इसका सबसे बड़ा खामियाजा प्रदेश के बिजली उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ेगा क्योंकि लगभग एक स्मार्ट प्रीपेड मीटर पर 9000 रुपये का कुल खर्च आएगा जिसमें केवल 900 रुपये केंद्र सरकार अनुदान के रूप में देगी और 8100 रुपये प्रति मीटर उपभोक्ताओं के बिजली दर में पास होगा।


लखनऊ (ब्यूरो)। आखिरकार उपभोक्ता परिषद की आशंका सही साबित हुई। 25 हजार करोड़ की लागत के स्मार्ट प्रीपेड मीटर का टेंडर खुल गया है। हैरानी की बात यह है कि एक भी मीटर निर्माता कंपनी सामने नहीं आई है, जबकि उनके स्थान पर देश के निजी घराने सामने आए हैैं।टेंडर की ओपनिंग शुरू की गई


2.5 करोड़ 4जी स्मार्ट प्रीपेड मीटर, जिस स्कीम का अनुमोदन अभी नियामक आयोग से प्राप्त नहीं हुआ है, 25 हजार करोड़ लागत वाले इस टेंडर की ओपनिंग बुधवार से बिजली कंपनियों ने शुरू कर दी है। हैरानी की बात यह है कि देश में पहली बार ऐसा हुआ है, जब स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर में किसी भी मीटर निर्माता कंपनी ने भाग नहीं लिया बल्कि देश के चुनिंदा निजी घरानों ने टेंडर भरा है। स्पष्ट है कि राज्य सरकारों ने देश के निजी घरानों को टेंडर देने के लिए पूरी कार्य योजना तैयार कर बड़ी क्षमता का टेंडर निकाला है। जब देश में प्रधानमंत्री 5जी की तकनीक लांच कर चुके हैं, उस समय प्रदेश की बिजली कंपनियां 4जी के टेंडर पर टूट पड़ी हैं।चोर दरवाजे से टेंडर खुला

राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा की माने तो चोर दरवाजे से स्मार्ट प्रीपेड मीटर का जो टेंडर खुला है, इसमें वे निजी घराने सामने आ रहे हैं, जो भविष्य में ऊर्जा क्षेत्र पर निजीकरण के रूप में अपना कब्जा जमा सकते हैैं। उन्होंने बताया कि बुधवार को मध्यांचल में जिन चार निजी घरानों का टेंडर का पार्ट वन खुला है, उसमें देश की बड़ी कंपनी जीएमआर ग्रुप, एलएनटी ग्रुप व ईईएसएल की सहभागी कंपनी इंटेली स्मार्ट प्रमुख है। इसी प्रकार प्रदेश की दूसरी बिजली कंपनियों में भी टेंडर खोलने की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है।नियामक आयोग को पहले बताया

उपभोक्ता परिषद ने विद्युत नियामक आयोग को पहले ही बता दिया था कि केंद्र सरकार के दबाव में देश के कुछ निजी घराने स्मार्ट प्रीपेड मीटर का टेंडर लेने की जुगत में हैं और जब टेंडर खुला तो उपभोक्ता परिषद की बात सच साबित हुई। बिजली कंपनियां पहले जब मीटर या ट्रांसफार्मर का टेंडर निकालती थीं तो उसकी मुख्य शर्त यही होती थी कि निर्माता कंपनी ही भाग ले क्योंकि सभी को पता है कि बिचौलिया को जब टेंडर प्राप्त हो जाता है तो वह टेंडर को सबलेट करके अपना बड़ा लाभ कमा कर निर्माता कंपनियों से मीटर खरीदेगा। परिषद अध्यक्ष का कहना है कि सीधे मीटर निर्माता कंपनियां टेंडर में भाग ले सकती थीं, लेकिन वे टेंडर में शामिल न हो सकें, इसके लिए आठ क्लस्टर के टेंडर को निरस्त करके 4 कलस्टर का टेंडर केवल इसलिए निकाला गया, जिससे प्रत्येक टेंडर की लागत से 6000 करोड़ या उससे ऊपर हो जाए और कुल मिलाकर मीटर निर्माता कंपनियों की क्षमता इतने बड़े टेंडर को लेने की नहीं होगी।उपभोक्ताओं को खामियाजाइसका सबसे बड़ा खामियाजा प्रदेश के बिजली उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ेगा, क्योंकि लगभग एक स्मार्ट प्रीपेड मीटर पर 9000 रुपये का कुल खर्च आएगा, जिसमें केवल 900 रुपये केंद्र सरकार अनुदान के रूप में देगी और 8100 रुपये प्रति मीटर उपभोक्ताओं के बिजली दर में पास होगा। जिसकी वजह से उपभोक्ताओं की बिलिंग पर असर साफ देखने को मिलेगा।

Posted By: Inextlive