Lucknow Acid Attack: एसिड अटैक भी नहीं तोड़ पाया इन सर्वाइवर्स का हौसला
लखनऊ (ब्यूरो)। Lucknow Acid Attack: एसिड अटैक केवल चेहरे की सुंदरता ही नहीं बल्कि बेटियों के मन पर भी ऐसा जख्म करता है, जिसे भरना नामुमकिन होता है। एसिड फेंकने वाले को भले ही पुलिस उनके अंजाम तक पहुंचा दे, पर पीड़ित का दर्द खत्म नहीं किया जा सकता। चौक में सरेआम छात्रा पर एसिड अटैक करने वाले आरोपी अभिषेक को भले ही पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, पर एसिड अटैक से दहशत में आई छात्रा का खौफ खत्म नहीं हुआ। पिता के सीने से लगकर बस एक ही रेट लगाए हुए है कि अब वह घर से बाहर नहीं जाएगी।आरोपी के पास से दो बोतल एसिड बरामद
डीसीपी पश्चिम दुर्गेश कुमार के अनुसार छात्रा और उसके भाई पर एसिड से अटैक करने वाले अभिषेक वर्मा को वेडनेसडे देर रात गुलाला घाट के पास से गिरफ्तार कर लिया गया। उसके वहां छिपे होने की सूचना पर पुलिस ने घेराबंदी की तो आरोपी ने पुलिस पर तमंचे से फायर कर दिया। जवाबी फायरिंग में उसके दाएं पैर पर गोली लगी और उसके पकड़ लिया गया। पुलिस को मौके से तमंचे के अलावा घटना में यूज की गई बाइक और दो एसिड की बोतल भी बरामद हुई। जिसमें एक में एक में सल्फ्यूरिक एसिड और दूसरे में हाईड्रोजन पैराऑक्साइड लिखा था।कंप्लेन की होती तो शायद टल सकता था हादसाबुधवार सुबह छात्रा पर एसिड अटैक के बाद परिजनों ने पुलिस को बताया था कि आरोपी युवक कई दिनों से उसे परेशान कर रहा था। उसे लगातार कॉल भी करता था। जिसके चलते छात्रा ने उसे ब्लॉक कर दिया था। आरोपी के नाम पर भी छात्रा व परिजनों को कंप्यूजन था। पहले अमन वर्मा, फिर अभय वर्मा के नाम सामने आया। हालांकि, आरोपी के पकड़ने जाने पर उसका नाम अभिषेक वर्मा निकला। आरोपी ने छात्रा को मैसेज भी किया था कि उसे अनब्लॉक करे नहीं तो अंजाम बुरा होगा। इसके बाद भी आरोपी के खिलाफ पुलिस में कंप्लेन नहीं की थी। पुलिस का कहना है कि अगर पहले ही कंप्लेन की होती तो शायद आरोपी को पहले अरेस्ट कर लिया जाता।इन्होंने दिखाई हिम्मत, खुद को किया साबितएसिड अटैक का दर्द वही समझ सकता है जो इस पीड़ा से गुजरा हो। ऐसे समय में अपनों का साथ और खुद की हिम्मत दवा का काम करती है। गोमती नगर के शिरोज कैफे की एसिड अटैक सर्वाइवर्स ने भी ऐसी ही हिम्मत दिखाई। जानिए वे किस दौर से गुजरीं और आज किस मजबूती के साथ खड़ी हैं ये बेटियां
रूपाली विश्वकर्मा
2015 में मेरे ऊपर ऐसिड अटैक हुआ था। मेरा चहरा देखते ही मेरे पिता ने डॉक्टर से मुझे जहर देने को कहा। वह मुझे और मेरी मां को घर ले जाने के बजाए अनाथ आश्रम में छोड़ आए। मेरी मां ने मुझे बहुत सपोर्ट किया। वह मुझे हमेशा मोटिवेट करती थी। धीरे-धीरे मैंने पॉजिटिव सोचना शुरू किया। जब मैंने शीरोज में जॉब करना शुरू किया तब औरों को देख कर मुझे भी मोटिवेशन मिला। यहां तक पहुंचना मेरे लिए आसान नहीं था। आज भी कुछ दिन ऐसे होते हैैं जहां मेरे मन में बुरे ख्याल आते हैैं लेकिन मैैं खुद को खुश रखने की कोशिश करती हूंकुंतीमेरी शादी 14 साल की उम्र में ही हो गई थी। एक साल बाद मेरे पति ने मुझ पर ऐसिड अटैक किया। मैंने उसके बाद से घर से निकलना बंद कर दिया था। मन में सिर्फ नकारात्मक ख्याल ही आते थे। मुझे कई बार लगता था कि ऐसा मेरे साथ ही क्यों हुआ। ऐसे वक्त में मेरे पेरेंट्स ने बहुत सपोर्ट किया और 2017 में मैंने शीरोज ज्वाइन करके लाइफ दोबारा शुरू की।आशमा
जब मेरे ऊपर ऐसिड अटैक हुआ तो उसके बाद मेरे मन में केवल नकारात्मक विचार ही भरे हुए थे। परिवार ने, डॉक्टरों ने, पुलिस ने मेेरा बहुत सपोर्ट किया, लेकिन मुझे ये समझ में आ गया था कि अंत में मुझे खुद ही लड़ना है और सर्वाइव करना है। फिर मुझे शीरोज कैफे के बारे में पता चला। यहां मुझे जॉब मिली। यहां दूसरों को देखा तब लगा कि मैैं ही अकेली नहीं हूं।काजलशुरुआत में तो काफी बुरे खयाल आते थे। मुझे कई बार ये लगता था कि मैैं मर क्यों नहीं गई। डॉक्टर्स भी कहते थे कि मैैं जल्दी ठीक हो जाउंगी। हालांकि, उसमें तो वक्त लगा लेकिन मेरा हौसला धीरे-धीरे मजबूत होता गया। मेरे पेरेंट्स और भाई के अलावा किसी ने मेरा सपोर्ट नहीं किया और न ही किसी ने बात की। दूसरे सर्वाइवर्स को देखकर हौसला मिला। आज मैैं यहां बहुत खुश हूं और मुझे काम करने में अच्छा लगता है।