अब कैजुअल्टी या और किसी वजह से चेहरा खराब होने पर मुंह छिपाना नहीं पड़ेगा क्योंकि हैलट की बर्न यूनिट में जल्द ही यूपी का पहला स्किन बैंक खुलेगा. स्किन बैंक में आने वाली स्किन से बर्न पेशेंट्स की सर्जरी की जाएगी.

कानपुर (ब्यूरो)। अब कैजुअल्टी या और किसी वजह से चेहरा खराब होने पर मुंह छिपाना नहीं पड़ेगा क्योंकि हैलट की बर्न यूनिट में जल्द ही यूपी का पहला स्किन बैंक खुलेगा। स्किन बैंक में आने वाली स्किन से बर्न पेशेंट्स की सर्जरी की जाएगी। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में देहदान के तहत आने वाली बॉडी से स्किन निकाल कर बैंक में सेफ रखी जाएगी। जिसको जरूरत के मुताबिक बर्न पेशेंट को सर्जरी कर लगाया जाएगा। बताते चलें कि देश का पहला स्किन बैंक 1972 में वाडिया चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल मुंबई में खुला था। वहीं, अब हैलट में यूूपी का पहला स्किन बैंक खुलेगा।

बॉडी आर्गन डेनेशन जैसी होती प्रक्रिया

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्लास्टिक सर्जन प्रो। प्रेम शंकर ने बताया कि आर्गन डोनेट एक्ट के तहत की स्किन डोनेट करने और लेने दोनों ही स्थिति में वह सभी प्रक्रिया पूरी करनी होगी। जोकि अन्य बॉडी के आर्गन डोनेशन में पूरी करनी होती है। उन्होंने बताया कि जल्द ही जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के हैलट हॉस्पिटल में स्किन बैंक की सुविधा कानपुराइट्स को मिलने लगेगी। जिसके बाद बर्न पेशेंट की कई समस्या दूर हो जाएंगी।

पांच से छह साल सेफ रहेगी स्किन

डॉ। प्रेम शंकर ने बताया कि स्किन बैंक के डीफ फ्रीजर में पांच से छह सात तक स्किल सेफ रहती है। लिहाजा इसके बीच में पेशेंट की रिक्वायरमेंट पर बर्न पेशेंट की प्लास्टिक सर्जरी कर नई स्किन लगाई जाती है। उन्होंने बताया कि पेशेंट को लगाइ जाने वाली स्किन 21 दिन के बाद अपने आप निकल जाती है और उसके नीचे पेशेंट की बॉडी में नई स्किन डेवलप होले लगती है। जोकि नेचुरल की तरह ही होती है।

सिर्फ थाई से निकाली जाएगी स्किन

प्लास्टिक सर्जन के मुताबिक, देहदान के तहत मेडिकल कॉलेज में आने वाली बॉडी से स्किन सिर्फ पांच मिनट में निकाली जा सकेगी। इसका मुख्य कारण यह है कि बॉडी से सिर्फ थाई से ही बेहतर क्वालिटी की स्किन निकाली जाती है। जोकि आसानी से दूसरी बॉडी में सर्जरी कर लगाई जा सकती है। उन्होंने बताया कि थाई की स्किन मोटी और क्वालिटी भी अच्छी होती है।

प्लास्टिक सर्जरी के आते पांच से छह पेशेंट

हैलट के सर्जरी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर के मुताबिक हॉस्पिटल में हर सप्ताह पांच से छह पेशेंट मेजर सर्जरी के आते है। जिनकी अभी प्राइवेट हॉस्पिटल में लाखों रुपए खर्च कर प्लास्टिक सर्जरी कराते है। यह स्किन उनके ही थाई से निकाल कर बर्न वाले भाग में लगाई जाती है। इसके अलावा मुम्बई व दिल्ली में स्किन बैंक की सुविधा है। जहां पर बर्न पेशेंट दूसरे की स्किन को प्लास्टिक सर्जरी कर लगवा सकते हैं। अब यह सुविधा जल्द ही हैलट हॉस्पिटल में भी मिलेगी।

बच्चों के केस में फैमिली मेंबर्स दे सकते स्किन

डॉक्टर्स के मुताबिक, बर्न बच्चे को उसके माता-पिता अपनी स्किन को डोनेट कर सकते है। उन्होंने बताया कि बर्न बच्चे की प्लास्टिक सर्जरी करने के लिए और उसके दूसरे दर्द से बचाने की स्थित में उसके माता-पिता चाहे तो अपनी स्किन डोनेट कर सकते हैं। जिसकी पूरी प्रक्रिया हैलट में ही नाम मात्र पैसे में हो सकेगी।

रिजेक्शन की दिक्कत नहीं

डॉ। प्रेमशंकर ने बताया कि पार्थिव देह की त्वचा की पतली पर्त इपी डर्मिस, डर्मिस निकाली जाती है। यह ड्रेसिंग मैटीरियल की तरह काम करती है। इससे किसी तरह के रिजेक्शन की दिक्कत नहीं होती है। किसी भी ब्लड ग्रुप के पार्थिव शरीर की त्वचा किसी को लगाई जा सकती है। बर्न रोगियों के जख्मों पर त्वचा न होने से शरीर का फ्लुइड निकलता रहता है। इसमें प्रोटीन भी निकल जाता है।

दो हफ्ते में बनेगी नई स्किन

त्वचा की पर्त लगाने से द्रव्य बाहर नहीं निकल पाता। जख्म भरने लगता है। दो सप्ताह में रोगी की अपनी त्वचा बनने लगती है और ऊपर से ड्रेसिंग मैटीरियल के रूप में लगाई गई दान की त्वचा पपड़ी बनकर निकल जाती है। ऊपर से लगाई गई त्वचा दो सप्ताह तक जिंदा रहती है। देहदानी के निधन के आठ घंटे के अंदर त्वचा की पर्त निकाल ली जाती है।

क्या होता है स्किन बैंक

स्किन बैंक भी ब्लड बैंक की तरह होता है। यहां त्वचा को एक शीशी में भरकर मानइस तापमान में रखा जाता है। बैंक में पांच से छह साल तक त्वचा सुरक्षित रखी जा सकती है। रखने से पहले त्वचा में संक्रमण आदि की भी जांच की जाती है।

हैलट इमरजेंसी के सामने तैयार हो चुके बर्न यूनिट में ही स्किन बैंक बनाया जाएगा। जिससे बर्न पेशेंट को काफी राहत मिलेगी। देहदान के तहत मेडिकल कॉलेज में आने वाली बॉडी की स्किन को निकाल कर बैंक में सेफ रख लिया जाएगा। जोकि जरूरतमंद पेशेंट को दिया जाएगा।

प्रो। प्रेमशंकर, प्लास्टिक सर्जन, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज

Posted By: Inextlive