कोशिश है कि इस शहर में कोई भूखा न सोये
कानपुर (ब्यूरो)। &हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए, आज ये दीवार पर्दों की तरह हिलने लगी, शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए,सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए, मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए दुष्यंत कुमार की इन लाइनों से प्रेरित होकर एक पहल सिटी में &भोजन बैैंक&य सा त सालों से एक मुहिम चला रहा है। सात साल पहले दो हाथों से इसकी शुरूआत हुई थी और आज पांच सौ हाथ आगे बढक़र गरीब व जरूरतमंदों का हर दिन पेट भर रहे है। कोशिश बस इतनी है कि इस शहर में कोई भूखा न सोए।
मासूम आंखों के दर्द ने बदल दी तस्वीर
दबौली में रहने वाले विकास मिश्रा लॉ स्टूडेंट है, सात साल पहले उनकी उम्र 21 साल की थी। एक दिन वह अपने गांव जाने के लिए सेंट्रल स्टेशन ट्रेन पकडऩे के लिए पहुंचे थे। टिकट विंडो पर टिकट लेते हुए सात साल के एक बच्चे ने ïविकास के बैग की पट्टïी खींच कर इशारे से कुछ खाने के लिए मांगा। जब उन्होंने पलट कर उसकी आंखों में देखा तो भूख और मजबूरी का दर्द झलक रहा था। सहानभूति दिखाते हुए विकास ने जब उससे खाने के लिए बैग में रखी ब्रेड दी तो उसे देख कुछ और बच्चे उसके पास आए और उन्हें घेर लिया। देखते देखते बच्चों ब्रेड खत्म कर दी और भूख से मुरझाए उनके चेहरे खिल गए। यह देख विकास को एक मकसद मिला है और उसी दिन से उसने एक नई शुरुआत की।
विकास ने पहले अपने घर में दो चार खाने के पैकेट बनाकर रेलवे स्टैैंड, बस स्टॉप और हॉस्पिटल में जरूरतमंद व गरीबों को खाना खिलाना शुरू किया। उसके मकसद को देख सबसे पहले उसके दोस्त व साथी के साथ परिवार के लोग जुड़े। इसके बाद यह सिलसिला जारी रहा है। देखते देखते सिटी के 250 से ज्यादा मेंबर्स अब उसके साथ जुड़ गए हैं। एक छोटी सी शुरुआत आज भोजन बैैंक बन गई। हर दिन सैकड़ों जरूरतमंद व भूखों का पेट भोजन बैैंक भर रहा है।
फंडिंग के लिए हाथ नहीं फैलाते
विकास बताते हंै कि गरीब, जरूरतमंदों को पेट भरने के लिए कभी किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ी। भोजन बैैंक के क्लब में जुड़ा हर मेंबर इसके लिए अपनी जेब से पैसा खर्च करता है। इसके अलावा लोगों से अपील करते हैं कि अगर किसी का बर्थ डे, एनिवर्सरी व पुण्य तिथि होती है तो उनके नाम से गरीबों को भोजन कराएं। इसमें कई लोग आगे भी आते हैं। जिन्हें भोजन के लिए राशन देना होता है तो राशन दे देते हैं। जो समय बचाना चाहते है वह कैश देते है। विकास का कहना है कि खाना बनाने के लिए एक किचन भी बना रखा है और उसके सभी मिलकर काम करते है।