एंबुलेंस के ड्राइवर के पास कोई मेडिकल स्टाफ नहीं रहता और वे रोड पर ट्रैफिक के लिए बाधा बनने के साथ-साथ हॉस्पिटल आने-जाने वाले लोगों के लिए भी समस्या बनती हैं। जिसके चलते उन्हें पहले भी वहां से हटाने का निर्देश दिया गया था। इसके बाद भी गाडिय़ां ट्रामा सेंटर के बाहर रोड पर कब्जा जमाए हुए हैं।


लखनऊ (ब्यूरो)। केजीएमयू ट्रॉमा सेंटर के बाहर मरीजों को प्राइवेट हॉस्पिटल में शिफ्ट करने का खेल लंबे समय से चल रहा है। गेट के बाहर प्राइवेट हॉस्पिटल की एंबुलेंस का काफिला लगा रहता है। यह नेक्सस लंबे समय से ट्रामा सेंटर के बाहर चल रहा है। दो साल पहले पुलिस ने कार्रवाई कर 14 एंबुलेंस को जब्त भी किया था। मरीज को लेकर रविवार को एंबुलेंस संचालकों व ड्राइवर्स के बीच विवाद हुआ था, जिसमें सोमवार को चार ड्राइवर्स के खिलाफ पुलिस ने कार्रवाई की। सोमवार को दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम ने इसी नेक्सस का पता लगाने का प्रयास किया। जो सच सामने आया वह चौंकाने वाला थासजती है दलालों की मंडी


राजधानी के सरकारी अस्पतालों के बाहर से दलाल मरीजों को बहला फुसलाकर प्राइवेट अस्पताल ले जाते हैं। इसके बदले उन्हें प्राइवेट अस्पताल मोटा कमीशन देते हैं। ट्रॉमा सेंटर के बाहर इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं। केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में करीब 390 बेड हैं, जो लगभग फुल ही रहते हैं। यहां रोजाना करीब चार से पांच सौ मरीज आते हैं, जिसमें सौ से दो सौ मरीज बमुश्किल भर्ती होते हैं। बाकियों को दूसरे संस्थान रेफर कर दिया जाता है। ऐसे में ट्रॉमा सेंटर के बाहर लगा एंबुलेंस का जमावड़ा मरीजों को सरकारी अस्पताल ले जाने के बजाय निजी अस्पताल पहुंचाता है। इसे लेकर आए दिन विवाद भी होता है। ट्रामा में जो मरीज भर्ती नहीं किए जाते उनमें से 90 फीसदी निजी अस्पताल पहुंचते हैं।ऐसे होता है पूरा खेलट्रॉमा में नेपाल के अलावा यूपी के बलरामपुर, बहराइच, गोंडा, रायबरेली जैसे जिलों समेत अन्य प्रदेशों से भी मरीज आते हैं। प्राइवेट एंबुलेंस संचालक इन्हें अपना शिकार बनाते हैं और बताते हैं कि प्राइवेट अस्पताल में आपको बेहतर इलाज मिलेगा। जैसे ही तीमारदार प्राइवेट अस्पताल जाने को राजी होते हैं, एंबुलेंस चालक उस अस्पताल को फोन कर मरीज के बारे में बताता है और कमीशन की सेटिंग करता है। प्राइवेट अस्पतालों में इन मरीजों से काफी पैसा वसूला जाता है।कई बार की गई शिकायतकेजीएमयू व ट्रॉमा सेंटर के बाहर दर्जनों प्राइवेट एंबुलेंस गाडिय़ां घंटों खड़ी रहती हैं। कई बार मरीजों को अंदर तक से ले जाने की शिकायतें आई हैं। जिसमें कई बार संस्थान के ही कर्मचारियों का नाम सामने आ चुका है। जिसके बाद केजीएमयू प्रशासन द्वारा कई बार पुलिस से लेकर सीएमओ तक में इसकी शिकायत भी की जा चुकी है लेकिन यह खेल बंद नहीं हो सका है।रिपोर्टर से एंबुलेंस ड्राइवर की सीधी बातचीत

