजों को थैरेपी नहीं मिल पा रही थी। इस कारण से मेरठ ही नहीं आसपास के जनपदों के कैंसर पीडि़तों को थैरेपी के लिए दिल्ली जाना पड़ रहा था। लेकिन, अब यह रेडियो एक्टिव सोर्स उपलब्ध हो चुका है और जल्द ही पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मरीज मेडिकल कॉलेज में इलाज करा सकेंगे।

2015 से बंद थी सुविधा
जिले के सरकारी अस्पतालों में कैंसर के मरीजों को रेडियो थैरेपी की सुविधा फिलहाल नहीं मिल रही है। पीएल शर्मा जिला अस्पताल में रेडियो थैरेपी की सुविधा पहले से ही नहीं है, जबकि सबसे पहले मेरठ में रेडियो थैरेपी के लिए सीजीएम-137 रेडियो एक्टिव सोर्स 1997 में खरीदा गया था। लेकिन, इसका प्रयोग ही नहीं हो सका। तभी से यह बेकार पड़ा हुआ था। अब इसे मुंबई के परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (एटॉमिक एनर्जी रेग्युलेट्री बोर्ड) में नष्ट करने के लिए भेज दिया गया है। इसके बाद कोबाल्ट 60 सोर्स से मेडिकल कॉलेज में रेडियो थैरेपी शुरू की गई थी जो कि 2015 तक जारी रही। लेकिन, 2015 में मेडिकल कॉलेज के कैंसर विभाग की एकमात्र रेडियो थैरेपी मशीन का रेडियो एक्टिव सोर्स कोबाल्ट 60 खत्म होने के कारण कैंसर मरीजों की थैरेपी बंद हो गई थी। इस कारण से अस्पताल आने वाले कैंसर के मरीजों का बाकि इलाज तो चल रहा था। लेकिन, सबसे जरूरी थैरेपी से ही कैंसर के मरीज वंचित थे।

सवा करोड़ में मिला कोबाल्ट
मेरठ मेडिकल कॉलेज में हर साल करीब 700 से अधिक कैंसर से पीडि़त मरीज रेडियो थैरेपी के लिए आते हैं। लेकिन, इस मशीन के बंद होने से मरीज दिल्ली जाने को मजबूर थे। लगातार मरीजों की इस समस्या को बढ़ता देख कोबाल्ट 60 की डिमांड शासन से की जा रही थी। शासन ने गत वर्ष इस पर मुहर लगा दी थी। इसके लिए शासन ने सवा करोड़ रुपए से अधिक राशि मेडिकल कॉलेज प्रशासन को दी थी। जिसके बाद मुंबई के परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (एटॉमिक एनर्जी रेग्युलेट्री बोर्ड) से कोबाल्ट 60 को सुरक्षा में मेडिकल लाकर इंस्टॉल किया गया था। लेकिन, इंस्टॉल होने के बाद भी रेडियो थैरेपी कुछ तकनीकि कारणों से शुरू नहीं हो पा रही थी।

ये है रेडियो थैरेपी
रेडियो तरंगों का उपयोग करके की जाने वाली चिकित्सा विकिरण चिकित्सा (रेडिएशन थैरेपी या रेडियो थैरेपी) कहलाती है। इस विकरण की मदद से कैंसर के उपचार में खराब कोशिकाओं को मारने का काम किया जाता है। निजी अस्पतालों में रेडियो थैरेपी के दो से ढाई लाख रुपए लगते हैं। लेकिन, मेडिकल कॉलेज में यह सुविधा मात्र एक से दो हजार रुपए में उपलब्ध हो सकेगी।

वर्जन
कोबाल्ट 60 की इंस्टॉलेश्न की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। इस माह मेडिकल कॉलेज में रेडियो थैरेपी शुरू हो जाएगी।
-डॉ। एके तिवारी, विकिरण सुरक्षा अधिकारी, मेडिकल कॉलेज

Posted By: Inextlive