मल्हू आर्य इंटर कॉलेज की प्रिंसिपल डॉक्टर नीरा तोमर चलाती है एनजीओ पर्यावरण संरक्षण और समाज सेवा के कार्यों में आगे बढ़कर कर रही काम।

मेरठ (ब्यूरो)। मेरा जन्म वेस्ट यूपी के बहुत ही रूढि़वादी और ग्रामीण परिवार में हुआ था। आर्थिक रूप से परिवार सक्षम नहीं था। मैं अपने आसपास की महिलाओं को हर दिन प्रतिबंधित जीवन और उत्पीडऩ झेलते हुए देखती थी। लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव को महसूस किया। गरीब और अमीर परिवार के बच्चों के साथ स्कूल में होने वाले भेदभाव को भी झेला। बस तभी से मन में ठान लिया था कि लड़कियों को ऐसे जीवन से मुक्ति दिलाकर ही दम लूंगी। मेरा सपना तब टूटने लगा जब 12वीं होते ही परिजनों ने शादी करवा दी। लगा अब कुछ नहीं कर पाऊंगी। श्री मल्हू सिंह आर्या कन्या इंटर कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ। नीरा तोमर आज समाज के लिए एक मिसाल हैं। हजारों मुश्किलें पार कर न केवल खुद को आगे बढ़ाया बल्कि अब दूसरी लड़कियों को भी शिक्षित कर रही हैं। यही नहीं, समाज सेवा के कार्यों में भी जी-जान से जुटी हुई हैं।

पति ने दिया साथ
कहते हैं कि जहां चाह वहां राह।।।शादी के बाद एक दिन मैंने पति रामपाल तोमर के साथ अपने विचार शेयर किए तो उन्होंने सबसे पहले मुझे मेरी पढ़ाई पूरी करने की सलाह दी। अंधे को क्या चाहिए था। केवल दो आंखें और वो मुझे मिल गई थी बस फिर पढऩे में जुट गई। पीजी तक शिक्षा पूरी की। डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। ग्रामीण परिवेश में रहकर शादी के बाद पढऩा और बच्चों को पालना किसी चुनौती से कम नहीं है। परंतु मुझे महिलाओं के जीवन मे परिवर्तन लाना था, इसलिए अपनी पढ़ाई पूरी की। खुद टीचर बनी और माध्यमिक शिक्षा परिषद में प्रिंसिपल पद तक पहुंची। मेरे दो बच्चे हैं दोनों को अच्छी शिक्षा दिलवाई। बेटी अब अमेरिका में सैटेल है। बेटा भी अच्छे पद पर कार्यरत है।

शिक्षा के लिए किया प्रेरित
गरीब परिवार की लड़कियों की पढ़ाई जारी रखने के लिए वर्ष 2002 से हर वर्ष 15-20 लड़कियों की खर्च उठा रही हूं। मेधावी स्टूडेंट्स को स्कॉलरशिप प्रदान करवाती हूं। लड़कियां अधिक ये अधिक पढऩे के लिए प्रेरित हों, इसके लिए एक ग्रुप भी बनाया है। इसके सदस्य नुक्कड़ नाटक के जरिए अलग-अलग जगह जाकर बाल विवाह, एसिड अटैक, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे गंभीर विषयों पर लोगों को अवेयर करते हैं।

नोट्स भी उपलब्ध करवाए
दो साल पहले जब कोविड महामारी फैली। लॉकडाउन के कारण सब घरों में कैद हो गए थे, मैं तब भी घर में नहीं बैठी। मैंने खुद मास्क सिलने शुरू किए और जरूरतमंद लोगों को वितरित किए। इसी दौरान पता चला कि स्कूल की कई स्टूडेंटस के परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। मैं उनके परिवारों से मिली और उन्हें हिम्मत दी। महिलाओं से बात की और उन्हें मास्क सिलने, सेवइयां तोडऩे, स्वेटर बुनने, मसाले बनाने जैसे कई कार्यों के लिए प्रेरित किया। उन्हें सामान मुहैया करवाया और तैयार सामान के ऑर्डर अपने रिश्तेदारों, दोस्तों समेत कई लोगों को दिलवाएं। गरीब बच्चियों की पढ़ाई न छूटे इसलिए उनके घर जाकर नोट्स भी उपलब्ध करवाए

देहदान की ली शपथ
मैं अक्सर देखती-पढ़ती थी कि मेडिकल स्टॅूडेंट्स को डेडबॉडी न मिलने के कारण पढ़ाई में दिक्कत होती है। मरने के बाद भी मैं समाज को कुछ देकर जाऊं, इसलिए दो वर्ष पूूर्व ही मेडिकल कॉलेज को अपनी देहदान कर दी। मेरे ये प्रयास उस जुगनू की तरह हैं, जो अंधेरे में टिमटिमाता है लेकिन, मुझे विश्वास है कि मेरे जैसे कई और जुगनू आगे आएंगे और महिलाओं के जीवन को प्रभावित करने वाली अंधकार रूपी कुरीतियों का समूल विनाश करने में सफल होंगे।

पर्यायवरण संरक्षण बेहद जरूरी
मैैं स्वच्छता अभियान से भी जुड़ी हैं। हर सप्ताह तीन घंटे अपने शहर को स्वच्छ करने के लिए निर्धारित किए हुए हैं। पहल संस्था के साथ जुड़कर मैं इस कार्य में जुटती हूं। वहीं आते-जाते कोई घायल व्यक्ति मुझे मिलता है तो उसे अस्पताल भी पहुंचाती हूं। अब तक मैं कई घायलों को अस्पताल में एडमिट करवाकर इलाज भी करवा चुकी हूं।

Posted By: Inextlive