Independence Day 2024: आजादी के दीवानों की सैकड़ों कहानियां इतिहास में दर्ज हैं जो दशकों से पीढ़ियों को प्रेरित कर रही हैं। ऐसी ही एक कहानी है काकोरी कांड की जिसके 2025 में 100 साल पूरे होने वाले हैं।


लखनऊ (ब्यूरो)। आजादी के दीवानों की सैकड़ों कहानियां इतिहास में दर्ज हैं, जो दशकों से पीढ़ियों को प्रेरित कर रही हैं। ऐसी ही एक कहानी है काकोरी कांड की, जिसके 2025 में 100 साल पूरे होने वाले हैं। काकोरी कांड के क्रांतिकारियों के नाम और उनके हौसले के किस्से आज हर किसी की जुबान पर हैं, पर क्या आप जानते हैं कि 9 अगस्त, 1925 को काकोरी रेलवे स्टेशन से ट्रेन में सवार हुए देश के वीर सपूत क्रांतिकारियों ने जब ब्रिटिश हुकूमत का सरकारी खजाना लूटा था तो उसमें कितनी रकम थी। बता दें कि सरकारी तिजोरी में बंद रकम 4 हजार 6 सौ 79 रुपये थी।काकोरी कांड के 100वीं वर्षगांठ


4 फरवरी, 1922 को अंग्रेजों के शासन से नाराज लोगों ने गोरखपुर के चौरी चौरा थाने में आग लगा दी। इस अग्निकांड में 23 पुलिसवालों की जलकर मौत हो गई। इससे नाराज होकर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। जिसने हजारों क्रांतिकारियों को झटका दिया। बस इसी झटके की वजह से आजादी के मतवालों ने ऐसा कांड किया, जिसने इतिहास के पन्नों में अपनी जगह दर्ज करा ली।हथियार खरीदने को लूटा था सरकारी खजाना

इतिहासकार हफीज किदवई बताते हैं कि चौरी चौरा कांड के बाद महात्मा गांधी ने अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था। ऐसे में अब क्रांतिकारियों में निराशा छा गई थी। कुछ युवा क्रांतिकारियों का ग्रुप आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए पार्टी का गठन करने का फैसला कर चुके थे। ऐसे में सचींद्रनाश सान्याल के नेतृत्व में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की गई। योगेशचंद्र चटर्जी, रामप्रसाद बिस्मिल, सचिंद्रनाथ बक्शी पार्टी के सदस्यों में रूप में जुड़े थे। इसके बाद चंद्रशेखर आजाद व भगत सिंह भी इस पार्टी से जुड़ गए। हिंदुस्तान रिपब्लिकन पार्टी का यह मानना था कि भारत की आजादी के लिए उन्हें हथियार उठाना ही पड़ेगा। ऐसे में अब हथियार खरीदने के लिए क्रांतिकारियों को पैसों की जरूरत थी। इसलिए क्रांतिकारियोंं ने फैसला लिया गया कि उस सरकारी खजाने को लूटा जाएगा, जो हम भारतीयों से ही लूट कर अंग्रेजों ने भरा था।ट्रेन के गार्ड ने देखी थी पूरी घटना

दस्तावेजों में सहारनपुर से लखनऊ की ट्रेन नंबर 8 डाउन के गार्ड जगन नाथ प्रसाद का बयान दर्ज है। इसमें उन्होंने क्रांतिकारियों के उस कांड को विस्तृत रूप से बताया, जो उन्होंने अपनी आंखों से देखा था। जगन नाथ ने बताया था कि 9 अगस्त, 1925 को उनकी ट्रेन 8 डाउन सहारनपुर से लखनऊ आ रही थी। काकोरी स्टेशन से गाड़ी आगे बढ़ी आलमनगर स्टेशन की ओर ट्रेन जा रही थी लेकिन उससे पहले पड़ने वाले काकोरी आउटर पर अचानक ट्रेन रुक गई। चेक करने पर ट्रेन के कम्पार्टमेंट तीन लोग उनकी ट्रेन में दिखे थे जिसमें अशफाक उल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल और राजेंद्र नाथ मौजूद थे। इतना ही नहीं, करीब 20 से 25 लोग बाहर खड़े हुए थे। गार्ड जगन नाथ ने काकोरी स्टेशन से लेकर आउटर तक क्रांतिकारियों ने जो भी किया वो सब कुछ कोर्ट के सामने अपने बयान में बताया था।क्रांतिकारियों को खजाने में मिले 4,679 रुपएइतिहासकार हफीज किदवई बताते हैं कि जैसा कि ट्रेन के गार्ड जगन नाथ ने डिटेल बताई थी, हुआ भी वैसा ही था। ट्रेन में काकोरी स्टेशन पर अशफाक उल्लाह खान, रोशन सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल पहले से ही सवार हो गए थे और उनके बाकी साथी जिसमें चंद्रशेखर आजाद भी शामिल थे, वे काकोरी आउटर पर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। जैसे ही ट्रेन वहां पहुंची चेन खींच कर ट्रेन रोक दी गई। बंदूक की नोंक पर गार्ड को बंधक बनाकर लूटा गया। क्रांतिकारियों के हाथ कुल 4,679 रुपए की रकम आई थी।लखनऊ में चला केस, हुई फांसी
इस घटना ने ब्रिटिश हुकूमत के चूलें हिला दी थीं। पुलिस ने स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम के आईजी को जांच का जिम्मा दिया, घटना में 10 लोग शामिल थे, लेकिन आनन फानन में करीब 40 लोगों की गिरफ्तारियों की गई। 8 सितंबर 1926 को दिल्ली से अशफाक उल्लाह खान को गिरफ्तार किया गया। इस पूरे केस की 9 मार्च 1927 तक सुनवाई लखनऊ के स्पेशल मजिस्ट्रेट के सामने हुई थी और फिर 6 अप्रैल को 1927 को ब्रिटिश कोर्ट के जज लुईस स्टुअर्ट और मोहम्मद रजा खान बहादुर ने फैसला सुनाते हुए राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई। कई लोगों को 14 साल तक की सजा दी गई।स्टेशन पर दिखेगी कांड की हर तस्वीर
अंग्रेजों की चूलें हिलाने वाले इस कांड की याद में काकोरी स्टेशन में अब भी वे तमाम दस्तावेज, सामान वगैरह मौजूद हैं, जो 99 वर्ष पहले की यादें ताजा करते हैं। काकोरी स्टेशन में बने म्यूजियम में वैसा ही लोहे का भारी-भरकम बक्शा रखा है, जिसमें ब्रिटिश सरकार पैसे और खजाना ले जाती थी। स्टेशन में उस दौरान लगी घंटी, लॉकर को संजो कर रखा गया है। इस म्यूजियम में वे जजमेंट भी है, जिनमें हमारे आजादी के मतवालों को फांसी की सजा सुनाई गई थी।

Posted By: Inextlive