जिस तरह से स्ट्रीट डॉग के काटने से रैबीज होने का खतरा रहता है ठीक उसी तरह बंदरों के काटने पर भी रैबीज होने का खतरा होता है। अगर किसी व्यक्ति को बंदर काट लेता है तो उसे एंटी रैबीज इंजेक्शन लेना होता है। इसमें बिल्कुल भी लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिए।


लखनऊ (ब्यूरो)। अभी तक राजधानी के लोग स्ट्रीट डॉग्स के हमले से परेशान थे, लेकिन अब उनकी मुश्किलें और बढ़ गई हैैं। ये मुश्किलें बंदरों के आतंक की वजह से बढ़ी हैं। आलम यह है कि राजधानी के पुराने एरियाज से लेकर नए इलाकों में भी बंदरों के झुंड ने आतंक मचा रखा है, जिसके चलते लोगों को अपने घरों की छतों पर जाने से पहले कई बार सोचना पड़ता है।इन इलाकों में ज्यादा दिक्कतराजधानी के पुराने एरियाज जैसे चौक, अमीनाबाद, आलमबाग, राजाजीपुरम, कैसरबाग, घंटाघर में तो लंबे समय से बंदरों की समस्या है, वहीं अब नए इलाके भी इस समस्या की जद में आ गए हैैं। इन इलाकों में आशियाना, इंदिरानगर, तकरोही, इस्माइलगंज सेकंड, एल्डिको उद्यान, उतरेठिया, तेलीबाग आदि शामिल हैैं।कर देते हैैं हमला


पुराने एरियाज में तो हालात बेहद खराब है। यहां पर अक्सर बंदरों का झुंड आ जाता है। कई बार तो बंदरों का झुंड लोगों पर हमला तक कर देता है, जिससे बचने में लोग अक्सर घायल हो जाते हैैं। हाल में ही बाजार खाला एरिया में एक महिला बंदरों से बचने के चक्कर में तीसरी मंजिल से गिर गई। उसे तत्काल उपचार के लिए अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई।लोहे की जालियां लगवाईं

रायबरेली रोड स्थित एल्डिको उद्यान व उतरेठिया एरिया में रहने वाले बहुत से लोगों ने अपने घरों में लोहे की जालियां और कंटीले तार लगवा लिए हैैं, ताकि वे बंदरों के हमले से बचे रहें। स्थानीय लोगों की कंपलेन के बाद वन विभाग ने बंदरों को पकड़ने का कई बार प्रयास भी किया, लेकिन कोई फायदा होता नहीं दिखा। अभी तक बंदरों के आतंक की स्थिति जस की तस बनी हुई है और लोग खौफजदा हैैं। स्थानीय लोगों की मानें तो लंबे समय से बंदरों ने उत्पात मचा रखा है। पहले इनकी संख्या कम थी, लेकिन गुजरते वक्त के साथ इनकी तादाद बढ़ती जा रही है।छतों पर कर लेते हैं कब्जाप्रभावित एरियाज में रहने वाले लोगों का कहना है कि बंदरों का झुंड घरों की छतों पर कब्जा कर लेता है, जिसकी वजह से वे छत पर कपड़े सुखाने जैसे कामों के लिए नहीं जा पाते हैैं। बंदरों का झुंड छतों पर रखी पानी की टंकियां तक तोड़ देता है, जिससे बचने के लिए लोगों ने टंकी को कंटीले तारों से कवर कर दिया है। ऐसी तस्वीरें घनी आबादी वाले लालकुआं एरिया और उतरेठिया एरिया में देखी जा सकती हैैं।वन विभाग करता है कार्रवाई

बंदरों को पकड़ने के लिए वन विभाग की ओर से कार्रवाई की जाती है। हालांकि, इस कार्रवाई का कोई खास असर देखने को नहीं मिलता है। कई बार तो अभियान के दौरान बंदर घायल हो जाते हैैं, जिसके बाद वे स्थानीय लोगों पर और अधिक हमला करने लगते हैैं। उतरेठिया एरिया में ऐसा मामला सामने आ भी चुका है। वन विभाग को नियमित रूप से अभियान चलाए जाने की जरूरत है।रैबीज का खतराजिस तरह से स्ट्रीट डॉग के काटने से रैबीज होने का खतरा रहता है, ठीक उसी तरह बंदरों के काटने पर भी रैबीज होने का खतरा होता है। अगर किसी व्यक्ति को बंदर काट लेता है, तो उसे एंटी रैबीज इंजेक्शन लेना होता है। इसमें बिल्कुल भी लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिए।बंदर खुद हमला नहीं करतेवन्य विशेषज्ञों की माने तो बंदर कभी अपनी तरफ से हमला नहीं करता है। अगर उसको परेशान किया जाता है या पत्थर इत्यादि मारे जाते हैैं तो उस कंडीशन में ही बंदर हमला करते हैैं। कई बार तो लोग बंदरों से बचने के लिए घबराहट में भागते हैं और हादसे का शिकार हो जाते हैैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कभी बंदरों के झुंड में फंस जाएं तो घबराएं नहीं, बल्कि शांत खड़े रहें।

Posted By: Inextlive