Lucknow News: पोलियो के खात्मे और कोविड 19 महामारी को फैलने से रोकने में शासन और लोगों की सतर्कता सहयोग और बेहतर मैनेजमेंट के काफी अच्छे नतीजे देखने को मिले थे। पर बात जब डेंगू की होती है तो विभागों से लेकर आम लोग तक तक न केवल लापरवाह हो जाते हैं बल्कि उसने सहयोग भी नहीं मिलता है।


लखनऊ (ब्यूरो)। पोलियो के खात्मे और कोविड 19 महामारी को फैलने से रोकने में शासन और लोगों की सतर्कता, सहयोग और बेहतर मैनेजमेंट के काफी अच्छे नतीजे देखने को मिले थे। पर बात जब डेंगू की होती है तो विभागों से लेकर आम लोग तक तक न केवल लापरवाह हो जाते हैं बल्कि उसने सहयोग भी नहीं मिलता है। वहीं दूसरी तरफ, संचारी रोग अभियान के तहत करोड़ों रुपये खर्च होने के साथ-साथ दर्जनभर विभाग भी डेंगू को कंट्रोल करने के लिए पसीना बहा रहे होते हैं, पर नतीजा सिफर ही रहता है। आपसी सामंजस्य की इस कमी के चलते ही डेंगू के मामले हर साल मुसीबत बन जाते हैं।पोलियो और कोविड को हराया


भारत में पोलियो के खात्मे के लिए 1994 में पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान शुरू किया गया था। जहां शासन-प्रशासन के माइक्रो मैनेजमेंट और लोगों के सहयोग से दूर-दराज के इलाकों तक वैक्सीन पहुंचाई, जिसके चलते 2011 में पोलियो का आखिरी केस और 2014 में भारत को पोलियो मुक्त का सर्टिफिकेट मिला था। उसी तरह 2019 में आये कोविड काल में भी इसी तरह की अवेयरनेस, सतर्कता, तत्परता और जनसहयोग मिला। जिसकी बदौलत कोविड को हराने में मदद मिली।बजट की तो कोई कमी नहीं

बात जब डेंगू के खात्मे की आती है तो पोलियो व कोविड के दौरान दिखी तत्परता और सहयोग नजर नहीं आता। नगर निगम और स्वास्थ्य विभाग केवल बीमारी फैलने के बाद ही एक्टिव मोड में आता है। उससे पहले केवल खानापूर्ति के नाम पर एंटी लार्वा और फॉगिंग कराई जाती है। वहीं, जिला स्वास्थ्य विभाग को मिलने वाले बजट की बात करें तो अभियान से लेकर दवा, छिड़काव के लिए केमिकल आदि सभी सप्लाई शासन स्तर से उपलब्ध कराई जाती है। वहीं, खास अभियान के लिए 1 लाख से लेकर 2-3 लाख तक का बजट मिल जाता है। वहीं, छपाई, जागरूकता अभियान में खर्च का मानदेय मिलता है, जो नियमों के तहत दिया जाता है। इसके अलावा डॉक्टर्स, कर्मचारी आदि की पूरी टीम होती है। वहीं, नगर निगम को फॉगिंग, छिड़काव और अन्य मदों के तहत 5 लाख से अधिक का बजट होता है। इसके अतिरिक्त, फॉगिंग मशीन के लिए अतिरिक्त क्रय बजट भी होता है।फॉगिंग और एंटी लार्वा का नहीं दिखता असर