सीन नंबर एक-रिपोर्टर - एंबुलेंस का क्या किराया चल रहा है।ड्राइवर - आपको कहां जाना है, क्या मरीज साथ में है?रिपोर्टर- मैैं बलिया से आया हूं, मेरा मरीज यहां भर्ती है।ड्राइवर - आपका मरीज किस वार्ड में भर्ती है?रिपोर्टर - लिवर की समस्या है और लिवर वाले वार्ड में भर्ती है।ड्राइवर - तो फिर क्या हुआ, क्या मरीज डिस्चार्ज हो गया?रिपोर्टर- नहीं भाई, यहां कोई सुनने व देखने वाला नहीं है।ड्राइवर - अरे भाई, आप बाहर से आए हैं, यहां तो हर दिन का यही ड्रामा है। कोई नहीं सुनता, मरीज तड़पता रहता है।रिपोर्टर - समझ में नहीं आ रहा क्या करूं।ड्राइवर - आप उन्हें बलरामपुर हॉस्पिटल के पास ।।।।।हॉस्पिटल मरीज को लेकर जाओ।रिपोर्टर - क्यों, वहां क्या है?ड्राइवर - बहुत बढिय़ा अस्पताल है, वहां डॉक्टर भी बहुत अच्छा है। आपका मरीज चंद दिनों में ठीक हो जाएगा।रिपोर्टर- पर मैैंने तो इसका नाम नहीं सुना है।ड्राइवर- अरे भाई, आप बाहर के हो यहां तो ज्यादातर मरीज वहीं जाते हैं।रिपोर्टर- पर क्या वे ट्रामा का मरीज ले लेंगे?ड्राइवर- आप मरीज बाहर लेकर आओ। मैैं अपनी एंबुलेेंस से वहां पहुंचा दूंगा। मरीज भर्ती हो जाएगा।

रिपोर्टर- आप कितना पैसा लेंगे?ड्राइवर - वैसे रेट तो तीन सौ का है। आप बाहर से हैं, कम ज्यादा दे दीजिएगा।सीन नंबर दो-रिपोर्टर -भाई यहां कोई और अच्छा अस्पताल नहीं है क्या?ड्राइवर -क्या हुआ भाई, कोई मरीज है क्या?रिपोर्टर- हां मरीज को ट्रामा में भर्ती कराया है, लेकिन वहां कोई देखभाल नहीं हो रही।ड्राइवर - अरे, यह कोई नई बात नहीं है। यहां तो हर मरीज के साथ ऐसा ही होता है।रिपोर्टर- इतना बड़ा अस्पताल है, बड़े-बड़े डॉक्टर हैं, फिर भी?ड्राइवर - सरकारी अस्पताल का हाल हर जगह ऐसा ही होता है।रिपोर्टर- तो क्या करें, कहीं प्राइवेट में ले जाएं क्या?ड्राइवर - आपके मरीज को क्या हुआ है?रिपोर्टर- लिवर की समस्या है, पेट में पानी भरा लगता है।ड्राइवर - चौक में एक बढिय़ा अस्पताल है, वहां आपके मरीज को अच्छा इलाज मिल जाएगा।रिपोर्टर - वहां कैसे जाएं, वे मरीज को ले लेंगे?ड्राइवर -आप चिंता मत करिए, हम सारी व्यवस्था करा देंगे।ट्रैफिक के लिए बाधा बनीं एंबुलेंस
एंबुलेंस के ड्राइवर के पास कोई मेडिकल स्टाफ नहीं रहता और वे रोड पर ट्रैफिक के लिए बाधा बनने के साथ-साथ हॉस्पिटल आने-जाने वाले लोगों के लिए भी समस्या बनती हैं। जिसके चलते उन्हें पहले भी वहां से हटाने का निर्देश दिया गया था। इसके बाद भी गाडिय़ां ट्रामा सेंटर के बाहर रोड पर कब्जा जमाए हुए हैं।ट्रामा के बाहर अतिक्रमण और अवैध एंबुलेंस हटाने के लिए कई बार शिकायत की जा चुकी है। पर इसके बावजूद समस्या बनी हुई है।-डॉ। सुधीर सिंह, प्रवक्ता, केजीएमयू

Posted By: Inextlive