Lucknow News: जनरेशन गैप के चलते बदला बदला पेरेंटिंग का तरीका
लखनऊ (ब्यूरो)। नई जनरेशन और पुरानी जनरेशन के बीच अंतर नजर आना लाजिमी है क्योंकि समय के साथ-साथ सोसाइटी में काफी बदलाव आते हैं, जिनके मुताबिक लोग अपने तौर-तरीकों और बिहेवियर को बदलते हैं। सोच और बिहेवियर में आए इस बदलाव को 'जनरेशन गैप' भी कहा जाता है। लोगों के पेरेंटिंग के तरीके में भी काफी बदलाव आ चुका है। दादा का पेरेंटिंग का तरीका पिता के पेरेंटिंग के तरीके से अलग था। हमने 5 दादा और 5 पिता से बात की और जाना कि समय के साथ पेेरेंटिंग में कैसे बदलाव आया है। पढ़ें नंदिनी चतुर्वेदी की रिपोर्टपैसा नहीं पर प्यार था भरपूर
एक समय ऐसा था जब मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं हुआ करते थे। मैैं अपने बच्चों की हर डिमांड को पूरा नहीं कर पाता था। पर इसके बावजूद मैैं अपने बच्चों को भरपूर प्यार देने की कोशिश करता था। वह समय ऐसा था जब मैैं अपने बच्चों के साथ वैसे खुल कर बात नहीं कर पाता था जैसे मेरा बेटा आज अपनी बेटी के साथ करता है।- निर्मल गिडवानी, पिताबच्चों के साथ दोस्त की तरह करें बर्ताव
मैैं हमेशा अपनी बेटी के साथ दोस्त की तरह बर्ताव करता हूं। मेरे पिता मुझसे बहुत प्यार करते हैैं, लेकिन पहले हम दोनों आपस में खुल कर बात नहीं कर पाते थे। मैैं अपनी बेटी के लिए ऐसा माहौल बनाना चाहता हूं जहां वह मुझसे कोई भी बात खुल कर कह सके।- गिरीश गिडवानी, निर्मल गिडवानी के बेटेनियम और अनुशासन सिखाना जरूरी मैंने अपने बच्चों को हमेशा नियम और अनुशासन में रहना सिखाया है। मैैं इस मामले में थोड़ा कठोर था क्योंकि मैैं चाहता था कि मेरा बच्चा आगे चलकर एक बेहतर इंसान बने।-देवी प्रसाद, पिताबच्चों को प्यार से समझाने से होगा फायदाआज की जनरेशन को प्यार से चीजें समझानी चाहिए। ज्यादा डांटने से देखा गया है कि बच्चे पेरेंट्स से अपनी बात शेयर करना बंद कर देते हैैं और कई बार गलत रास्ते पर भी चले जाते हैैं।- अजय वर्मा, देवी प्रसाद के बेटे बच्चों के लिए खुद को बदलने की जरूरतमेरा समय ऐसा था जब हम पुरानी जनरेशन के विचारों को पीछे छोड़ कर नई जनरेशन की विचारधारा अपना रहे थे। ऐसे में मैंने भी खुद को अपने बच्चों के लिए बदला। मैंने जनरेशन गैप को खुद पर हावी नहीं होने दिया।- आशुतोष नागर, पितानहीं था कोई जनरेशन गैप
कई लोगों से मैंने सुना है कि उनके पिता काफी कठोर स्वभाव के थे लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं था। मेरे पिता मुझसे अपने दोस्त की तरह ही बर्ताव करते थे। डांटने या मारने के बजाए मुझे शांति से समझाते थे। मैंने भी पेरेंटिंग का तरीका उन्हीं से सीखा है।- अपूर्व नागर, आशुतोष नागर के बेटेहर डिमांड पूरी होने से बिगड़ रहे बच्चेमेरे समय में लोगों के पास इतना पैसा नहीं था। ऐसे में पेरेंट्स बच्चों की कई डिमांड को मना भी कर देते थे। आज के समय में सभी के पास पैसा होने की वजह से बच्चों की हर डिमांड पूरी हो जाती है, जिससे बच्चा बिगड़ जाता है।- पीएम गोयल, पिताबच्चों से खुल कर करनी चाहिए बातमैैं जब छोटा था तब मैं अपनी बात अपने पिता से कहने में संकोच करता था और अपनी मां से ज्यादा अच्छे से बात करता था। मैैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चे भी ऐसा महसूस करें। इसलिए मैैं अपने बच्चों से खुल कर बात करता हूं और उन्हें समझने की कोशिश करता हूं।- डॉ। अतुल गोयल, पीएम गोयल के बेटेबचपन से अच्छे संस्कार देना जरूरी
मैं अपने बच्चों को गलती करने पर दंड भी देता था ताकि वे उस गलती को दोबारा न करें। मेरा मानना है कि बच्चों को अच्छे संस्कार बचपन से ही सिखाने चाहिए ताकि बड़े होकर उनका स्वभाव अच्छा रहे।- रामविलास शुक्ला, पितापिता के सामने बोलने की नहीं होती थी हिम्मतमेरी अपने पिता के सामने बोलने की हिम्मत नहीं होती। वह जो बोलते थे, वही मानना पड़ता था। मैैंने उनके तरीकों से काफी कुछ सीखा है, लेकिन आज के समय के हिसाब से मैने अपने अंदर बदलाव भी किए हैं। मैैं इतना कठोर नहीं बनना चाहता कि मेरे बच्चे भी मुझसे कुछ भी कहने से डरें।-लोकेंद्र शुक्ला, रामविलास शुक्ला के बेटेपेरेंटिंग में हुआ सकारात्मक बदलावइन केसेज से यही पता चलता है कि पहले के समय में पिता थोड़े कठोर स्वभाव के होते थे। वे बच्चों को नियम और अनुशासन सिखाना चाहते थे। उनके इस स्वभाव के कारण बच्चे उनसे अपनी बात रखने में संकोच करते थे। आज के समय में पिता बच्चों को दोस्त की तरह मानते हैं, जिससे बच्चे भी खुलकर अपनी बात उनसे कह पाते हैैं।
पहले घरों में पिता की अथॉरिटी दिखाई देती थी, लेकिन एकल परिवार होने से यह अथॉरिटी खत्म हो गई है। इसी वजह से कई बच्चे पिता को अपना दोस्त मानते हैैं और अपनी हर बात उनसे शेयर करते हैैं। ये एक सकारात्मक बदलाव है।- डॉ। डीआर साहू, एचओडी, सोशियोलॉजी डिपार्टमेंट, एलयू