ब्रिटेन का फ़ोन हैकिंग विवाद
फ़ोन हैकिंग है क्या?दूसरों के मोबाइल फ़ोन वॉयस मेल संदेशों को गुप्त रूप से सुनना फ़ोन हैकिंग कहलाता है। हैकिंग करने वाला व्यक्ति वॉयस मेल के इनबॉक्स में प्रवेश करने के लिए पिन या सिक्यूरिटी कोड का उपयोग करता है।
जो लोग फ़ोन ख़रीदने के बाद फ़ैक्ट्री सेटिंग वाला सिक्यूरिटी कोड नहीं बदलते उनके वॉयस मेल को हैक करना आसान होता है क्योंकि फ़ोन निर्माता कंपनियाँ 0000 या 1234 जैसे आसान कोड के साथ फ़ोन को बाजा़र में उतारती है।किसी का फ़ोन हैक करना मात्र उसकी निजता या प्राइवेसी का उल्लंघन है या ये काम ग़ैर-क़ानूनी भी है?जहाँ तक ब्रिटेन में प्रचलित नियम-क़ानूनों की बात है तो किसी के फ़ोन संदेश को बिना उसकी अनुमति के सुनना अवैध गतिविधियों में आता है।यदि सामने आए ताज़ा मामलों की बात करें तो उनमें से एक में 'न्यूज़ ऑफ़ द वर्ल्ड' के निर्देश पर काम कर रहे प्राइवेट जासूस पर आरोप है कि उसने एक फ़ोन के इनबॉक्स से पुराने संदेशों को मिटाने का भी काम किया था। यदि ये बात साबित हुई तो इसे न्याय प्रक्रिया में अवरोध के रूप में देखा जाएगा जो कि बहुत ही गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है।
फ़ोन हैकिंग का ये मामला शुरू कब हुआ था?ये बात 2005 की है जब ब्रितानी राज परिवार के कुछ सदस्यों ने 'न्यूज़ ऑफ़ द वर्ल्ड' में अपने बारे में छपी नितांत व्यक्तिगत को लेकर चिंता व्यक्त किया। इन ख़बरों में से एक ये थी कि प्रिंस विलियम के घुटने में चोट लगी है। राज परिवार ने पुलिस से संपर्क किया और मामला अदालत में पहुँच गया।
अदालत ने 2007 में न्यूज़ ऑफ़ द वर्ल्ड के शाही मामलों के संपादक क्लाइव गुडमैन और प्राइवेट जासूस ग्लेन मलकेयर को जेल की सज़ा सुनाई। अख़बार के तत्कालीन संपादक एंडी कॉल्सन ने इस्तीफ़ा दे दिया।दो लोगों को सज़ा मिलने के बाद मामला 2007 में ही समाप्त क्यों नहीं हो गया?बाद के महीनों में लंदन से प्रकाशित अख़बार 'गार्डियन' को पता चला कि 'न्यूज़ ऑफ़ द वर्ल्ड' कई नामी हस्तियों से अदालत के बाहर समझौते कर रहा है जिनके फ़ोन कथित रूप से हैक किए गए थे।ऐसे कई मामले सामने आने के बाद पुलिस पर दबाव बढ़ गया कि वो मामले की नए सिरे से तहक़ीक़ात करे। पुलिस के 50 वरिष्ठ अधिकारी मामले की जाँच में जुट गए।इस बीच 'न्यूज़ ऑफ़ द वर्ल्ड' से 2007 में इस्तीफ़ा देने वाले संपादक एंडी कॉल्सन प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के मुख्य मीडिया सलाहकार बन चुके थे। पुलिस की नई जाँच शुरू होने के बाद उन पर दबाव बहुत ज़्यादा बढ़ गया और उन्हें प्रधानमंत्री के सलाहकार का पद छोड़ना पड़ा।