Lucknow News: कई कवायदों के बावजूद लखनऊ में नहीं सुधर रही ट्रैफिक जाम की स्थिति
लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी में ट्रैफिक जाम लंबे समय से सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है। कई अफसरों ने ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने का बीड़ा उठाया, लाखों-करोड़ों रुपये खर्च भी हुए, पर हालात जस के तस बने हुए हैं। नई स्कीमें बनीं, लोगों को जागरूक भी किया गया, पर स्थिति में सुधार नजर नहीं आया। नवंबर में ट्रैफिक पुलिस यातायात माह भी चल रहा है। इस बार थीम है 18 वर्ष के यंगस्टर्स और लोगों को एक्सीडेंट रोकने के लिए जागरूक करना। हालांकि, जब तक ओवर स्पीड पर कंट्रोल, नो पार्किंग में पार्किंग, जाम और सिग्नल का मिस मैनेजमेंट बेहतर नहीं किया जाता, सुधार की संभावना कम ही है। इसके अलावा, ट्रैफिक फोर्स को बढ़ाना भी बेहद जरूरी है।पहले दूर करनी होंगी खामियां
ट्रैफिक पुलिस रोड एक्सीडेंट रोकने से लेकर वाहन चालकों को नियमों के पाठ पढ़ाती भी है, ताकि लोगों में ट्रैफिक रूल्स को लेकर अवेयरनेस पैदा हो। पर कई बार विभागों की लापरवाही ही लोगों को ट्रैफिक रूल्स तोड़ने पर मजबूर कर देती है। शहर के चौराहों पर लगे ट्रैफिक सिग्नल का बंद या खराब होना, चौराहों पर पुलिसकर्मियों की ड्यूटी न होना भी हालात खराब करता है। ऐसे में, वाहन चालक अकसर ट्रैफिक रूल्स तोड़ते हैं। इसकी वजह से आए दिन हादसे होते हैं।
चौराहों पर 350 पुलिसकर्मियों की ड्यूटीशहर में गाड़ियों की बात करें तो यह संख्या पांच लाख से अधिक है। शहर की हर रोड पर ट्रैफिक का लोड बढ़ रहा है। आंकड़े बताते हैं कि ट्रैफिक पुलिस विभाग के पास तकरीबन 750 पुलिसकर्मी हैं, जिनकी मानक के अनुसार संख्या काफी कम है। इनमें से अधिकतर की ड्यूटी वीवीआईपी रूट पर लगी रहती है। तकरीबन 350 पुलिसकर्मियों की ड्यूटी ही लोगों को जाम से छुटकारा दिलाने के लिए लगाई जाती है। ट्रैफिक फोर्स बढ़ाने के लिए कई अफसरों ने मुख्यालय को पत्र लिखा है।180 जगहों पर लगे सिग्नलशहर में तकरीबन 520 चौराहे हैं, इनमें अगर सिग्नल की बात करें तो करीब 180 जगहों पर सिग्नल लगे हैं। ट्रैफिक पुलिस के अधिकारियों का कहना है कि सिग्नल लगने से ट्रैफिक व्यवस्था की धज्जियां नहीं उड़ती हैं, साथ ही ऑटोमैटिक सिग्नल से मैनपावर की भी बचत होती है। हालांकि, इन चौराहों में अधिकतर आउटर एरिया के हैं। ऐसे में, अब इन बाकी जगहों के अलावा भी ट्रैफिक सिग्नल के लिए चौराहों का सर्वे किया जा रहा है। यहां पर जल्द ही सिग्नल्स का काम शुरू कर दिया जाएगा।दो-तीन बार करना पड़ता है इंतजार
वर्तमान समय में कई चौराहों और तिराहों पर लगे सिग्नल के टाइमर वाहनों के दबाव के मुताबिक सेट नहीं हैं। कई चौराहों पर एक तरफ से ही सभी वाहनों को निकलने में 70 से 80 सेकेंड लगते हैं, लेकिन टाइमर 40 सेकेंड का ही है। इससे उस दिशा में वाहनों की लंबी लाइन लग जाती है। खासकर माल एवेन्यू पुल, हजरतगंज, अवध चौराहा, इंजीनियरिंग चौराहा, आलमबाग चौराहा, रविंद्रालय चारबाग, तेलीबाग आदि चौराहों पर ऐसा देखने को मिलता है। यहां पर चालकों को अपनी बारी के लिए एक से अधिक बार सिग्नल ग्रीन होने का इंतजार करना पड़ता है। जिससे चौराहों पर ट्रैफिक व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा जाती है।टाइमिंग को बढ़ाने के लिए सर्वे शुरूजिन चौराहों पर ट्रैफिक का लोड अधिक रहता है वहां फिक्स सिग्नल टाइमिंग को बढ़ाने के लिए एक सर्वे शुरू किया गया था। दरअसल, ट्रैफिक के बढ़ते दबाव से चालकों को काफी देर तक सिग्नल पर रुकना पड़ता है। एक ओर का समय पूरा नहीं हो पाता है और दूसरी ओर से नंबर शुरू हो जाता है। इस स्थिति से ट्रैफिक टकराव की स्थिति बनती है। प्रमुख चौराहों पर टाइमिंग बढ़ने के बाद डेढ से दो मिनट का समय एक तरफ का निर्धारित किया जाना था।रोड इंजीनियरिंग सबसे बड़ी वजह
राजधानी में ट्रैफिक समस्या के पीछे कई कारण निकल कर आए हैं। जिसमें सबसे बड़ा कारण है रोड इंजीनियरिंग। सालों पुरानी रोड में वाहनों की बढ़ती संख्या जाम की वजह बनी हुई है। हालांकि, जो नए एरिया हैं वहां ट्रैफिक प्रेशर उतना नहीं है जितना पुराने इलाकों में है। दूसरी वजह है पार्किंग की सुविधा न होना। जागरूकता के अभाव से लोग रोड पर गाड़ी पार्क कर देते है, जिससे जाम की स्थिति बनीं रहती है। अतिक्रमण भी एक प्रमुख कारण है।विभागों में समन्वय न होना बड़ा कारणराजधानी के ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने के लिए अफसरों की मीटिंग में केवल ट्रैफिक विभाग ही नहीं बल्कि अन्य विभागों को भी समन्वय बनाकर काम का निर्देश दिया जाता है। चंद दिनों के अभियान में तो नजर आता है, लेकिन आदेश व निर्देश कागजों तक ही सीमित होकर रह जाते हैं। बिगड़ी ट्रैफिक व्यवस्था का ठिकारा केवल ट्रैफिक पुलिस के सिर मढ़ दिया जाता है। हालांकि, जब तक सभी जिम्मेदार विभाग मिलकर काम नहीं करेंगे तब तक राजधानी के ट्रैफिक की समस्या से लोगों को निजात मिलना मुश्किल है।