लखनऊ यूनिवर्सिटी में अटक गया पीएचडी स्टूडेंट्स का एडमिशन प्रोसेस
लखनऊ (ब्यूरो)। लखनऊ यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर साइंस डिपार्टमेंट से पीएचडी में एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स की क्लास दो साल में भी शुरू नहीं हो सकी है। 2019-20 और 2020-21 में पीएचडी में एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स फीस जमा करने के बाद भी कोर्स वर्क के शेड्यूल के लिए विभाग और यूनिवर्सिटी के चक्कर लगा रहे हैं। राजभवन तक इसकी शिकायत की गई लेकिन यूनिवर्सिटी ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया है। यूनिवर्सिटी के अधिकारियों का कहना है कि एडमिशन प्रक्रिया को लेकर डीन साइंस की ओर से गड़बड़ी का आरोप लगाया गया था, जिसके बाद जांच कमेटी अक्टूबर में गठित की गई, हालांकि सात माह बाद भी इस पर निर्णय का इंतजार है।नंबरों में गड़बड़ी का आरोप
डीन का आरोप था कि कंप्यूटर साइंस डिपार्टमेंट की मेरिट से छेड़छाड़ की गई है। इंटरव्यू में जो माक्र्स दिए गए, उन्हें एडमिशन कोऑर्डिनेटर स्तर से बदल दिया गया। मामला वीसी प्रो। आलोक कुमार राय तक पहुंचा तो उन्होंने रिटायर्ड न्यायमूर्ति केडी सिंह, न्यायमूर्ति भगीरथ वर्मा और रिटायर्ड आईएएस प्रभात मित्तल की एक तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। जिस कारण से पीएचडी कोर्स में एडमिशन लेने वाले छह स्टूडेंट्स की एडमिशन प्रक्रिया फंस गई।ऐसे हुआ खुलासा
कंप्यूटर साइंस डिपार्टमेंट में सेशन 2019-20 में पीएचडी की 6 सीटों के लिए आवेदन मांगे गए थे। तत्कालीन एचओडी प्रो। बृजेंद्र सिंह ने 4 सीटों पर एडमिशन लिए जाने की बात कही। इसके बावजूद, यूनिवर्सिटी प्रशासन की तरफ से 6 सीटों के लिए आवेदन मांगे गए। यूनिवर्सिटी प्रशासन के आदेश पर 5 सदस्य समिति ने आवेदन करने वालों के इंटरव्यू लिए और माक्र्स डिपार्टमेंट की ओर से एडमिशन कमेटी को भेजकर प्रक्रिया को पूरा करने के लिए भेजा गया। जिसके बाद एचओडी की तरफ से बीते जून में एलयू प्रशासन को एक लेटर भेजा गया, जिसमें आरोप लगाया गया कि इंटरव्यू के नंबर जो भेजे गए, उसमें फेरबदल किया गया है।जांच के लिए कमेटी बनाई गई है। जांच में क्या सामने आया है, अभी पता नहीं है। कुलसचिव पारिवारिक कारणों से बाहर गए हैं, उनके आने के बाद ही इस पर निर्णय होगा।-डॉ। दुर्गेश श्रीवास्तव, प्रवक्ता