बसपा सरकार में नोयडा और लखनऊ में बने स्मारकों और पार्को में लगी मूर्तियां कभी किसी जांच का हिस्सा नहीं रही.

- राज्य सरकार ने कराई थी सिर्फ पत्थरों के खनन में भ्रष्टाचार की जांच

- 20 मेगा साइज हाथी की मूर्तियां लगाई थी आंबेडकर पार्क में

- 58 लाख रुपये का रेट तय किया गया था निर्माण निगम द्वारा

- 24 लाख में यह काम करने को दिया गया

- 110 हाथी की मूर्तियां लगाने के दस्तावेज लखनऊ पुलिस ने कब्जे में लिए

- 60 मूर्तियां आंबेडकर पार्क में लगनी थी

- 20 मूर्तियां नोयडा के पार्क में लगाई जानी थी

- 30 मूर्तियां राजधानी के कांशीराम स्मारक स्थल में लगनी थी

- 2012 में राजस्थान के ठेकेदार ने लखनऊ पुलिस से की थी शिकायत

ashok.mishra@inext.co.in
LUCKNOW : बसपा सरकार में नोयडा और लखनऊ में बने स्मारकों और पार्को में लगी मूर्तियां कभी किसी जांच का हिस्सा नहीं रही। सपा सरकार में स्मारकों की लोकायुक्त जांच में केवल मिर्जापुर सैंड स्टोन के खनन और आपूर्ति में हुए भ्रष्टाचार की जांच के आदेश हुए थे। यही वजह है कि सूबे के दो शहरों में बने स्मारकों में लगी बेशुमार मूर्तियों पर हुए खर्च का सही लेखा-जोखा किसी के पास नहीं है क्योंकि इसे कई विभागों ने मिलकर लगवाया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मूर्तियों पर खर्च की गयी रकम को वसूले जाने की टिप्पणी के बाद जब इस मामले की गहनता से पड़ताल से यह बात सामने आई है। यह भी पता चला कि ऐसी तमाम मूर्तियां तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के मॉल एवेन्यू स्थित आवास पर भी लगाई गयी थी।

58 लाख की एक मूर्ति
सूबे में सपा सरकार बनने के बाद मूर्तियों के निर्माण में हुए घपले को लेकर शिकायतें आने लगी पर यह मामला लेन-देन का होने की वजह से गहराई से जांच नहीं हो सकी। मई 2012 में राजस्थान के ठेकेदार राम अवतार सैनी ने लखनऊ पुलिस से शिकायत की थी कि स्मारकों और मायावती के माल एवेन्यू स्थित आवास पर लगी मूर्तियों का करीब तीन करोड़ रुपये का भुगतान अनुराग ग्रेनाइट के जितेंद्र मिश्रा और जेके टाइल्स के प्रभात कुमार नहीं कर रहे है। उसने बताया कि आंबेडकर पार्क में 20 मेगा साइज की हाथी की मूर्तियां लगाई थी जिसका निर्माण निगम द्वारा 58 लाख रुपये का रेट तय किया गया था जबकि उसे यह काम महज 24 लाख में करने को दिया गया। इसके बाद लखनऊ पुलिस ने निर्माण निगम से ऐसे 110 हाथी की मूर्तियां लगाने के दस्तावेज अपने कब्जे में लिए थे। इनमें से 60 मूर्तियां आंबेडकर पार्क, 20 नोयडा में और 30 राजधानी के कांशीराम स्मारक स्थल में लगनी थी। दरअसल एक अन्य ठेकेदार मदन लाल ने आदित्य अग्रवाल नामक सप्लायर के खिलाफ भुगतान न करने की एफआईआर दर्ज करायी थी जिसके बाद लखनऊ पुलिस ने आदित्य अग्रवाल के ठिकानों पर छापेमारी कर उसे गिरफ्तार भी किया था। इसके बाद एक और ठेकेदार आनंद किशोर मिश्रा भी सामने आया और उसने निर्माण निगम के पांच अधिकारियों के खिलाफ भुगतान न किए जाने का मुकदमा दर्ज करा दिया।

कटी पतंग न बने मीडिया और बीजेपी
सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गयी टिप्पणी के बाद सामने आई मीडिया रिपो‌र्ट्स पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने तल्ख प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'सदियों से तिरस्कृत दलित व पिछड़े वर्ग में जन्मे महान संतों, गुरुओं व महापुरुषों के आदर-सम्मान में निर्मित भव्य स्थल, स्मारक, पार्क आदि उत्तर प्रदेश की नई शान, पहचान व व्यस्त पर्यटन स्थल हैं, जिसके आकर्षण से सरकार को नियमित आय भी होती है। मीडिया कृपया करके माननीय सुप्रीम कोर्ट कर टिप्पणी को तोड़-मरोड़ कर पेश न करे। माननीय न्यायालय में अपना पक्ष जरूर पूरी मजबूती के साथ रखा जाएगा। हमें पूरा भरोसा है कि इस मामले में भी न्यायालय से पूरा इंसाफ मिलेगा। मीडिया व बीजेपी के लोग कटी पतंग न बनें तो बेहतर है.'

