Doctors Day: राजधानी लखनऊ धीरे-धीरे मेडिकल हब के तौर पर डेवलप होता जा रहा है। जहां देश-विदेश से लोग अपना ट्रीटमेंट करवाने आते हैं। शहर के सरकारी संस्थानों में अपनी सेवाएं दे रहे डॉक्टर्स की भी इसमें अहम भूमिका रही है। किसी ने सर्जरी की नई तकनीक डेवलप की है तो किसी ने ट्रांसप्लांट में क्रास मैच का काम किया है।


लखनऊ (ब्यूरो)। Doctors Day: राजधानी लखनऊ धीरे-धीरे मेडिकल हब के तौर पर डेवलप होता जा रहा है। जहां देश-विदेश से लोग अपना ट्रीटमेंट करवाने आते हैं। शहर के सरकारी संस्थानों में अपनी सेवाएं दे रहे डॉक्टर्स की भी इसमें अहम भूमिका रही है। किसी ने सर्जरी की नई तकनीक डेवलप की है तो किसी ने ट्रांसप्लांट में क्रास मैच का काम किया है। वहीं, कोई रोबोटिक सर्जरी के मामले में देश-विदेश के चुनिंदा सर्जन में शामिल है। उनकी इसी उपलिब्ध के चलते उन्हें पद्म पुरस्कार तक मिल चुका है। पेश है इस नेशनल डॉक्टर्स डे के अवसर पर देश-दुनिया में राजधानी का नाम रौशन करने वाले ऐसे ही डॉक्टर्स पर अनुज टंडन की स्पेशल रिपोर्टजिनके ट्रीटमेंट मॉडल को देश ने माना


पद्मश्री डॉ। आरके धीमन बतौर निदेशक संजय गांधी पीजीआई में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उन्होंने 1984 में केजीएमसी से एमबीबीएस और 1991 में संजय गांधी पीजीआई से गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी में डीएम किया था। प्रो। धीमन ने पीजीआई चंडीगढ़ में रहते हुए हेपेटाइटिस पर किए गये काम को देश में मॉडल के तौर पर लागू किया। वहीं, पीजीआई लखनऊ में कोरोना काल में निदेशक बने तब उन्होंने मोर्चा संभाला और 51 मेडिकल कॉलेजों को सपोर्ट किया। कोरोना को लेकर बनाये गये पैटर्न को बाद में पूरे देश में लागू किया गया, जिसे देश-विदेश में सराहना मिली। उनको अमेरिकन कॉलेज ऑफ गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी, रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियन, लंदन आदि से मानद उपाधि मिल चुकी है। उनके इसी विशेष कामों के लिए 2024 में पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया। उनका कहना है कि मरीजों को बेहतर ट्रीटमेंट देना ही उनका प्रमुख उद्देश्य है, जिसे वह आजीवन करते आयेंगे।किडनी ट्रांसप्लांट में क्रास मैच की शुरुआत

डॉ। नारायण प्रसाद संजय गांधी पीजीआई में बतौर नेफ्रोलॉजिस्ट अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उन्होंने 1993 में पटना से एमबीबीएस किया था। संस्थान में पहली बार क्रास मैच किडनी ट्रांसप्लांट 2008 में किया था। जो बेहद ही सेंसिटिव प्रोसिजर होता है, जिसमें डोनर किडनी के ब्लड ग्रुप मैच न होने के बावजूद किडनी ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। हालांकि, यह बेहद जटिल और जोखिम वाला ट्रांसप्लांट होता है, पर डॉ। प्रसाद को इसमें महारत हासिल है। इतना ही नहीं, उन्होंने संस्थान में पहली बार स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट को भी अंजाम दिया है। जहां दो किडनी ट्रांसप्लांट मरीजों में एक-दूसरे के डोनर की किडनी ट्रांसप्लांट किया गया। अबतक 1500 से हजार से अधिक किडनी ट्रांसप्लांट कर चुके हैं। इसके अलावा 2021 में प्रदेश में पहली बार सफल रोबोटिक किडनी ट्रांसप्लांट किया है। किडनी ट्रांसप्लांट में इनका देश-दुनिया में नाम मशहूर है।दुनिया को दी कुरील तकनीकडॉ। एसएन कुरील बतौर पीडियाट्रिक सर्जन केजीएमयू में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वह बच्चों में जटिल सर्जरी करने के लिए देश-दुनिया में मशहूर हैं। उन्होंने एक्सोट्रॉफी एपिस्पेडियास पर शोध किया, जो द अमेरिकन जर्नल यूरोलॉजी गोल्ड के पहले पेज पर प्रकाशित हो चुका है। यह भारत की मेडिकल फील्ड में बड़ी उपलब्धि थी। उनकी इस खोज को कुरील तकनीक के नाम से भी जाना जाता है। सर्जरी के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य के लिए 2016 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। डॉ। कुरील बताते हैं कि बच्चों के लिए काम करना ही उनका एकमात्र उद्देश्य है। जब कोई बच्चा ठीक होकर जाता है तो उससे बड़ी खुशी उनके लिए और कोई नहीं है।रोबोटिक सर्जरी का माने हर कोई लोहा

