Dengue in Lucknow: केमिकल बदला, एमएलओ लाए लेकिन डेंगू का कुछ बिगाड़ न पाए
लखनऊ (ब्यूरो)। डेंगू मच्छरों का सीजन वैसे तो जुलाई से सितंबर माह के बीच का माना है, लेकिन इनका प्रकोप अब लगभग पूरे साल ही देखने को मिल रहा है। जुलाई से सितंबर के बीच का समय उनके पनपने के लिए मुफीद माना जाता है क्योंकि इस दौरान मानसून एक्टिव रहता है। डेंगू मच्छर साफ पानी में पनपता है। स्वास्थ्य विभाग एडीज एजिप्ट मच्छरों को पनपने से रोकने की कई कवायदें कर चुका है। पर इसके बावजूद मच्छरों की संख्या कम नहीं हो रही है। ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि आखिर इन मच्छरों पर काबू कैसे पाया जाये।मैनेजमेंट करना बेहद जरूरी
एडीज एजिप्ट मच्छर ज्यादा ऊंचाई तक नहीं उड़ पाते हैं इसलिए अधिकतर ये लोगों पैरों में काटते हैं। यह मच्छर खासतौर पर सुबह अधिक काटता है। ऐसे में बचाव बेहद जरूरी है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, डेंगू मैनेजमेंट के दो अहम पहलू-तैयारी और प्रतिक्रिया है। जिसमें लार्वा की रोकथाम, वायरल और वेक्टर चेतावनी, चेतावनी प्रणालियों की स्थापना, पर्याप्त डायग्नोस्टिक किट, सामुदायिक जागरूकता शामिल आदि है।कम नहीं हो रहा प्रकोप
स्वास्थ्य विभाग वेक्टर बार्न डिजीज रोकथाम के लिए हर साल बड़े स्तर पर अभियान चलाता है। जिसमें कई विभाग मिलकर काम करते है। पर असल जिम्मा स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम के ऊपर होता है। जो एंटी लार्वा छिड़काव, सोर्स डिडक्शन और फॉगिंग का मुख्य काम करते है। हालांकि, इसके बावजूद मच्छरों का प्रकोप कम नहीं हो रहा है। 2023 में डेंगू के 2749 केस और 4 मौतें दर्ज की गई थीं, जोकि बीते सालों के आंकड़ों के अनुसार सबसे अधिक था।दो मुख्य केमिकल का होता है यूज
मच्छरों को कंट्रोल करने के लिए पहले डीजल और केरोसिन का इस्तेमाल किया जाता था, जिसका असर भी देखने को मिलता था। पर इसका साइड इफेक्ट और महंगा होने के कारण कुछ वर्ष पहले इसका इस्तेमाल बंद कर दिया गया। इसकी जगह सरकार द्वारा लार्विसाइडल दिया जाने लगा। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, लार्वा कंट्रोल के लिए अब टेमेफोस दिया जाता है, जो एक बार्गनोफॉस्फेट लार्विसाइड है, जिसका उपयोग मच्छरों, मिडज और काली मक्खी के लार्वा सहित रोग फैलाने वाले कीड़ों से प्रभावित पानी पर किया जाता है। इसके अलावा, बायोसाइड का भी यूज किया जाता है। इनको अलग-अलग रेशियो में लेकर पानी में मिलाया जाता है, जिसका बाद में छिड़काव कराया जाता है ताकि लार्वा को पनपने से रोका जा सके। हालांकि, इनका असर ज्यादा देखने को नहीं मिलता क्योंकि कुछ दिनों के बाद इनका असर खत्म हो जाता है और लार्वा को पनपने का दोबारा मौका मिल जाता है। इनका छिड़काव थोड़े-थोड़े अंतराल पर करवाना चाहिए।एमएलओ का भी नहीं दिख रहा असरबीते साल डेंगू लार्वा को पनपने से रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा मॉस्किटो लार्विसाइडल ऑयल (एमएलओ) का इस्तेमाल शुरू किया था। अधिकारियों का दावा था कि इसके छिड़काव से पानी के ऊपर एक परत बन जाती है। जिससे करीब दस दिनों तक मलेरिया, डेंगू आदि फैलाने वाले मच्छरों के लार्वा को पनपने का मौका नहीं देता है। अधिकारियों के मुताबिक, एमएलओ का छिड़काव नगर निगम द्वारा किया जाता है।ड्रोन से छिड़काव की तैयारीमच्छरों के रोकथाम के लिए इसबार भी एमएलओ का उपयोग होगा। वहीं, इस बार छिड़काव ड्रोन से कराने की तैयारी भी चल रही है, ताकि अधिक से अधिक इलाकों में छिड़काव कराया जा सके। जिससे मच्छरों पर काबू पाने में मदद मिलेगी।आंगनवाड़ी वर्कर्स नहीं पहुंचतीं घर
डेंगू से बचाव के लिए स्वास्थय विभाग द्वारा दस्तक अभियान भी चलाया जाता है, जिसके तहत आंगनवाड़ी वर्कर्स को घर-घर जाना होता है। आंकड़ों के अनुसार, बीते साल करीब 34 फीसदी घरों में कोई आया ही नहीं, जोकि एक चिंता का विषय है। हालांकि, झाड़ियां साफ करना, स्कूलों में जागरूकता आदि का काम बेहतर रहा, पर इसके बावजूद मच्छरों पर रोक कैसे लगेगी, यह बड़ा सवाल बनता जा रहा है।लार्वा को पनपने के लिए लगातार छिड़काव का काम किया जा रहा है। सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में खास फोकस किया जा रहा है। एमएलओ का छिड़काव नगर निगम द्वारा किया जाना है।-डॉ। मनोज अग्रवाल, सीएमओबोली जनताडेंगू फैलने में प्रशासन और आम जनता, दोनों जिम्मेदार हैं। प्रशासन बस कागजों पर साफ -सफाई और छिड़काव करता है। वहीं, आम जनता भी साफ -सफाई पर ध्यान नहीं देती, कहीं पर भी कूड़ा फेंक देती है। विशेषकर पॉलीथिन, जिसके कारण नाली जाम हो जाती हैं और डेंगू मच्छर रुके हुए पानी में पनपने लगते हैं।-प्रदीप पांडेय, इंद्रपुरी कालोनीडेंगू बीमारी नहीं बल्कि व्यापार का अवसर बन गया है सभी अस्पतालों के लिए। दवाई का छिड़काव भी बेअसर है क्योंकि दावा से ज्यादा पानी मिक्स होता है। नगर निगम द्वारा सफाई भी नहीं होती। जब तक कोई चाहेगा नहीं, डेंगू जैसी बीमारी खत्म नहीं हो सकती।-डॉ। निशांत कनोडिया, गोमती नगर
डेंगू के मरीज हर साल बढ़ते जा रहे हैं। विभागों की कवायदें इसे रोकने में नाकाफी साबित हो रही हैं। वे केवल बाहर से ही छिड़काव करके चले जाते हैं, जबकि डेंगू मच्छर घरों के अंदर भी होते हैं। विभाग को घरों में भी छिड़काव और फॉगिंग की व्यवस्था करनी चाहिए।-अंकित श्रीवास्तव, जानकीपुरमतमाम प्रयासों के बावजूद डेंगू पर रोकथाम नहीं लग पा रही है। बारिश के कारण जलभराव की समस्या रहती है, जिससे मच्छरों को पनपने का मौका मिलता है। जिम्मेदार विभागों द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया जाता है। ऐसे में डेंगू का खतरा कैसे कम होगा।-हिंगलांशु, आशियाना