'मायावती संग पूरी कैबिनेट से वसूली जाए रकम'
स्मारक घोटाले की जांच करने वाले पूर्व लोकायुक्त एवं रिटायर्ड जस्टिस एनके मेहरोत्रा कहते हैं कि केवल मायावती ही क्यों, मूर्तियों पर खर्च हुई रकम पूरी कैबिनेट से वसूली जानी चाहिए क्योंकि यह सामूहिक फैसला था। उन्होंने माना कि स्मारकों के निर्माण में हुए भ्रष्टाचार की जांच में मूर्तियां शामिल नहीं थी। लोकायुक्त संगठन को केवल मिर्जापुर सैंड स्टोन के खनन और आपूर्ति में हुए भ्रष्टाचार की जांच सौंपी गयी थी। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को लेकर उन्होंने हमारे संवाददाता के कई सवालों का जवाब दिया।

सवाल- स्मारकों के निर्माण में किसने भ्रष्टाचार किया
जवाब- स्मारकों का निर्माण पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करके हुआ। कैबिनेट के बाद विधानसभा और विधान परिषद में भी इसे मंजूरी दी गयी थी लिहाजा सीधे तौर पर किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

सवाल- आपने मूर्तियों के निर्माण में करप्शन की जांच क्यों नहीं की थी
जवाब- दरअसल लोकायुक्त संगठन को केवल पत्थरों के खनन, आपूर्ति में हुए भ्रष्टाचार की जांच का निर्देश दिया गया था। जांच में पता चला था कि पत्थर लखनऊ में तराशे गये जबकि दिखाया गया राजस्थान में। मैंने इसकी रिपोर्ट सौंपी थी।

सवाल- तो आखिर करप्शन से जुटाई गयी रकम कहां गयी
जवाब- स्मारकों का निर्माण कई विभागों द्वारा कराया गया था। इसलिए पैसा कहां गया, इस बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है। इंजीनियर्स, एकाउंटेंट्स ने कमीशन लिया था, इसकी जांच में पुष्टि हुई थी।

सवाल- तो आखिर इसका जिम्मेदार कौन है
जवाब- देखिए, सीएम की जांच लोकायुक्त के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। ऐसा कोई सबूत भी नहीं मिला जिससे सीएम द्वारा कमीशन लेने की बात सामने आई हो। जांच में पता चला था कि काम के लिए मंत्रियों के यहां से फोन, पर्चियां आती थी।

सवाल- आपकी रिपोर्ट पर कोई एक्शन क्यों नहीं हुआ
जवाब- मेरी रिपोर्ट पर जांच विजिलेंस को दी गयी जो हमेशा 'ऊपर' के इशारे पर काम करती है। मैंने दोषियों से वसूली करने को भी कहा था जिसके बाद मुख्यमंत्री ने संबंधित विभागों को निर्देश भी दिए थे। बाद में यह ठंडे बस्ते में चला गया।

सवाल- तो फिर मायावती से ही वसूली क्यों
जवाब- केवल मायावती की अकेली जिम्मेदारी नहीं बनती है। कैबिनेट में 36 मंत्रियों ने इसे मंजूर किया। बजट भी पास हुआ। आखिर गलत काम के लिए आपने सहमति क्यों दी। यह रकम पूरी कैबिनेट से वसूली जानी चाहिए।

सवाल- बसपा के कई मंत्रियों के खिलाफ जांच का क्या हुआ
जवाब- मैंने नसीमुद्दीन सिद्दीकी, रामवीर उपाध्याय, रामअचल राजभर, अयोध्या प्रसाद पाल समेत तमाम मंत्रियों के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले की जांच कर रिपोर्ट दी थी पर कोई एक्शन नहीं हुआ। राजनीति ऐसी चीज है जिसमें लोग एक साल में करोड़पति बन जाते हैं।

Posted By: Inextlive