05 हजार विसरा का स्टेटस आज भी पेंडिंग
लखनऊ (ब्यूरो)। आपराधिक घटना होने पर पुलिस टीम का पहला काम सबूत और नमूनों को एकत्र करना होता है, ताकि अपराधी तक जल्द पहुंचा जा सके। हालांकि, कई बार पोस्टमार्टम में मौत का कारण न पता चलने पर विसरा सुरक्षित रख फोरेंसिक लैब भेज दिया जाता है, ताकि मौत के कारणों का खुलासा हो सके। पर अधिकतर केसों में मौत की वजह सामने आ ही नहीं पाती है। नतीजतन, यह विसरा कई-कई महीनों फोरेंसिक लैब में धूल फांकते रहते हैं। जबकि 90 दिनों के चार्जशीट पेश करने से पहले रिपोर्ट आ जानी चाहिए। ऐसे में परिवार तो इंसाफ की गुहार लगा ही रहा होता है, साथ ही कोर्ट में भी लंबित केसों की कतार लग जाती है। जिसे देखते हुए दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने एक खास रिपोर्ट तैयार की है
कई सालों तक पेंडिंग रहती है रिपोर्ट
फॉरेंसिक लैब के एक अधिकारी ने बताया कि महानगर स्थित लैब में रोजाना औसतन 15 से 20 विसरा आते हैं। सूत्रों के अनुसार, लैब में विसरा के करीब 5,000 से अधिक नमूने जांच के इंतजार में हैं। ये लखनऊ के अलावा, सीतापुर, हरदोई, उन्नाव, रायबरेली और लखीमपुर खीरी आदि कई शहरों के केस हैं। वहीं, लखनऊ के केसों में 250 से अधिक विसरा जांच की पेेंडेंसी है, जिनकी संख्या कई बार अधिक भी होती है। यही वजह है कि विसरा की जांचें लंबित हैं। सूत्रों का कहना है कि हाई प्रोफाइल मामलों में अधिकारियों के हस्तक्षेप की वजह से जांच हो जाती है, लेकिन आम दिनों में आने वाले नमूने कई-कई महीने पड़े रहते हैं।
अधिकारियों ने बताया कि हत्या, सुसाइड, एक्सीडेंट, संदिग्ध मौत के केसों में पुलिस पोस्टमार्टम हाउस से मृतक का विसरा प्रिजर्व करती है। इसके बाद इसे फॉरेंसिक लैब भेजा जाता है। जांच के लिए तीन जार में विसरा के नमूने रखे जाते हैं। एक जार में करीब आधा किलो वजन का पेट के भीतर का हिस्सा होता है, दूसरे में लीवर, प्लीहा (स्प्लीन), छोटी आंत का करीब 20 इंच का टुकड़ा, दोनों तरफ की आधी-आधी किडनी होती है, जबकि तीसरे जार में खून के सैंपल होते हैं। विसरा के नमूनों को सुरक्षित रखने की अधिकतम अवधि 60 से 90 दिनों की होती है। इसके बाद भी अगर कोई नमूना रखा जाता है तो वह खराब हो जाता है। ऐसे नमूनों की जांच में निर्धारित परिणाम नहीं मिल पाते।
स्टाफ की भी कमी
नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि एक औसत के हिसाब से रोजाना करीब 20 बिसरा आते हैं, जिसकी कई स्टेप में जांच की जाती है। इसके लिए लैब में करीब 100 से 120 लोग हैं, जो अलग-अलग कामों को देखते हैं, लेकिन यह संख्या उतनी नहीं है, जितनी की जरूरत है। जबकि यहां की स्ट्रेंथ 200 से अधिक होनी चाहिए, ऐसे में फोरेंसिक लैब में और भी डॉक्टर्स की भर्तियों की जरूरत है।
फोरेंसिक लैब के अधिकारियों का दावा है कि नमूने की जांच के लिए लैब को दो से तीन दिन का समय लग सकता है। डॉक्टर जल्द से जल्द सही रिपोर्ट देने का प्रयास करते हैं। साथ ही अपराध किस स्तर का है, इस पूरे मामले की जांच पर निर्भर करता है, लेकिन एक नमूने की जांच के लिए कम से कम दो से तीन दिन लगते ही हैं। वहीं, फॉरेंसिक लैब के डायरेक्टर सुधीर कुमार का कहना है कि यहां पर लखनऊ के अलावा अन्य जिलों से भी केस आते हैं, जिसका समय से निस्तारण कर दिया जाता है।
फॉरेंसिक जांच के फायदे
किसी संदिग्ध मौत या सनसनीखेज हत्या में पोस्टमार्टम होने के बाद भी कुछ नमूने सुरक्षित रखे जाते हैं। लैब शरीर के हर जरूरी अंग की जांच कर मौत की असल वजह जानने का प्रयास करती है। अगर फॉरेंसिक जांच के फायदे की बात करें तो किसी भी वारदात के अनुसार ही कार्रवाई होती है। उदाहरण के तौर पर अगर कोई जहर से मरता है तो इसमें सामान रखने के कंटेनर्स को भी लिया जाता है। साथ ही गैस्ट्रिक लावास नाम का एक नमूना लिया जाता है और इन सभी का रासायनिक विश्लेषण कर मौत की गुत्थी सुलझाने का प्रयास किया जाता है।
कई थानों के मालखाना में भी विसरा के सैकड़ों नमूने पड़े सड़ रहे हैं। जांच पूरी न होने और रिपोर्ट न आने से विवेचकों की आफत रहती है। जांच पूरी न होने पर विवेचक हत्या और हादसों के बीच फर्क तय नहीं कर पा रहे हैं, जिसका असर मुकदमों पर पड़ रहा है। मुकदमे लंबित हो रहे हैं और विवेचकों को फटकार मिल रही है। वहीं, महत्वपूर्ण केसों की विसरा जांच प्राथमिकता से कराई जाती है। देश में मौजूद फॉरेंसिक साइंस लैब
हैदराबाद
कोलकाता
चंडीगढ़
नई दिल्ली
गुवाहटी
भोपाल
पुणे यूपी में मौजूद फॉरेंसिक साइंस लैब
लखनऊ
आगरा
मुरादाबाद
वाराणसी