जब खुद एलयू वीसी ने सुनाई कविता
- शताब्दी वर्ष के अंतिम दिन शिक्षकों और छात्रों का काव्य पाठय हुआ आयोजित
LUCKNOW : एलयू ने अपने शताब्दी समारोह को प्रेरणादायक उत्सव के रूप में प्रस्तुत किया। इसमें स्टूडेंट्स ही नहीं पूर्व व वर्तमान में जुड़े लोगों में उत्साह दिखाई दिया। बुधवार को मालवीय सभागार में आयोजित लिटरेसी कार्यक्रम में, यूनिवर्सिटी कैंपस के कवियों द्वारा काव्य पाठ का आयोजन किया गया। इस आयोजन में छात्रों के साथ साथ कुछ संकाय सदस्यों ने भी भाग लिया। कार्यक्रम में वीसी प्रो। आलोक कुमार राय भी अपने आपको रोक नहीं सके। उन्होंने स्टूडेंट्स के बीच अपनी काव्य रचना सुनाई। यह प्रसिद्ध हिंदी कवि रामधारी सिंह दिनकर से प्रेरित थी। छात्रों ने सुनाई एक बढ़कर एक कवितायह कार्यक्रम छात्रों के प्रदर्शन के साथ शुरू किया गया, जिसमें शिवम ने अपनी कविता वक्त कम है तो चलिए शुरुआत की जाए, के साथ अपनी प्रस्तुति शुरू की थी। एक कविता हमें निरंतर चलना होगा के साथ समाप्त हुई। इसे उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई को समर्पित किया। इसके बाद ज्योत्सना सिंह ने प्यासी ज़मी लहू सारा पिला दिया, और जा रहा हूं घर दूर दुनिया से बिछड़ कर प्रस्तुत किया। वहीं उदय राज सिंह ने क्या पाया हमने गया जबकि हर्षित मिश्रा ने मन में अपने भांग चढ़ाये फिरते हैं, बादल बरसो ऐसे गांव में प्रस्तुत किया। इसके बाद मृदुल पांडे ने है बदली दिशा हवाओं में प्रस्तुत किया। इसके बाद आलोक रंजन ने कवियों की वाणी में सूर्य का साथ मिले और कायम इन अंधेरों का प्रदर्शन किया। रिया कुमारी ने एक गीत ऐ वतन भारत हमारा, तू हमारी जान है गाया। शालीन सिंह ने अंग्रेजी में एक कविता प्रस्तुत की। यूनिवर्सिटी 100 वर्ष पुराना है,। दिव्या तिवारी ने यह कलमकार की दुनिया है प्रस्तुत किया।
शिक्षक भी नहीं रहे पीछे छात्रों के बाद कला संकाय से जुड़े शिक्षकों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं, जिसमें प्रो। राम सुमेर यादव, प्रो। वाईपी सिंह, डॉ। कृष्ण श्रीवास्तव जैसे सदस्यों ने अपनी रचनाएं सुनाई। इसकेबाद डॉ। अयाज़ अहमद इसलाही ने अपनी स्वयं की उर्दू रचनाएं प्रस्तुत कीं, जैसे मांझी इस कश्ती के तलबगार हैं और डॉ। विनीत कुमार वर्मा ने भी अपनी और की कुछ रचनाएं प्रस्तुत कीं जिसमे क्या रंग है, रूप है, हमाल है,