वेब वर्ल्ड के जाल में उलझकर बड़े कांड कर रहे छोटे 'उस्ताद'
लखनऊ (ब्यूरो)। इंटरनेट और सोशल मीडिया दुनियाभर में एक क्रांति बनकर उभरा है। हालांकि, एक तरफ जहां इसने यंगस्टर्स को सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर बनकर अपने करियर को नई दिशा देने का मौका दिया है, वहीं इसके दामन पर कम उम्र के बच्चों को साइबर क्राइम और सोशल मीडिया एडिक्शन की तरफ धकेलने जैसे दाग भी हैं। कोरोना वायरस के बाद की दुनिया में बच्चों का 'स्क्रीन टाइम' बढ़ा है और इंटरनेट एडिक्शन का 'वायरस' उन्हें गलत दिशा में ले जाने का काम कर रहा है। पेश है इस गंभीर मुद्दे पर एक खास रिपोर्टकेस 1लंदन के एक स्कूल में पढऩे वाली महज सात की बच्ची ने उस वक्त सबको हैरान कर दिया था, जब उसने 10 मिनट के अंदर एक अनसिक्योर पब्लिक वाई-फाई नेटवर्क के जरिए एक अजनबी का लैपटॉप हैक करके दिखा दिया। ऐसा उसने उस वक्त यूट्यूब पर मौजूद रहे ट्यूटोरियल्स को देखकर किया था।
केस 2
ऑस्ट्रेलिया के एक स्कूल में पढऩे वाले 16 साल के एक लड़के ने एप्पल कंपनी के इंटरनेट सिक्योरिटी सिस्टम को कई बार तोड़ा। इस दौरान उसने करीब 90 जीबी सिक्योर फाइल्स के अलावा कस्टमर्स के अकाउंट्स को भी एक्सेस किया। इसके चलते उसे लीगल केस का भी सामना करना पड़ा, जहां उसने बताया कि उसका सपना एप्पल कंपनी में जॉब पाना था।केस 3इंडिया की बात करें तो वैसे तो लगभग हर शहर में ऐसेे केस सामने आते रहे हैं, पर झारखंड का जामताड़ा साइबर अपराधों के लिए बदनाम है। देश में ज्यादातर साइबर फ्रॉड की जड़ यहीं पाई गई। जामताड़ा के नाबालिग पढ़े लिखे लोगों को भी ठगी का शिकार बना चुके हैं। आमलोगों से लेकर कई राजनेताओं तक को वे शिकार बना चुके हैं। कम पढ़ा-लिखा होने के बावजूद ये युवा इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में महारत हासिल कर लेते हैं।फैक्ट फाइल05 बिलियन से ज्यादा इंटरनेट यूजर्स मौजूद हैं दुनिया में05 बिलियन के करीब एक्टिव सोशल मीडिया यूजर्स दुनिया मेंसबसे ज्यादा एक्टिव यूजर्स वाली वेबसाइट्स-फेसबुक (करीब 3 बिलियन)-यूट्यूब (करीब 2.6 बिलियन)-व्हाट्सऐप (करीब 2 बिलियन)-इंस्टाग्राम (करीब 1.4 बिलियन)-टिकटॉक (करीब 1 बिलियन)9 घंटे तक बिता रहे सोशल मीडिया पर
हाल ही में वल्र्ड लेवल पर हुए एक सर्वे में सामने आया कि 16 से 64 साल की एज के लोग जहां दिन के करीब 2.5 घंटे सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स पर रोज बिताते हैं, वहीं 13 से 19 की उम्र के बच्चों में यह वक्त बढ़कर करीब 3 घंटे तक पहुंच गया। कई बच्चे तो रोज सोशल मीडिया पर 9 घंटे तक बिताते नजर आए। इस उम्र के बच्चों के बीच सबसे पॉपुलर वेबसाइट यूट्यूब है, जिसके बाद टिक टॉक का नंबर आता है। हालांकि, इंडिया में इसे बैन कर दिया गया है। इंस्टाग्राम और स्नैपचैट को लेकर भी इस उम्र के बच्चों में काफी क्रेज दिखता है।