Lucknow News: उप्र लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान और सोन चिरैया समिति में हुआ एमओयू
लखनऊ (ब्यूरो)। लोकनायक बिरसा मुंडा की 148वीं जयंती जनजाति गौरव दिवस के अवसर पर आयोजित जनजाति भागीदारी उत्सव का मंगलवार को समापन हुआ। इस दौरान उप्र लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान और सोन चिरैया लोक संगीत उत्थान समिति के बीच एमओयू हस्ताक्षरित किया गया। इसके माध्यम से उत्तर प्रदेश की प्रबुद्ध लोक, जनजातीय कलाओं और परंपराओं को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके साथ ही अनुसंधान और शैक्षणिक कार्यक्रमों में आपसी सहयोग और भागीदारी भी की जाएगी। इस अवसर प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम, समाज कल्याण के प्रमुख सचिव डॉ। हरिओम, पद्मश्री मालिनी अवस्थी, लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी सहित अन्य विशिष्ट जन उपस्थित रहे।विभिन्न नृत्यों का उठाया लुत्फ
आयोजन के आखिरी दिन सांस्कृतिक आयोजनों के साथ प्रतिभागियों को सम्मानित भी किया गया। वहीं, लोगों ने अंतिम दिन होने के चलते जी भरकर खरीदारी भी की। इसके साथ ही उन्होंने विभिन्न प्रदेशों के स्वादिष्ट खानपान का आनंद लिया और वाद्यों की प्रदर्शनी भी देखी। सातवीं सांस्कृतिक संध्या का संचालन अलका निवेदन ने किया। उसमें देश की सतरंगी जनजातीय नृत्य, गायन और वादन की मनोरम झलक देखने को मिली। उसमें आगंतुकों ने उत्तराखंड का तांदी नृत्य, हारूल नृत्य, झारखंड का पाइका नृत्य, छत्तीसगढ़ी कर्मा नृत्य, गैड़ी नृत्य, मध्य प्रदेश का गुदुम बाजा नृत्य, उत्तर प्रदेश का हुरदुगुवा नृत्य, गरदबाजा नृत्य, राजस्थान का सहरिया स्वांग नृत्य, सिक्किम का याकछम, राजस्थान का चरी नृत्य का भरपूर आनंद लिया। इस अवसर पर जनजाति विकास विभाग की उप निदेशक प्रियंका वर्मा, टीआरआई के नोडल अधिकारी देवेंद्र सिंह सहित अन्य उपस्थित रहे।लोगों को भाया आयोजनशिल्प मेला में उत्तर प्रदेश का मूंज शिल्प, जलकुंभी से बने शिल्प उत्पाद, कशीदाकारी, बनारसी साड़ी, कोटा साड़ी, सहरिया जनजाति उत्पाद, गौरा पत्थर शिल्प, लकड़ी के खिलौने खासतौर से पसंद आ रहे हैं। वहीं, व्यंजन मेला में उत्तर प्रदेश का भुना आलू चटनी, कुमाऊंनी खाना, मक्खन मलाई, रबड़ी दूध, चाट का स्वाद चखने का अवसर मिला। इसके अलावा, जनजातीय वाद्यों की प्रदर्शनी, मोर, जनजातीय झोपड़ी और पूजा स्थल का सेल्फी प्वाइंट भी सबको आकर्षित किया। डॉ। ओम प्रकाश भारती के संयोजन में आदिराग में शामिल वाद्य यंत्रों के साथ विभिन्न जनजातियों द्वारा प्रस्तुत वाद्य यंत्रों का मनोहारी प्रस्तुतीकरण किया गया जो दर्शकों के आकर्षण का केंद्र रहा।