केजीएमयू में टीचर को मिला नया चेहरा
लखनऊ (ब्यूरो)। कोरोना वायरस के दिए दर्द से उबरने में लोगों को काफी समय लग रहा है, जिसने उनकी रोजमर्रा की जिंदगी में मुसीबतें बढ़ा दी हैं। हालांकि, केजीएमयू के डॉक्टरों ने कोरोना की दूसरी लहर में संक्रमित होने के बाद ब्लैक फंगस के संक्रमण से अपने चेहरे के दाहिने हिस्से का अधिकांश भाग गवां चुके उत्तराखंड निवासी 56 वर्षीय टीचर को 9 माह के जटिल इलाज के बाद न केवल दूसरा चेहरा देने में कामयाबी हासिल की, बल्कि मरीज को दूसरा जीवन देने का भी काम किया। केजीएमयू वीसी डॉ। बिपिन पुरी ने इसके लिए पूरी टीम को बधाई दी और कहा कि यूनिट के एडवांसमेंट की योजना बनाई जा रही है।एक हिस्सा पूरी तरह से खराब
उत्तराखंड निवासी 56 वर्षीय स्कूली टीचर को कोरोना की दूसरी लहर में संक्रमण हुआ था। इसके बाद फिर खतरनाक ब्लैक फंगस या म्यूकोर्मिकोसिस हो गया, जिसने उनके दाहिने चेहरे का अधिकांश भाग नष्ट कर दिया। इसके बाद 2021 में एम्स ऋषिकेश में जीवन बचाने के लिए उनकी सर्जरी हुई, लेकिन इसके चलते उन्होंने अपनी दाहिनी आंख, ऊपरी जबड़ा और दांत सहित लगभग आधा चेहरा खो दिया था, जिससे उनका सामान्य खाना, निगलना, बोलना और क्लास लेना तक लगभग असंभव हो गया था। सूरत बुरी तरह प्रभावित हुई और लोगों और समाज का सामना करना एक बड़ी चुनौती बन गया।दो चरणों में उपचार किया गयामरीज के परिजन उसे लेकर केजीएमयू के मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थेटिक यूनिट, प्रोस्थोडॉन्टिक्स विभाग आए। मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थेटिक यूनिट के प्रभारी प्रो। सौम्येंद्र वी सिंह ने बताया कि पुनर्वास जटिल था और इसमें 9 महीने लगे। उपचार 2 चरणों में किया गया था। पहले में ओबट्यूरेटर प्रोस्थेसिस बनाया गया। जिससे रोगी का खाना, बोलना और निगलना दोबारा संभव हो पाया। दूसरे चरण में फेशियल प्रोस्थेसिस बनाई गई, जिसने मरीज को अपने छात्रों और समाज का सामना करने का आत्मविश्वास दिया।शिक्षण काम जारी रखेंगेविभागाध्यक्ष प्रो। पूरन चंद ने बताया कि डिजिटल स्पेक्ट्रोफोटोमेट्री का उपयोग करके ऑर्बिटल प्रोस्थेसिस, जो सिलिकॉन से बनती है, को वास्तविक त्वचा जैसा बनाया गया और ऑबट्यूरेटर प्रोस्थेसिस, जो ऐक्रेलिक से बनाई जाती है, को नवीनतम 3डी टेक्नोलॉजी से प्रिंट किया गया। प्रो। जितेंद्र राव, डॉ। दीक्षा आर्य और डॉ। ए सुनयना टीम के अन्य सदस्य थे। वहीं, इलाज के बाद ठीक होने पर मरीज ने कहा कि वह अध्यापन फिर से शुरू करेंगे और सेवानिवृत्ति के बाद भी मुफ्त में शिक्षण जारी रखेंगे।