मेंटल हेल्थ पर हो रहा बुरा असरइंटरनेट या सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल न सिर्फ कम उम्र के बच्चों को गलत रास्ते की तरफ मोडऩे का काम कर रहा है, बल्कि इससे उनकी मेंटल हेल्थ पर भी बुरा असर हो रहा है। एक स्टडी में पाया गया कि रोज दिन के तीन घंटे सोशल मीडिया पर बिताने वाले बच्चों की मेंटल हेल्थ काफी खराब हुई है। लोगों से फेस-टू-फेस मुलाकात न होने के चलते बच्चे डिप्रेशन, एंग्जाइटी, स्ट्रेस, अकेलेपन, पढ़ाई में मन न लगना जैसे निगेटिव ख्यालों से घिर जाते हैं।सर्वे में सामने आए चौंकाने वाले आंकड़ेहाल ही में हुए एक सर्वे में जब शहर के टीनएज बच्चों के पैरेंट्स से कुछ सवाल किए गए तो सामने आए जबाव हैरान करने वाले थे1. 9-13 साल का आपका बच्चा रोज कितना वक्त इंटरनेट को देता है?-49 परसेंट ने कहा 3 घंटे से ज्यादा
-24 परसेंट ने कहा 6 घंटे से ज्यादा-25 परसेंट ने कहा 3 से 6 घंटे-12 परसेंट ने कहा करीब एक घंटा2. 13-17 साल का आपका बच्चा रोज कितना वक्त इंटरनेट को देता है?-62 परसेंट ने कहा 3 घंटे से ज्यादा-28 परसेंट ने कहा 6 घंटे से ज्यादा-34 परसेंट ने कहा 3 से 6 घंटे-04 परसेंट ने कहा बहुत कम3. 9-17 उम्र के बच्चों में सोशल मीडिया, गेमिंग और वीडियोज का एडिक्शन क्यों है?-28 परसेंट ने कहा समय से पहले गैजेट्स देने के चलते-13 परसेंट ने कहा दोस्तों के दबाव की वजह से-26 परसेंट ने कहा स्कूल की एक्टिविटीज ऑनलाइन होने से-31 परसेंट ने कहा पैरेंट्स के ज्यादा यूज को देखकरपैरेंट्स इन बातों का रखें ध्यान-बच्चों के बर्ताव में आए बदलावों पर नजर रखें-खुद पर कंट्रोल न रख पाने वाले बच्चे गलत एक्टिविटीज में ज्यादा शामिल होते हैं-गलत फ्रेंड सर्किल भी बनता है बड़ी वजह-रूम में अलग से पर्सनल कंप्यूटर हो तो वह पैरेंटल सुपरविजन में होना चाहिए-बहुत कम उम्र में मोबाइल फोन या इंटरनेट का एक्सेस मिल जाना-कम उम्र में ही डिजिटल पायरेसी की तरफ अट्रैक्शन
-बच्चों को साइबर क्राइम करने के नतीजों के बारे में बताएंस्किल्स का किया जा सकता है बेहतर इस्तेमालकई बार देखा गया है कि पैरेंट्स की तरफ से बच्चों की इंटरनेट या सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स पर एक्टिविटीज को कंट्रोल करने के लिए उनकी डिवाइस पर पासवर्ड, पैरेंटल कंट्रोल सॉफ्टवेयर्स के इस्तेमाल के बावजूद बच्चे पैरेंट्स को झांसा देकर गलत एक्टिविटीज में शामिल हो जाते हैं। हालांकि, बाल सुधार गृह वगैरह में भेजने के अलावा उनके इस स्किल का उनकी काउंसिलिंग करके सही इस्तेमाल भी किया जा सकता है। अगर उनके तेज दिमाग को ध्यान में रखते हुए उन्हें साइबर सिक्योरिटी से जुड़े किसी कोर्स का हिस्सा बना दिया जाए, तो वे आगे चलकर इस फील्ड में अच्छा करियर भी बना सकते हैं। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में एथिकल हैंकिंग से जुड़े कोर्स मौजूद हैं और वल्र्ड लेवल पर इनके कॉम्प्टिीशंस भी होते रहते हैं। इंडिया में भी यह ट्रेंड तेजी से पॉपुलर हो रहा है।इन देशों में सबसे ज्यादा होता है साइबर क्राइम-चीन-रूस-इंडिया-ब्राजील-ईरान-नाइजीरिया-जर्मनी-वियतनाम-पोलैंड-अमेरिका