बस एक स्कैन से सामने होगी बीमारी की डिटेल
लखनऊ (ब्यूरो)। पैथालॉजी के लिए आने वाला समय ऑटोमेशन का होना वाला है। जहां आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और कंप्यूटराइजेशन की मदद से बेहद आसानी से डायग्नोसिस बनाई जा सकती है। कंप्यूटर के माध्यम से देश के किसी भी कोने से इमेज मंगवाकर केस का डायग्नोसिस किया जा सकेगा। बीमारी की जल्द डायग्नोसिस होने से मरीजों के इलाज में आसानी होगी और उनकी बीमारी को जल्द दूर किया जा सकेगा। ये बातें केजीएमयू के पैथालॉजी विभाग द्वारा आयोजित यूपी साइटोकॉन के दौरान कंप्यूटेशनल साइटोफथालॉजी विषय पर बोलते हुए राजस्थान की राजधानी जयपुर से आए प्रोफेसर प्रणब डे ने बताई।बढ़ रहे ओरल कैंसर के मरीज
कार्यक्रम के दौरान एम्स भोपाल से आई डॉक्टर वैशाली वालके ने बताया कि आजकल थॉयराइड कैंसर के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इसलिए मरीज की अर्ली डायग्नोसिस करना बेहद जरूरी है। वहीं, डॉ। सुरेश ने बताया कि ओरल कैंसर के एक तिहाई मामले अब भारत में ही मिल रहे है। इसका प्रमुख कारण यह है कि भारत में ही तंबाकू का सर्वाधिक सेवन किया जाता है। ओरल कैंसर में शुरुआत में किसी तरह का दर्द नहीं होता है। जब व्यक्ति का मुंह खुलना बंद हो जाता है तो वह डॉक्टर के पास आता है। ऐसे में लोगों को जागरुक करने की जरूरत है। अगर इस तरह के केसों में जल्द डायग्नोसिस हो जाए तो मरीज की जान बचाई जा सकती है।एआई का भविष्य में करेंंगे इस्तेमालको-आर्गेनाइजिंग चेयरपर्सन डॉक्टर सुरेश बाबू ने बताया कि पैथालॉजी में एआई पर काम करने की जरूरत है लेकिन इसके लिए एक्सपर्टाइजेशन होना चाहिए। इस पर काम किया जा रहा है ताकि भविष्य मेें केजीएमयू पैथालॉजी में भी एआई का इस्तेमाल किया जा सके। वही, प्रोफेसर नलिनी गुप्ता ने बताया कि लंग कैंसर के मरीजों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। लगातार बढ़ता प्रदूषण भी इसका एक कारण है। सांस के साथ अंदर गए खतरनाक कण भी इसका कारण बन रहे हैं। ऐसे में वायु प्रदूषण को जल्द नियंत्रित करने की आवश्यकता है।पहले ही मिल जाता है इलाज
पैथालॉजी विभाग की डॉक्टर रिद्धि जायसवाल ने बताया कि कैंसर की जांच प्रक्रिया में विभिन्न श्रेणियों में बदलाव आया है। पहले कई ऐसे ट््यूमर थे जो कैंसर नहीं माने जाते थे, अब उन्हें प्री-कैंसर की श्रेणी में शामिल किया गया है। इसका फायदा यह हुआ है कि कई मरीजों को कैंसर होने से पहले ही समुचित इलाज मिल जाता है। कुछ मरीजों में गाठें होती थीं और कैंसर का इलाज भी किया जाता था। अध्ययनों में वह कैंसरकारी नहीं मिलीं। दोनों ही मामलों में मरीज को जांच का फायदा मिलेगा।