मेहनत पूरी, आस अधूरी
- देश को आर्चरी में 114 इंटरनेशनल मेडल से नवाज चुका है झारखंड
- फिर भी एक अदद नौकरी को तरस रहा झारखंड का आर्चर sharma.saurabh@inext.co.in Meerut : अगले साल रियो ओलंपिक के लिए क्वालिफाई करने वाली भारतीय महिला तीरंदाज कहां से हैं? क्या आपको पता है कि देश को सबसे अधिक इंटरनेशनल मेडल किस स्टेट के प्लेयर्स देते हैं? चलिए आपको भी बताते हैं। वो शहर कोई और नहीं बल्कि झारखंड हैं। दीपिका कुमारी, लक्ष्मी रानी मांझी, रिमिल बिरूली। झारखंड की इन तीनों प्लेयर्स के ऊपर ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने का भार होगा। आपको यकीन नहीं होगा यही झारखंड के प्लेयर देश के 114 इंटरनेशनल मेडल दिला चुका हैं। जो पूरे देश में किसी भी स्टेट के मुकाबले में सबसे अधिक हैं। फिर भी हालात बहुत हैं। नहीं है नौकरीझारखंड में करीब 200 ऐसे सीनियर नेशनल और इंटरनेशनल प्लेयर्स हैं। जो देश और विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं। मेडल जीतकर लेकर आते हैं, लेकिन जब सरकार द्वारा के कुछ करने की बारी आती है तो महज कुछ रुपए प्राइज मनी देकर छुटकारा पा लेती हैं। झारखंड की सबसे सीनियर कंपाउंड प्लेयर झानू हंसदा बताती हैं झारखंड की वह इकलौती ऐसी आर्चर हैं, जिन्हे गवर्नमेंट की ओर से पुलिस में इंस्पेक्टर की नौकरी मिली।
जा रहे हैं बाहर सरकार की ओर की जा रही अनदेखी झारखंड के आर्चर्स को बाहर की ओर दखेल रही है। कई ऐसे प्लेयर्स हैं जो रेलवे, आईटीबीपी और बाकी ऑगर्नाइजेशन की ओर रुख कर रहे हैं। तीन साल तक दूर रहा पलटन रेलवे से खेलने वाले झारखंड के निवासी पलटन कहते हैं कि उन्होंने रेलवे को मजबूरी में ज्वाइन करना पड़ा। क्योंकि घर चलाना और आर्चरी को अफोर्ड करने के लि नौकर काफी जरुरत थी। घर में प्रॉब्लम की वजह से तीन साल तक आर्चरी से दूर रहने के बादइ उन्होंने वापसी की और मेडल जीते। रेलवे की नौकरी के दौरान प्रैक्टिस का मौका कम ही मिल पाता है। कुछ ऐसा रहा सफर - 2004 में आर्चरी की शुरूआत। - 2006 में नेशनल रैंकिंग टूर्नामेंट में गोल्ड। - 2006 में मैक्सिको में हुई जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड। - 2007 में चाइना एशियन चैंपियनशिप में टीम में गोल्ड। - 2009 में इंडोनेशिया में एशियन चैंपियनशिप में इंडीविजुअल में सिल्वर और टीम में गोल्ड। - 2010 में थाईलैंड में हुई 4 स्टेज वर्ल्ड चैंपियनशिप में ओवरऑल चैंपियन।जब नहीं दे सका वर्ल्ड कप का ट्रायल
झारखंड के दीपक करमाकर मौजूदा समय में इंडियन तिब्बत बॉर्डर पुलिस में कांस्टेबल हैं। वो बताते हैं उनकी जिंदगी में एक ऐसा भी फेज आया जब उनका धनुष टूट गया था। जूनियर वर्ल्ड कप के लिए ट्रायल था और मेरे पास धनुष के लिए कोई स्पांसर नहीं था। मुझे अपने आप पूरा भरोसा था अगर ट्रायल देता तो टीम में ही सेलेक्ट नहीं होता। बल्कि गोल्ड मेडल भी जीतता। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। जब मैंने 2000 में आर्चरी की शुरूआत की थी तो ामत्र 2500 रुपए के धनुष से खेला था। ऐसा रहा सफर - 2002 में छत्तीसगढ़ में हुए इंडियन राउंड सब जूनियर नेशनल में गोल्ड। - 2007 में साउथ एशियन गेम्स में गोल्ड - 2007 में एशियन सर्किट मीट में ब्रॉन्ज - 2010 में गुवाहटी नेशनल में गोल्ड। नौकरी के लिए लड़ी लड़ाईकई नेशनल और इंटरनेशनल टूर्नामेंट में देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी झारखंड के झानू हंसदा झारखंड की सबसे सीनियर खिलाड़ी हैं। कई गोल्ड मेडल उनकी झोली में हैं। फिर भी सरकार की ओर से एक अदद नौकरी के लिए तरसती रही। 1994 से आर्चरी की शुरूआत करने वाली झानू 2007 में 13 की लंबी लड़ाई लड़ने के बाद झारखंड पुलिस में इंस्पेक्टर की नौकरी मिली। उसके बाद उन्होंने 2010 में दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में ब्रॉन्ज में मेडल जीता।
रिकर्व के बाद कंपाउंड में की शुरुआत झारखंड की निवासी भाग्यवती चानू 1997 में टाटा आर्चरी एकेडमी से शुरूआत की। शुरूआती दौर में रिकर्व में कई मेडल जीतने के बाद अपने आपको कंपाउंड के लिए तैयार करना और दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में टीम ब्रॉन्ज जीतना बड़े साहस की बात थी। लेकिन ऐसा भी दौर आया जब उनके पास धनुष टूट जाने के बाद दूसरा धनुष लेने के लिए रुपए नहीं थे। 2004 की इस घटना के बाद बड़ी मुश्किलों के बाद रिकर्व को छोड़ कंपाउंड में हाथ आजमाया। उन्हें इस बात का भी अफसोस है कि सरकार की ओर से प्रॉपर सहयोग नहीं मिलता है।