राजधानी में गणपति उत्सव की तैयारियां तेज
लखनऊ (ब्यूरो)। तालकटोरा स्थित मूर्तिकार श्रवण प्रजापति ने बताया कि इस बार 12 फीट की मूर्ति खासतौर पर बनाई है। जिसे सिद्धीविनायक का रूप दिया गया है। इसे शुद्ध कच्ची मिट्टी से बनाय गया है। लखनऊ के कारीगरों द्वारा स्पेशल ज्वेलरी तैयार कराई गई है। साथ ही बनारसी साड़ी से वस्त्र तैयार किए गये है। यह मूर्ति की लागत करीब 1 करोड़ से अधिक की है।कई माह लगे बनाने में
जिसे बनाने में कई महीने लगे है। चूंकि हम लोग तालाब की मिट्टी से मूर्ति तैयार करते हैं। जो अब शहर में नहीं मिलती है। इसलिए यह मिट्टी खासतौर पर बख्शी का तालाब और मलिहाबाद आदि से मंगवाई जाती है। जिससे मूर्तियों के दाम अन्य के मुकाबले थोड़े अधिक होते है। अच्छी बात यह है कि इसबार मूर्तियों की डिमांड कोरोना के बाद पहली बार अधिक हुई है। बड़ी संख्या में आर्डर मिले है। हमारे यहां 20-25 हजार से मूर्तियों की रेंज शुरू होती है।ईको फ्रेंडली मूर्ति के प्रति जागरूकता
चित्रकार और मूर्तिकार पंकज गुप्ता ने बताया कि वो बीते चार वर्षों से मूर्तियां बना रहे हैं। हमेशा साढू मिट्टी से ही गणपति की मूर्तियां बनाते हैं। जिसका प्रयोग महाराष्ट्र के मूर्तिकार करते हैं। यह मिट्टी राजस्थान और गुजरात के पास मिलती है। बायोडिग्रेडेबल सामानों का इस्तेमाल मूर्ति को बनाने में किया जाता है। मूर्ति में किसी प्रकार का केमिकल नहीं यूज किया जाता है। इसबार मूर्ति की मिट्टी में गेंदे के बीज भी डाले गये हंै ताकि भू-विसर्जन के बाद उसमें से पौधे निकल सकें। साथ में बैग भी दे रहे हैं। जिससे पर्यावरण संरक्षण को बल भी मिलेगा। हालांकि, लोग अलग-अलग डिमांड करते है लेकिन ईको-फ्रेंडली मूर्तियां बनाने में यह सब पूरा करना मुमकिन नहीं होता है। हालांकि, लोगों में जागरूकता बढ़ी है। बीते साल के मुकाबले इसबार डिमांड काफी आई है।बाहर से आती है स्पेशल मिट्टीवहीं, मूर्तिकार निलोय मित्रा ने बताया कि हम लोग शुरुआत से खास काली मिट्टी से मूर्ति बनाते चले आ रहे हैं। जो लखनऊ के बाहर से मंगवाई जाती हैं। जो खासतौर पर खेतों में मिलती है। यह पूरी तरह से ईको फ्रेंडली होती हैं। इसबार मूर्तियों की डिमांड बढ़ी है। हम लोग कस्टमर की जरूरत के हिसाब से मूर्तियां तैयार कर रहे हैं। जिनकी रेंज मूर्ति की साइज के अनुसार होती है।