डॉ। ज्ञान चंद ने गोरखपुर से 1995 में एमबीबीएस किया। इसके बाद 1997 में पीजी केजीएमयू से किया और 2002 तक रेजिडेंट रहे। जिसके बाद संजय गांधी पीजीआई में बतौर एंडोक्राइन सर्जन के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। दरअसल, डॉ। ज्ञान न्यूरो सर्जन बनना चाहते थे, लेकिन पीजी के दौरान डॉ। रमाकांत व डॉ। सूर्यकांत गाइड थे, जो डॉ। केडी वर्मा के बेहद करीबी थे। वह बतौर एंडो सर्जन 10 हजार से अधिक थायराइड सर्जरी कर चुके थे। उनसे ही प्रेरणा लेकर उन्होंने यह ब्रांच चुनी। अपने करियर में अबतक वह थायराइड और ब्रेस्ट कैंसर की करीब 3 हजार सर्जरी कर चुके हैं। इतना ही नहीं, प्रदेश में किसी सरकारी संस्थान में पहली बार एडवांस कैंसर थायराइड की रोबोटिक सर्जरी करने वाले भी हैं। जहां वह अबतक करीब सौ रोबोटिक सर्जरी कर चुके हैं। उन्होंने इसकी ट्रेनिंग कोरिया जाकर ली थी। वह इस समय बड़-बड़े संस्थानों में एंडो स्कोपिक थायराइड सर्जरी की ट्रेनिंग का काम कर रहे हैं और जल्द ही रोबोटिक सर्जरी ट्रेनिंग देने का भी काम करेंगे। उनको देश-विदेश के उच्च संस्थानों से कई अवार्ड मिल चुके हैं। डॉ। ज्ञान बताते हैं कि कैंसर के क्षेत्र में बहुत काम होना है इसलिए इस फील्ड में बेहतर और एडवांस ट्रीटमेंट देना ही मेरा काम है।ब्रेन टीबी को लेकर किया काम
डॉ। राजेश वर्मा बतौर न्यूरोलॉजिस्ट केजीएमयू में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उन्होंने 1983 में एमबीबीएस कानपुर से किया जबकि डीएम न्यूरो वाराणसी से 2001 में किया। जिसके बाद केजीएमयू में 2001 से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उन्होंने डेंगू और ब्रेन टीबी को लेकर काफी काम किया है। जहां डेंगू इंफेक्शन में न्यूरोलॉजिकल क्या-क्या कठिनाई होती है इसके बारे में गहन रिसर्च कर बेहतर ट्रीटमेंट का द्वार खोला है। वहीं, उन्होंने ब्रेन टीबी को लेकर भी काफी काम किया, जिसके लिए टॉप 15 डॉक्टर्स में उनका नाम आता है। अबतक उनके 350 रिसर्च पेपर्स पब्लिश हो चुके हैं, जो देश-दुनिया में न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के बेहतर ट्रीटमेंट में एक नई दिशा दिखा रहे हैं। डॉ। राजेश के मुताबिक, न्यूरोलॉजिकल समस्याओं का बेहतर और समय पर ट्रीटमेंट बेहद जरूरी है।मूत्राशय के रास्ते दुनिया की पहली प्रोस्टेट कैंसर की रोबोटिक सर्जरीडॉ। यूपी सिंह संजय गांधी पीजीआई के यूरोलॉजी और रिनल ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट के तहत अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उन्होंने एमबीबीएस, गोरखपुर से 1991 में और एमएस झांसी से 2002 में किया था। जिसके बाद यूरोलॉजी विभाग सफदरजंग में एसआर शिप किया। साथ ही एम्स दिल्ली में 1 साल काम किया। डॉ। यूपी सिंह जटिल सर्जरी करने के लिए मशहूर हैं। खासतौर पर किडनी कैंसर के मामले में उनकी विशेषज्ञता लाजवाब है। जहां ट्यूमर को हटा कर किडनी को बचाने का काम करते हैं, जो देश-दुनिया केवल चंद सर्जन ही करते हैं। जिसमें पेट की जगह शरीर के पिछले हिस्से से सर्जरी की जाती है, जिससे इंजरी का खतरा कम होता है। अबतक वह 40 से अधिक सर्जरी कर चुके हैं। इस तकनीक को वह दूसरों को दिखा और सीखा रहे हैं। साथ ही प्रोस्टेट कैंसर में दुनिया में पहली बार मूत्राशय के रास्ते रोबोटिक सर्जरी से करने में सफलता हासिल की है, जोकि एक बड़ी उपलब्धि है। इसे ट्रांसवेसिकल मल्टीपोर्ट रोबोटिक रेडिकल प्रॉस्टेटेक्टॉमी नाम दिया गया है।

Posted By: Inextlive