Lucknow News: जीते जी ऑर्गन डोनेट करने का निर्णय लेना आसान नहीं होता है। वहीं बात जब कैडेवर मृत व्यक्ति के ऑर्गन डोनेशन की होती है तो इसको लेकर भी देश में कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं। हालांकि कभी अपनों की जान बचाने को तो कभी अपनों की आखिरी ख्वाहिश पूरी करने के लिए बहुत से लोग यह नेक काम करते हैं ताकि किसी बीमार इंसान की जान बचाई जा सके।


लखनऊ (ब्यूरो)। जीते जी ऑर्गन डोनेट करने का निर्णय लेना आसान नहीं होता है। वहीं, बात जब कैडेवर (मृत व्यक्ति) के ऑर्गन डोनेशन की होती है तो इसको लेकर भी देश में कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं। हालांकि, कभी अपनों की जान बचाने को तो कभी अपनों की आखिरी ख्वाहिश पूरी करने के लिए बहुत से लोग यह नेक काम करते हैं ताकि किसी बीमार इंसान की जान बचाई जा सके। ऐसे लोगों का मानना है कि अगर उनके इस 'दान' से किसी को दूसरा जीवन मिल रहा है तो यह जरूर करना चाहिए। साथ ही समाज को भी आगे आकर ऑर्गन डोनेशन करना चाहिए ताकि अधिक से अधिक जरूरतमंदों को नया जीवन दिया जा सके।पिता की आखिरी ख्वाहिश की पूरी


मेरे फादर अवध बिहारी सिन्हा रिटायर्ड पीसीएस ऑफिसर थे। दिल्ली में एक रोड एक्सिडेंट के बाद वह ब्रेन डेड की स्थिति में पहुंच गये थे। जिसके बाद हम उनको लेकर लखनऊ वापस आ गये। मेरे फादर की आखिरी इच्छा यही थी उनकी मौत के बाद उनके ऑर्गन डोनेट कर दिए जायें। जिसके बाद 2017 में उनका लिवर और कार्निया हमने डोनेट कर दिया। उनको लाने के लिए यहां पर पहली बार ग्रीन कॉरिडोर भी बनाया गया था। उनका लिवर और कार्निया किसको लगा है, यह हम लोगों को नहीं पता है, लेकिन जिनको भी लगा है उनके साथ एक अनजाना रिश्ता जरूर बन गया है। भगवान से यही प्रार्थना है कि वे सभी खुश और स्वस्थ रहें। लोगों से भी अपील है कि ऑर्गन डोनेशन से दूसरों की जिंदगी बचाई जा सकती है। लोगों को आगे आकर ऑर्गन जरूर डोनेट करने चाहिए।-शालिनी श्रीवास्तवअपने हसबैंड को दिया लिवर

सनातन धर्म में पति-पत्नी का रिश्ता सबसे गहरा और पवित्र बताया गया है। मेरे पति राकेश कुमार यादव पुलिस विभाग में काम करते हैं। शादी के बाद उनकी तबियत खराब होने पर जांच कराई तो पता चला कि उनको लिवर सिरोसिस हो गया है। डॉक्टर ने इसके लिए लिवर ट्रांसप्लांट ही आखिरी विकल्प बताया। यह सुनकर मुझे गहरा धक्का लगा, लेकिन उन्होंने इस दौरान साहस दिखाते हुए मुझे हिम्मत बंधाई। चूंकि मेरे सास-ससुर नहीं हैं इसलिए ट्रांसप्लांट के लिए केवल मैं ही थी। जब मेरा लिवर मैच हो गया तो मुझे बेहद खुशी हुई कि अब सही मायनों में पत्नी धर्म निभा पाउंगी। इसके बाद अक्टूबर 2022 में इनका लिवर ट्रांसप्लांट किया गया, जो सफल रहा। मुझे खुशी और गर्व दोनों है कि मैं पति के काम आ सकी। मेरा मानना है कि लोगों को बिना डरे और शंका के अपनों की जान बचाने के लिए ऑर्गन डोनेट करना चाहिए। क्योंकि इससे आप न केवल उनकी जान बचाते हैं बल्कि आपका रिश्ता और मजबूत होता है।-हेमलता यादवफादर की बचाई जान

मेरे फादर अरविंद कुमार भट्ट पेशे से एडवोकेट हैं। उनकी तबियत खराब रहने लगी तो जांच में पता चला कि उनको लिवर सिरोसिस हो गया है और लिवर ट्रांसप्लांट करना होगा। सबसे पहले मेरी मदर का मैच कराया गया, लेकिन फैटी लिवर होने के कारण मना हो गया। इसके बाद एक-दो और लोगों का मैच कराया गया, पर वह भी सफल नहीं हुआ। आखिरी में जाकर मेरा नंबर आया। तब मेरे मन में यही चल रहा था कि बस किसी तरह मैच हो जाये, क्योंकि मेरे फादर की लाइफ की बात थी। जब वाकई में मैच हो गया तो मुझे बेहद खुशी हुई। मेरी उम्र महज 18 साल ही है और मैं स्टूडेंट हूं। इसके बाद 2024 में मेरे फादर का लिवर ट्रांसप्लांट हुआ जो सफल रहा। इसके बाद मुझे एहसास हुआ कि ऑर्गन डोनेशन करने से दूसरे को तो जिंदगी मिलती ही है, आपको भी खुशी और गर्व होता है। समाज के अन्य लोगों को भी आगे आकर ऑर्गन डोनेट जरूर करना चाहिए। साथ ही दूसरों को भी इसके प्रति जागरूक करना चाहिए।-दिव्यांशु भट्टसमाज के काम आना चाहिएमेरे जीजा महेश अग्रवाल को ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया था। उनकी डेथ के बाद उनके ऑर्गन डोनेट किए गए, जिसमें उनकी आंख, लिवर और किडनी आदि शामिल हैं। उन्होंने मेरी दीदी को पहले ही बता रखा था कि अगर उनकी मौत हो जाये तो उनके ऑर्गन डोनेट कर देना ताकि वे किसी जरूतमंद के काम आ सकें और उसको दूसरी जिंदगी मिल सके। आज भले ही मेरे जीजा इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन वे दूसरे रूप में हमारे ही बीच में हैं। जिनको भी उनके ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुए हैं, उनमें वह दूसरे रूप में हमारे ही बीच में हैं। यह सोचकर अच्छा लगता है कि मेरे जीजा की इतनी महान सोच थी कि वह दुनिया से जाने के बाद भी दूसरों के काम आये।-सचिन जायसवाल, रिश्तेदार

Posted By: Inextlive