राम मंदिर मामले की सुनवाई करे फास्ट ट्रैक कोर्ट: रविशंकर प्रसाद
राम मंदिर मामले की सुनवाई करे फास्ट ट्रैक कोर्ट: रविशंकर प्रसाद
- कानून मंत्री ने न्यायिक सेवा में आरक्षण का किया समर्थन -अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद का राष्ट्रीय अधिवेशन शुरू LUCKNOWकेंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सोमवार को राम मंदिर मामले को लेकर कोर्ट के रवैये पर निराशा जताई। उन्होंने कहा कि लोग मुझसे सवाल पूछते हैं कि जब अदालतें रात में बैठ सकती हैं, एडल्ट्री व सबरीमाला जैसे मसलों पर फैसला आ सकता है, तो राम मंदिर पर पिछले दस सालों से फैसला क्यों नहीं आ पाया। एक मंत्री नहीं एक आम नागरिक के रूप में सुप्रीम कोर्ट से मेरी अपील है कि इस केस की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो ताकि, इस पर जल्द फैसला आ सके। वे सोमवार को एमिटी यूनिवर्सिटी में आयोजित अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के राष्ट्रीय अधिवेशन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मुझे न्यायपालिका पर गर्व है और पूरा विश्वास है।
पेंडिंग मुकदमों की जिम्मेदारी तय होकानून मंत्री प्रसाद ने अधिवेशन को संबोधित करते हुए जजों के खाली पड़े पदों का मामला उठाते हुए कहा कि निचली अदालतों में पांच हजार से अधिक पद रिक्त हैं। आखिर क्यों? इसमें न राज्य सरकार की भूमिका है न केंद्र सरकार की। यह हाईकोर्ट का काम है। ये भर्तियां होनी चाहिए। इसी संदर्भ में उन्होंने यह भी कहा कि मैं ऑल इंडिया ज्युडीशियल सर्विसेज का पक्षधर हूं। जब आईएएस-पीसीएस की चयन संस्था हो सकती है तो न्यायिक अधिकारी की क्यों नहीं। यही नहीं हम इसमें एससी-एसटी को आरक्षण भी देना चाहते हैं। उनकी पीड़ा है कि वह जजों की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाते। यह मेरी सोच है और इसका कुछ हाईकोर्ट विरोध करते हैं तो कुछ समर्थन भी। उन्होंने दस साल से पेंडिंग चल रहे मुकदमों के लिए जिला न्यायाधीश को जिम्मेदार बनाने की बात भी कही। उद्घाटन सत्र में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एम आर शाह, इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर, न्यायमूर्ति एआर मसूदी, प्रदेश के विधि मंत्री ब्रजेश पाठक, अधिवक्ता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनायक दीक्षित ने भी विचार व्यक्त किए।
हाईकोर्ट में मुकदमा लड़ने वाले वादकारी अब यह समझ सकेंगे कि न्यायमूर्तियों ने उनके मामले में क्या और किस आधार पर फैसला दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट जनवरी से उन्हें फैसलों की ट्रांसलेट और ऑथराज्ड कॉपी उपलब्ध कराएगा। हाईकोर्ट की प्रशासनिक समिति की बैठक में इस निर्णय को मंजूरी मिल चुकी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर ने जानकारी देते हुए कहा कि यह विडंबना ही है कि लोग अपने मुकदमों के निर्णय को समझ नहीं पाते। अनुच्छेद 348 में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की भाषा अंग्रेजी है। ¨हदी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को वह स्थान नहीं मिल सका, जो मिलना चाहिए। इस बात की भी कोशिश की जा रही है कि ऐसे लोगों का न्यायपालिका में उचित प्रतिनिधित्व हो।