Lucknow Medical News: लोगों में लगातार बढ़ रही ऑफिस आर्थोपेडिक्स की समस्या
लखनऊ (ब्यूरो)। इंडियन आर्थोपेडिक्स एसोसिएशन की ओर से आयोजित राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का रविवार को समापन हुआ। जहां आखिरी दिन एक्सपर्ट्स द्वारा इंप्लांट के लेटेस्ट डेवलपमेंट को लेकर चर्चा की गई। वहीं, इन सत्रों के दौरान आईओए ने बड़े राज्यों के लिए आईओए प्रेसिडेंट प्रशंसा प्रमाणपत्र के साथ उत्तर प्रदेश चैप्टर के प्रयासों को मान्यता दी।एक बड़ा मंच प्रदान किया
ऑर्गेनाइजिंग चेयरमैन डॉ। संजीव अवस्थी ने कहा कि इस सम्मेलन ने वैश्विक सहयोग के लिए एक मंच प्रदान किया। जिससे पेशेवरों को अपने अनुभव और ज्ञान साझा करने और आर्थोपेडिक देखभाल की उन्नति में योगदान करने में सक्षम बनाया गया। कॉन्फ्रेंस के ट्रेजरार डॉ। संतोष सिंह ने उप्र ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन द्वारा बोन और ज्वाइंट्स के आयोजन लिए प्रेसिडेंट द्वारा प्रदान किया गया प्रशंसा प्रमाण पत्र और पहला स्थान हासिल किया। उन्होंने कहा कि यह उत्तर प्रदेश के आईओए चैप्टर के लिए बड़ी उपलब्धि है। जिसमें इसके सभी सदस्यों का अमूल्य योगदान रहा है।ऑफिस आर्थोपेडिक्स की समस्या बढ़ गई
आजकल लोगों में ऑफिस आर्थोपेडिक्स की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है, जिसमें लो बैक पेन, एल्बो पेन और टेनिस एल्बो आदि जैसी प्रॉब्लम होती है। ऑफिस जाने वालों में करीब 80 पर्सेंट में लो बैक पेन की समस्या देखने को मिल रही है। इसका बड़ा कारण बैड पॉश्चर है। स्पाइन सीधी होती है, अगर लगातार टेढ़े या गलत तरीके से बैठा जाये तो इसपर असर पड़ता है। बचाव के लिए सही पॉश्चर में बैठें, गर्दन सीधी रखें औार गर्दन के लिए छोटे तकिए का इस्तेमाल करें। लंबे समय तक एक जगह पर न बैठें और 35-45 मिनट के बाद कुछ समय के लिए खड़े जरूर हों।-डॉ। राजेश कुमार गुप्ताइंप्लांट की डिजायन में हो रहा सुधारआजकल ज्वाइंट रिप्लेसमेंट के केसकाफी बढ़ गये हैं। कई बार कठिन केसों जैसे जन्मजात जोड़ खराब हो तो ज्वाइंट रिप्लेसमेंट मुश्किल होता है। कई बार ज्वाइंट के थ्रू फ्रैक्चर हो गया हो तो जोड़ने की कोशिश करते हैं। पर असल में वो जुड़ता नहीं है, तब रिप्लेसमेंट करते है। इसके अलावा, इंप्लांट की डिजाइन में लगातार सुधार हो रहा है। पहले कोबाल्ट और क्रोम मैटेरियल था, लेकिन अब एलॉय आ रहा है। यह लंबा चलता है। तकनीक में इंप्रूवमेंट हो रहा है।-डॉ। संजीव अवस्थीसर्जरी के दिन ही मरीज को चला देते हैं
पहले हिप फ्रैक्चर के मरीजों को लंबे समय तक दर्द सहना पड़ता था। इस दौरान करीब तीन से चार सप्ताह बेड पर गुजारने पड़ते थे, जिसकी वजह से मूवमेंट में काफी दिक्कतें आती थीं। पर एडवांस्ड तकनीक की मदद से सर्जरी पहले के मुकाबले बेहद अच्छी हो गई है। जहां करीब एक सप्ताह में ही मरीज चलने लगता है। वहीं, कुछ केसेस में तो मरीज को सर्जरी वाले दिन ही चला दिया जाता है। ऐसे में मरीजों को लंबे समय तक इंतजार नहीं करना पड़ता है।-डॉ। मयंक महेंद्रएआई से मिल रही मददआर्थो संबंधित समस्याएं लोगों में लगातार बढ़ती जा रही हैं। पर तकनीक की मदद से सर्जरी में काफी मदद मिल रही है। एआई और रोबोटिक्स की मदद से मर्ज और सर्जरी की दिशा तय की जा रही है। जिससे मरीज के इलाज में बेहतरी हो सकती है। साथ ही दक्षता में सुधार हो सकता है और कुशल चिकित्सा पेशेवरों की कमी को दूर किया जा सकता है। खासकर ट्रॉमा केयर देखभाल और स्पाइन सर्जरी जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में।-डॉ। संजय कुमार श्रीवास्तव