Lucknow News: अब छोटे बच्चों पर भी हो रहा आईबीडी का हमला
लखनऊ (ब्यूरो)। लोगों में इंफ्लेमेटरी बॉवेल डिजीज (आईबीडी) की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। खासतौर पर बड़ों में होने वाली यह समस्या अब बच्चों में भी तेजी से बढ़ रही है। चूंकि इसका कोई इलाज नहीं है इसलिए जीवन भर इसकी दवा चलती है। बच्चों में बढ़ रही इस समस्या को लेकर संजय गांधी पीजीआई में स्टडी की गई। जिसमें पाया गया कि अगर 6 वर्ष से कम उम्र में यह समस्या हो रही है तो बोन मैरो ट्रांसप्लांट से इसे ठीक किया जा सकता है।बच्चों में बढ़ रही समस्या
संजय गांधी पीजीआई के पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी विभाग के हेड डॉ। उज्ज्ल पोद्दार ने बताया कि आईबीडी के दो मुख्य प्रकार होते हैं जिसमें अल्सरेटिव और कोलाइटिस होता है। आईबीडी की वजह से आंत के कुछ हिस्से में सूजन और लाली हो जाती है। साथ ही पाचन तंत्र भी सूज जाता है। इसका कारण अभी ज्ञात नहीं है और कोई इलाज भी नहीं है। केवल दवाओं की मदद से इसे कंट्रोल किया जा सकता है। पहले यह बीमारी केवल बड़ों की मानी जाती थी, पर अब बच्चों में भी आईबीडी की समस्या देखने को मिल रही है। खासतौर पर यह समस्या 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को भी हो रही है। जिसे वेरी अर्ली ऑनसेट आईबीडी कहा जाता है। इतना ही नहीं, यह 1-2 साल के बच्चों में भी शुरू हो रही है, जो करीब 20 पर्सेंट बच्चों में देखने को मिल रही है, इसे मोनोजेनिक आईबीडी कहा जाता है, इसका बड़ा कारण जेनेटिक भी है। इसी को लेकर स्टडी की गई थी, जिसमें 46 वेरी अर्ली ऑनसेट आईबीडी बच्चों को शामिल किया गया। यहां करीब 15 बच्चों में मोनोजेनिक आईबीडी पाया गया।बोन मैरो ट्रांसप्लांट बेहतर ऑप्शनडॉ। उज्ज्ल पोद्दार ने बताया कि अच्छी बात यह है कि मोनोजेनिक आईबीडी को ट्रीट किया जा सकता है। इसके लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट सबसे बेहतर विकल्प है। हालांकि, समस्या यह है कि यह ट्रांसप्लांट हर जगह नहीं होता है और जहां होता है वहां बहुत महंगा है इसलिए हर कोई इसे नहीं करा सकता इसलिए समय रहते इसका पता चलना बेहद जरूरी है।1-2 साल के बच्चों में मोनोजेनिक आईबीडी मिल रहा है। बच्चों में यह समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। इसको ट्रीट किया जा सकता है।-डॉ। उज्ज्ल पोद्दार, पीजीआई