Lucknow News: गठिया के मरीजों को घुटनों में तेज दर्द के कारण उठने-बैठने और चलने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में कई बार घुटने का ट्रांसप्लांट ही आखिरी रास्ता साबित होता है। हालांकि कभी ज्यादा उम्र तो कभी मरीज की तरफ से ट्रांसप्लांट को लेकर राजी न होने से रुकावट खड़ी हो जाती है।


लखनऊ (ब्यूरो)। गठिया के मरीजों को घुटनों में तेज दर्द के कारण उठने-बैठने और चलने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में, कई बार घुटने का ट्रांसप्लांट ही आखिरी रास्ता साबित होता है। हालांकि, कभी ज्यादा उम्र तो कभी मरीज की तरफ से ट्रांसप्लांट को लेकर राजी न होने से रुकावट खड़ी हो जाती है। इस समस्या को देखते हुए संजय गांधी पीजीआई के एनेस्थीसिया विभाग के डॉक्टर्स ने प्लेटलेट-रिच प्लाज्मा (पीआरपी) थेरेपी ईजाद की है। जहां मरीज के ब्लड से ही तैयार पीआरपी के एक इंजेक्शन से मरीज को एक से दो साल तक दर्द से राहत मिल सकेगी। यह रिसर्च अमेरिकन जनरल में भी पब्लिश हुई है।70 पेशेंट्स पर की गई रिसर्च


संजय गांधी पीजीआई के एनेस्थीसिया विभाग के डॉ। संदीप खूबा ने बताया कि गठिया की अर्ली एंड एडवांस स्टेज के करीब 70 पेशेंट्स को लेकर 2018 में एक स्टडी शुरू की गई थी, जिसमें 40-65 वर्ष की उम्र के मरीज शामिल थे। आखिर में 31 मरीजों पर पूरी रिसर्च की गई। रिसर्च के तहत मरीजों का ही ब्लड लेकर उससे प्लेटलेट्स निकालकर रिच किया गया, जिसे पीआरपी कहते हैं। इसके काफी अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं।दो साल तक दर्द से मिली राहत

डॉ। संदीप ने बताया कि मरीजों को पहले पीआरपी इंजेक्शन लगाया गया। इसके माद 1 माह, 3 माह, 6 माह और 1 साल के बाद फॉलोअप के लिए बुलाया गया। इस दौरान पाया गया कि मरीजों को दर्द से बहुत राहत मिली है। मरीजों में 50 से 90 फीसदी तक दर्द में राहत मिली, जबकि कुछ एडवांस स्टेज के मरीजों ने दो साल तक दर्द में राहत मिलने की बात कही।इनको मिलेगी राहतघुटनों में दर्द के लिए ट्रांसप्लांट ही एक आखिरी ऑप्शन बचता है, पर बढ़ी उम्र के चलते मरीज यह करवाते नहीं हैं, जबकि कई मरीज नी-ट्रांसप्लांट नहीं करवाना चाहते। ऐसे में पीआरपी थेरेपी इन मरीजों के लिए बेहद लाभदायक है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसका खर्च महत 5-6 हजार रुपये ही आता है और पूरा प्रोसेस महज 20 मिनट का होता है। एक सप्ताह पहले ब्लड निकालने के लिए बुलाया जाता है।पीआरपी थेरेपी की मदद से गठिया के दर्द में राहत मिलेगी। रिसर्च में सामने आया कि कई मरीजों को तो इस थेरेपी के बाद एक-दो साल तक कोई परेशानी नहीं हुईर्। ऐसे में मरीजों के लिए यह थेरेपी एक राहत भरा विकल्प साबित हो सकती है।-डॉ। संदीप खूबा, पीजीआई

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