ढाका में 'ट्रांसजेंडर' समुदाय की रैली
ट्रांसजेंड्ररों को समाज में भेदभाव और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। समाज में इस विषय पर अधिक जागरूकता लाने के लिए ढाका में पहली बार सरकार के समर्थन से शुक्रवार को एक रैली का आयोजन किया गया जिसमें ट्रांसजेंडर समुदाय के सैकड़ों लोगों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और छात्रों ने हिस्सा लिया। एक मुस्लिम-बहुल देश में इस तरह का प्रदर्शन कम ही देखने में आया है।
अपमान-बहिष्कार"तीसरे लिंग" का हिस्सा माने जानेवाले ट्रांसजेंडरों को समाज के बड़े तबक़े में कलंक के तौर पर देखा जाता है और उन्हें अपमान और बहिष्कार का सामना करना पड़ता है।कार्यकर्ताओं का कहना है कि उनके लिंग की पहचान और यौन प्राथिकताओं के कारण उनके साथ बहुत सारी ऐसी घटनाएं पेश आती हैं जिन्हें मानवधिकार के हनन की श्रेणी में रखा जा सकता है।पैदाइश के समय ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग यूं तो लड़कों जैसे दिखते हैं लेकिन जब वो बड़े होने लगते हैं तो उनकी यौन प्राथिकताओं में बदलाव होने लगता है। वो लड़कियों की तरह तैयार होने लगते हैं और लोगों के बीच ख़ुद को उसी तरह पेश करते हैं।
हालांकि बांग्लादेश में ऐसे लोगों की कुल तादाद का कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है। लेकिन एक अनुमान के अनुसार वहां उनकी संख्या तीस हज़ार से डेढ़ लाख के बीच होगी।
मान्यतारैली में आई एक ट्रांसजेंडर महिला पिंकी शिकदर ने कहा, "हम चाहते हैं कि दूसरे लोग समझे कि हम भी सामान्य लोगों की तरह हैं। हमें भी दूसरे लोगों की तरह सामान्य जीवन जीने का अधिकार होना चाहिए। हमें समाज और सरकार की तरफ़ से मान्यता दी जाए."उन्होंने कहा कि कोई भी कंपनी या व्यक्ति उन्हें रोज़गार नहीं देना चाहता और न ही उन्हें स्कूलों और कॉलेजों में दाख़िला मिल पाता है। उनका कहना है कि उन्हें क़ानूनी मदद और स्वास्थ्य सुविधाएं तक नहीं मिल पाती हैं।शिकदर कहती हैं, "जब मेरे माता-पिता को मेरी यौन प्राथमिकताओं के बारे में पता चला तो उन्होंने मुझे मारना-पीटना शुरू कर दिया, मुझे मेरे भीतर जो स्त्रीयोचित प्रवृतियां थीं उन्हें छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। उन्होंने कहा कि मैंने पूरे परिवार को शर्मनाक हालात में ला खड़ा किया है। फिर मैंने अपने परिवार को छोड़कर ट्रांसजेंडर लोगों के साथ रहने का फ़ैसला किया."जीवनयापनऐसे लोग या तो लोगों से पैसे-रूपये मांगकर या देह-व्यापार के सहारे जीवनयापन करते हैं। ये लोग शादियों और जन्मदिन के समारोहों में गाने-बजाने का काम भी करते हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि देह-व्यापार में होने के कारण उनमें एचआईआवी संक्रमण का ख़तरा बहुत अधिक होता है।
बांग्लादेश सरकार के वरिष्ठ अधिकारी मोहम्मदल इबादुर रहमान कहते हैं, "रैली का मक़सद लोगों में ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति संवेदनशीलता पैदा करना है। लोगों के भीतर उनके प्रति बहुत सारी भ्रांतिया और नकारात्मक भावनाएं हैं." इबादुर रहमान इस मामले के हुकुमत के ज़रिए प्रायोजित जागरूकता कार्यक्रम की देख-रेख कर रहे हैं।बांग्लादेश सरकार ने एक ऐसा कार्यक्रम भी शुरू किया है जिसमें ऐसे लोगों को अलग-अलग तरह की ट्रेनिंग दी जाएगी ताकि उन्हें रोज़गार मिल सके। तीस ऐसे लोगों के समुह को ब्यूटी पार्लर और सिलाई का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। कुछ को कंप्यूटर की ट्रेनिंग भी दी जा रही है।