Lucknow News: अगर बचपन में किसी लड़के या लड़की को अपोजिट जेंडर की तरह रहना या दिखना अच्छा लगता है या उसका व्यवहार अपने जेंडर से अलग नजर आता है तो पैरेंट्स को इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि यह बिहेवियर आगे चलकर एक समस्या बन सकती है।


लखनऊ (ब्यूरो)। अगर बचपन में किसी लड़के या लड़की को अपोजिट जेंडर की तरह रहना या दिखना अच्छा लगता है या उसका व्यवहार अपने जेंडर से अलग नजर आता है, तो पैरेंट्स को इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि यह बिहेवियर आगे चलकर एक समस्या बन सकती है। हालांकि, कई बार समय पर एहसास होने से यह बर्ताव बंद भी हो जाता है, लेकिन ऐसा न होने की स्थिति और समाज के डर के कारण लोग सामने नहीं आते है और फिर अकेले में इस तरह का बर्ताव करते हैं। साइकियाट्री की भाषा में इसे पैराफीलिया कहा जाता है। इस समस्या से पीड़ित लोगों को इलाज की मदद से ठीक किया जा सकता है। पढ़ें अनुज टंडन की रिपोर्टयह बायोलॉजिकल या इनहेरंट समस्या
केजीएमयू के साइकियाट्री विभाग के डॉ। आदर्श त्रिपाठी ने बताया कि कुछ लोगों में सेक्शुअल डिविएशन होते हैं, जो अधिकतर बचपन से ही देखने को मिलते हैं। कुछ लोगों को कुछ अलग तरह की चीजों में प्लेजर मिलने लगता है। वे खासतौर पर सेक्शुअल प्लेजर के लिए ऐसा करते हैं। अपने जेंडर से संतुष्ट न होता, पीडोफिलिक बिहेवियर, किसी के सामने अपना प्राइवेट पार्ट एक्सपोज कर देना, दूसरे के चप्पल-जूते या लॉन्जरी आदि से प्लेजर लेना आदि जैसे लक्षण उनमें नजर आने लगते हैं। इसका कारण पैरेंटिंग या सोशल नहीं बल्कि बायोलॉजिकल या इनहेरंट होता है, जिसमें अर्ली सेक्शुअल एक्सपोजर या अब्यूज आदि का होना देखा गया है। ब्रेन डेवलपमेंट और हार्मोन के कारण भी ऐसा होता है।बीते सालों में संख्या में हुई बढ़ोतरी


पैराफीलिया की समस्या पहले से चलती आ रही है, पर पहले इसके प्रति लोगों में जागरूकता की कमी थी। साथ ही लोग सामाजिक डर के कारण भी सामने नहीं आते थे। पहले ओपीडी में जहां माह में केवल एक-आध ही मामले ऐसे आते थे। वहीं, अब यह संख्या बढ़कर 5-6 हो गई है। कई बार संख्या बढ़ भी जाती है। कई बार लोग किसी और समस्या के साथ आते हैं, लेकिन बातचीत में इसके बारे में पता चलता है या फिर जब कोई मामला हो जाता है तब इसकी जानकारी होती है। हालांकि, हाल के वर्षों में इसके प्रति लोगों में जागरूकता बड़ी है, जिसमें सोशल मीडिया, सपोर्ट ग्रुप, फिल्म, सीरियल आदि के चलते लोगों को विस्तार से इसके बारे में पता चल रहा है, जिसकी वजह से लोगों मेें झिझक कम हो रही है। परिवार के किसी सदस्य के व्यवहार खासतौर पर सामाजिक व्यवहार में बदलाव आये तो सतर्क हो जाना चाहिए। हालांकि, अमूमन परिवार के सदस्यों को अपने किसी सदस्य में इस समस्या के होने का पता होता है।ट्रीटमेंट से किया जा सकता है ठीकइस तरह के लोगों में डिप्रेशन व एंग्जायटी की संभावना ज्यादा रहती है इसलिए इनको सपोर्ट भी ज्यादा चाहिए होता है। वहीं, ट्रीटमेंट के तहत, दवा, काउसंलिंग, इंजेक्शन और अगर समस्या ज्यादा है तो केमिकल कैस्ट्रेशन भी किया जाता है, जिसमें हर माह या तीन माह में एक बार इंजेक्शन दिया जाता है, जिससे मरीज ठीक रहता है।पैराफीलिक होने के कई कारण हो सकते हैं। इसको लेकर जागरूकता बढ़ने के चलते अब बड़ी संख्या में लोग इसके इलाज के लिए सामने आ रहे हैं। परिजनों को परिवार के सदस्यों के व्यवहार पर नजर रखनी चाहिए।-डॉ। आदर्श त्रिपाठी, केजीएमयू

Posted By: Inextlive