बिन मुलायम बंटा यश भारती पुरस्कार
- मुलायम ने की थी यश भारती सम्मान देने की शुरुआत
- मुख्यमंत्री ने भाषण में मुलायम को दिया श्रेय - सम्मान के जरिए समाजवाद से जोड़ने की कवायद LUCKNOW :चुनावी बेला में राज्य सरकार ने गुरुवार को यश भारती पुरस्कार तो बांटे, लेकिन इस अहम कार्यक्रम में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की नामौजूदगी चर्चा का विषय बन गयी। कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार में भी मुलायम के सान्निध्य में पुरस्कार बांटने का ऐलान किया गया था, इसके बावजूद राजधानी में रहने के बाद भी मुलायम लोक भवन नहीं पहुंचे। मालूम हो कि प्रदेश सरकार के सबसे बड़े पुरस्कार यश भारती की शुरुआत मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री रहने के दौरान की थी। वहीं अखिलेश भी मुख्यमंत्री बनने के बाद लगातार इस परंपरा को आगे बढ़ाते रहें हैं। खुद जाकर पुरस्कार देते थे नेताजीसीएम ने इस अवसर पर कहा कि जिन लोगों को यश भारती पुरस्कार दिया जा रहा है, वे सालों की कड़ी मेहनत के बाद इस मुकाम तक पहुंचे हैं। इन्होंने देश और प्रदेश का सम्मान बढ़ाया है। यश भारती देने की शुरुआत नेताजी (मुलायम सिंह यादवव) ने की थी। जो लोग बीमार होने की वजह से पुरस्कार लेने नहीं आ पाते थे, नेताजी उन्हें उनके पास जाकर पुरस्कृत करते थे। मशहूर अभिनेता अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंश राय बच्चन को नेताजी ने मुंबई जाकर यश भारती पुरस्कार दिया था। मुख्यमंत्री ने इस बात पर खुशी जाहिर की कि अब सेना के लोग भी यश भारती से सम्मानित हो रहे हैं। नेताजी रक्षा मंत्री रह चुके हैं और मैं भी सैनिक स्कूल से पढ़ा हूं। लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चैत का पुरस्कार स्वीकार करना गर्व की बात है। बोले कि कई बार हमें भी पता नहीं होता है कि इतना नाम कमाने वाले लोग यूपी के बाशिंदे हैं। यूपी बड़ा प्रदेश है, आबादी भी ज्यादा है। ऐसी कोई विधा नहीं, जिसमें यूपी के लोग आगे न हो। समाजवादियों ने भी हर क्षेत्र में आगे रहने की कोशिश की है। हम किसी जाति, धर्म, समुदाय का भेद करके कोई काम नहीं करते हैं। हमने अगर शहरों के लिए योजनाएं शुरू की तो गांवों में भी खुशहाली के लिए तमाम काम किए हैं। कभी अंग्रेजी का विरोधी माने जाने वाले समाजवादियों से ऐसे काम किए जाने की ि1कसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
गेट पर मचा हड़कंप'मुख्य सचिव की गाड़ी गेट पर फंसी है, जल्दी गेट खोलिए आप विधायक होंगे, लेकिन अभी पीछे हटिए' यह नजारा था यश भारती सम्मान समारोह शुरू होने से पहले लोक भवन के मुख्य द्वार का, जहां तमाम अफसरों और विधायकों को भी भीतर जाने में खासी मशक्कत करनी पड़ी। दरअसल मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में आने की सूचना मिलते ही वहां उनके समर्थकों का जमावड़ा लग गया था जो किसी भी सूरत में अंदर जाने की कोशिश में थे। सचिवालय सुरक्षाकर्मी और स्थानीय पुलिस के अफसर उन्हें रोकने का प्रयास कर रहे थे जिससे गेट पर जाम लग गया। पुलिस ने भीड़ को खदेड़ना शुरू किया तो इसकी जद में तमाम विधायक भी आ गये। बाद में उन्हीं नेताओं को भीतर जाने की इजाजत दी गयी जिनके पास इंविटेशन कार्ड था। इस अफरा-तफरी के दौरान कुछ लोगों की जेब भी कट गयी।
.और बलराम बैठे रहे नीचेकार्यक्रम के दौरान मंच पर काबीना मंत्री राजेंद्र चौधरी, अहमद हसन, रामगोविंद चौधरी, कमाल अख्तर आदि मंच पर मौजूद रहे जबकि बलराम यादव जैसे वरिष्ठ मंत्री दर्शक दीर्घा की अग्रिम पंक्ति पर बैठे नजर आए। बलराम यादव ने मंच पर जाने की कोशिश भी की, लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें वापस कर दिया। वहीं कार्यक्रम से तमाम मंत्रियों ने दूरी बनाए रखी जिसकी वजह परिवार में चल रही रार को माना जा रहा है। सरकार के अंतिम दौर में तमाम विभूतियों को पुरस्कृत कर उन्हें समाजवादी विचारधारा से जोड़ने की पहल भले ही की गयी हो, लेकिन तमाम मंत्रियों और विधायकों की कार्यक्रम से दूरी अपने पीछे कई सवाल भी छोड़ गयी। तमाम नेता इसे लेकर आपस में कानाफूसी करते भी दिखे।
गायत्री को किया नजरअंदाज वहीं कार्यक्रम को संबोधित करने के दौरान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मंचासीन मंत्रियों के नाम तो लिए, लेकिन परिवहन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति को उन्होंने नजरअंदाज कर दिया। गायत्री ने कई बार अभिवादन कर मुख्यमंत्री से मुखातिब होने की कोशिश भी की, लेकिन मुख्यमंत्री ने उनपर ध्यान नहीं दिया। मालूम हो कि विगत 23 अक्टूबर को विधानमंडल की बैठक के बाद मुख्यमंत्री की ओर से गायत्री को बर्खास्त किए जाने की आशंका भी जताई जा रही थी, लेकिन अचानक उन्हें 'अभयदान' मिल गया था।