तमाम विभागों की कवायदों के बावजूद मच्छरों का प्रकोप थम नहीं रहा है। एक्सपर्ट की माने तो मच्छरों से बचाव के लिए नगर निगम फॉगिंग तो करवाता है, लेकिन इसका भी ज्यादा असर नहीं रहता है। इसमें मेलाथियोन केमिकल होता है। फॉगिंग से मच्छर कुछ देर के लिए बेहोश होते है। पर धुएं का असर खत्म होते ही दोबारा एक्टिव हो जाते हैं। ऐसे में, समय-समय पर फॉगिंग करवाते रहना चाहिए। इसी तरह एंटी-लार्वा का छिड़काव तो होता है, पर उसका भी असर ज्यादा नहीं होता। पहले केरोसिन के प्रयोग से अच्छा असर देखने को मिलता था। पर इसपर रोक के बाद अन्य जो केमिकल इस्तेमाल हो रहे हैं उनका अधिक असर नहीं देखने को मिल रहा है। वहीं, एंटी लार्वा छिड़काव के लिए टेमेफोस और बायोसाइड का इस्तेमाल किया जाता है। पर इसका असर ज्यादा दिनों तक नहीं दिखता है। दरअसल, केरोसिल और डीजल के विकल्प के तौर पर जो केमिकल का इस्तेमाल हो रहा है उनका अधिक असर मच्छरों पर देखने को नहीं मिल रहा है। एक तरह से मच्छर इनके प्रति रेजिस्टेंट होते जा रहे हैं।आपसी तालमेल की कमी
वैसे तो डेंगू से लड़ाई में एक दर्जन से ज्यााद विभाग मिलकर काम करते हैं पर असली काम स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम का होता है। हालांकि, दोनों ही विभागों में आपसी सामंजस्य की कमी देखने को मिलती है। एक रिपोर्ट के अनुसार, अर्बन डेवलेपमेंट विभाग द्वारा जनपद में एंटी लार्वल एक्टिविटी के तहत महज 63 फिसदी ही काम किया गया था। जो राज्य औसत 67 फीसदी से भी कम था। राजधानी में तो महज 46 फीसदी ही छिड़काव हो सका था जबकि फॉगिंग का काम करीब 75 फीसदी ही हो सका था।ये डिपार्टमेंट मिलकर लड़ते हैं डेंगू-मलेरिया सेनगर निगम - शहरी एरिया में साफ-सफाई, एंटी लार्वा छिड़काव, फॉगिंग आदि का काम।पंचायती राज ग्रामीण विभाग - देहात एरिया में साफ-सफाई, एंटी लार्वा छिड़काव, फॉगिंग आदि का काम।बेसिक शिक्षा विभाग - क्लास एक से आठवीं तक के स्कूल में आने वाले बच्चों, पेरेंट्स और स्कूल स्तर की कमेटी को अवेयर करना।माध्यमिक शिक्षा विभाग - क्लास 9-12वीं तक के स्कूल में आने वाले बच्चों, पेरेंट्स और स्कूल स्तर की कमेटी को अवेयर करना।कृषि रक्षा विभाग - किसानों को अवेयर करना।आईसीडीएस विभाग - आंगनबाड़ी, आशा वर्कर्स को डोर टू डोर जाकर लोगों को अवेयर, स्क्रीनिंग, जांच के लिए हॉस्पिटल भेजना और उन्हें सावधानी बरतने के लिए बताना।पशु चिकित्सा विभाग - पशु पालकों खासकर सूकर पालकों को बताता है कि वह अबादी से दूर पालन करें क्योंकि इससे संक्रामक रोग फैल सकता है।जल निगम - सभी को शुद्ध पेयजल मुहैया कराना।
सिंचाई विभाग - नहर या फिर किनारों आदि में कर्मचारियों को निर्देश दें कि कहीं पर अनियंत्रित पानी एकत्र न होने पाए।सूचना विभाग - कोई भी सूचना जनहित के लिए प्रसारित करनादिव्यांग कल्याण विभाग - दिमागी बुखार और संक्रामक रोग आदि से अगर कोई दिव्यांग होता है तो उसके लिए दिव्यांग कल्याण विभाग उसके लिए उपकरण अदि मुहैया कराता है।उद्यान विभाग - मच्छरों से बचाव के लिए कहीं पर भी नर्सरी आदि में पानी एकत्र न होने दें। इसके साथ ही मच्छरों को भगाने वाले पौधे रौंपने के लिए लोगों को अवेयर करना। इसमें तुलसी, गेंदा और लेमन ग्रास आदि पौधे शामिल हैं।खाद्य एवं औषधि विभाग - रेस्टोरेंट, होटल्स आदि में खाने पीने के सामान के पास गंदगी न होने दें कोई भी खाने पीने का सामान खुले में पाया जाता है तो उसे रोकना एवं कार्रवाई करना।डेंगू का डाटा- 2021 में 1978 केस- 2022 में 2648 केस, 4 मौतें- 2023 में 2749 केस, 4 मौतें- 2024 में अब तक 46 केसअभियान के लिए शासन स्तर से बजट जारी होता है। विभाग के पास डॉक्टर, नर्स, कर्मचारी समेत अन्य लोग हैं, जो जागरूकता, जांच, छिड़काव और दवा वितरण का काम करते हैं। लोगों का भी सहयोग जरूरी है।-डॉ। मनोज अग्रवाल, सीएमओसफाई अभियान चलाया जा रहा है। साथ ही छिड़काव भी कराया जा रहा है। वहीं, चिन्हित स्थानों पर फॉगिंग भी कराई जा रही है।-इंद्रजीत सिंह, नगर आयुक्त

Posted By: Inextlive