Lucknow News: अस्पताल में चल रहे निर्माण के कारण निकला मलबा भी यहां इधर-उधर पड़ा नजर आ रहा है। अस्पताल परिसर में आवारा जानवरों का नजर आना भी अब आम सी बात हो गई है। वहीं अस्पताल प्रशासन का कहना है कि जल्द ही व्यवस्था को दुरुस्त कर लिया जाएगा।


लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी के वीआईपी डॉ। श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल) अस्पताल में कर्मचारियों की लापरवाही यहां आने वाले मरीजों और तीमारदारों पर भारी पड़ सकती है। दरअसल, संक्रामक बायो मेडिकल वेस्ट (बीएमडब्ल्यू) के निस्तारण में यहां बड़ी लापरवाही बरती जा रही है। वहीं, अस्पताल में चल रहे निर्माण के कारण निकला मलबा भी यहां इधर-उधर पड़ा नजर आ रहा है। अस्पताल परिसर में आवारा जानवरों का नजर आना भी अब आम सी बात हो गई है। वहीं, अस्पताल प्रशासन का कहना है कि जल्द ही व्यवस्था को दुरुस्त कर लिया जाएगा।बरत रहे घोर लापरवाही


सिविल अस्पताल में रोजाना पांच हजार से अधिक मरीज अपने इलाज के लिए आते हैं। वहीं, बड़ी संख्या में ऑपरेशन भी होते हैं। अस्पताल से इस्तेमाल हुई रुई, इंजेक्शन, वायल, ट्यूब, ग्लव्ज व मास्क जैसे बायो मेडिकल वेस्ट भारी मात्रा में निकलता है, जो बेहद खतरनाक और संक्रामक होता है। पर यह सब जानते हुए भी इसके निस्तारण में लापरवाही बरती जा रही है। ऐसे में, यहां आने मरीजों और बाकी लोगों में संक्रमण फैलने का भी खतरा बना हुआ है।एनजीटी ने बनाये सख्त नियम

बायो मेडिकल वेस्ट के खतरे को देखते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इसके निस्तारण के लिए जरूरी दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं। केजीएमयू के बीएमडब्ल्यू कोर कमेटी के सदस्य डॉ। डी हिमांशु के मुताबिक, जितने भी अस्पताल हैं उनको बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट करना होगा। हर एक वार्ड में प्रॉपर और अलग-अलग बिन में वेस्ट होना चाहिए। जनरल वेस्ट को मेडिकल वेस्ट में मिक्स नहीं करना चाहिए। ब्लड वाली रुई, ग्लव्ज, प्लास्टिक आदि रेड में जाएगा। इनको इंसिनरेटर में ट्रीट करना होगा। इसके अलावा, लिक्विड वेस्ट जैसे उल्टी, ब्लड, पेट का पानी या सैंपल आदि को अलग से निकालना है, जिसे सीटीपी यानि कॉमन ट्रीटमेंट प्लांट में भेजना होगा। बायो मेडिकल वेस्ट को 24 घंटे में हटा देना चाहिए। इसके अलावा वेस्ट ट्रैकिंग सिस्टम भी होना चाहिए, यानि अस्पताल से इंसिनरेटर सेंटर तक जाने की जीपीएस ट्रैकिंग होनी चाहिए। इसे कंपनी और अस्पताल, दोनों को दिखाना होता है। जहां तक जुर्माने की बात है तो वह अलग-अलग स्तर पर देखने के बाद होता है, जो एनजीटी द्वारा लगाया जाता है।ऐसे अलग होना चाहिए वेस्टग्रीन बिन: जनरल वेस्ट जैसे किचन वेस्ट, पेपर, टिश्यू आदि।रेड बिन: सीरिंज, ग्लव्ज, प्लास्टिक वेस्ट आदि।यलो बिन: साइल्ड, केमिकल लिक्विड, लैब वेस्ट, एक्सपायर्ड और खराब दवाएं।ब्लू बिन: एंटीबायटिक वायल्स, मेटालिक इम्प्लांट्स, ग्लासवेयर मेटेरियल आदि।खुले में फैला अस्पताल का कचरा

सिविल अस्पताल में बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट की व्यवस्था है। कर्मचारी यह कचरा जमा करते हैं, लेकिन परिसर में बने सेंटर के बाहर इसे डस्टबीन में ही फेंक देते हैं। आवारा जानवर इसे गिरा देते हैं, जिससे संक्रामक कूड़ा यहां-वहां फैल जाता है। वहीं, जानवर कूड़ा मुंह में दबाकर पूरे परिसर में घूमते रहते हैं, जिससे हेपेटाइटिस, एचआईवी जैसी खतरनाक बीमारी फैलने का भी खतरा बढ़ जाता है।लोग भी बरतते हैं लापरवाहीअस्पताल में जांच के लिए सैंपल देने के बाद मरीज भी लापरवाही बरतते हैं। वे इस्तेमाल की हुई रुई आदि को वहीं अंदर ही सीढ़ी या परिसर में फेंक देते हैं, जिससे ब्लड व केमिकल लगी रुई से संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है। ऐसे में, अस्पताल प्रशासन को साफ-सफाई पर सख्ती बरतनी होगी।कबाड़ भी पड़ा हुआ हैअस्पताल में हो रहे निर्माण के कारण मलबा आदि परिसर में काफी अर्से से पड़ा हुआ है, जिसमें खराब व टूटे स्ट्रेचर से लेकर पुरानी खटारा गाड़ियां तक शामिल हैं। मलबा पड़ा होने से परिसर में जगह की कमी हो गई है, जिससे मरीजों को समस्या होती है।बायो मेडिकल वेस्ट नियमानुसार अलग-अलग करके भेजा जाता है। अगर यह कहीं फैला हुआ है तो इस समस्या को जल्द से जल्द दूर किया जाएगा।
-डॉ। राजेश श्रीवास्तव, सीएमएस, सिविल अस्पताल

Posted By: Inextlive