तम्बाकू से कर ली दोस्ती, अपनों की नहीं चिंता
- तम्बाकू के इस्तेमाल मे कानपुराइट्स आगे, पान मसाले के साथ स्मोकिंग में खर्च करते लाखों रुपए
- तम्बाकू के चक्कर में कैंसर की चपेट में आते हजारों, हर साल बढ़ रही ओरल कैंसर पेशेंट्स की तादादKANPUR: तम्बाकू के अधिक प्रयोग की वजह से कानपुर और आसपास के जिलों में ओरल कैंसर बड़ी प्रॉब्लम बन चुका है। जहां कैंसर के 60 फीसदी तक मामले ओरल कैंसर से ही जुड़े होते हैं। स्मोकिंग की वजह से लंग्स कैंसर के भी काफी केसेस सामने आते हैं। कानपुर जो पान मसाला और तम्बाकू के कारोबार का गढ़ है। वहां इसकी खपत भी काफी ज्यादा है। रोज शहर में लाखों रुपए का पान मसाला बिक जाता है। यही वजह है कि यहां ओरल कैंसर के पेशेंट्स भी काफी ज्यादा हैं। डॉक्टर्स का भी मानना है कि तम्बाकू का ज्यादा इस्तेमाल इसकी एक बड़ी वजह है। कानपुर और आसपास के एरियाज में तम्बाकू की खपत काफी ज्यादा है। ऐसे में उसके नुकसान भी ज्यादा सामने आते हैं।
कानपुर में तम्बाकू की बड़ी खपतनो टोबैको डे के मौके पर एक तरफ जहां तम्बाकू का इस्तेमाल कम करने और उसे रोकने की बात होती है वहीं कानपुर पान मसाला और तम्बाकू की एक बड़ी इंडस्ट्री है। देश के कई नामी पान मसाला ब्रांड यहीं बनते हैं। इसके साथ ही इसकी हर साल खपत भी कानपुर और आसपास के जिलों में काफी ज्यादा होती है। एंटी टोबैको सेल की कोआर्डिनेटर निधि बाजपेई बताती हैं कि पान मसाले के साथ तम्बाकू का यूज कानपुर में ओरल कैंसर की बड़ी वजह है। एंटी टोबैको सेल की ओर से शहर के कई सरकारी संस्थानों को नो टोबैको जोन भी घोषित किया गया है, लेकिन इसके इस्तेमाल में कमी हो इसके लिए लोगों को ही जागरूक होना पड़ेगा।
लंग्स कैंसर का बढ़ा खतराकानपुर पॉल्यूशन के लिए पहले ही बदनाम है। इसके अलावा स्मोकिंग की बढ़ती हैबिट भी लंग्स कैंसर को बढ़ावा दे रही है। डॉक्टर्स के मुताबिक स्मोकिंग करने वालों की वजह से उनके साथ उनके आसपास मौजूद लोग भी इस खतरे की चपेट में आ जाते हैं। स्मोकिंग लंग्स कैंसर की बढ़ी वजह है। रेस्पेरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ। संजय वर्मा बताते हैं कि हुक्का बार के साथ यंगस्टर्स में स्मोकिंग का कल्चर बढ़ा है, इस वजह से उनके लंग्स में डाई एसिटाइल नाम का केमिकल भी पहुंच रहा है। जिससे लंग्स में सूजन आती है। लंग्स कैंसर के अलावा इस वजह से सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिसीज) होने का खतरा भी बढ़ता है। मालूम हो कि 2013 के बाद से कानपुर में रेस्पेरेटरी प्रॉब्लम के केसेस में तीन गुना तक बढ़ोत्तरी हुई है।
चार सालों में (हेड एंड नेक) ओरल कैंसर के कितने पेशेंट 2018 -1803 2019 - 2373 2020 - 1151 31 मई 2021 तक - 446 (जेके कैंसर इंस्टीटयूट में ओरल कैंसर के रजिस्टर्ड पेशेंट्स की संख्या) किन लोगों को कैंसर का खतरा ज्यादा -स्मोकिंग- सिगरेट, सिगार, हुक्का का यूज करने वाले लोगों को एक नॉन स्मोकर के मुकाबले माउथ कैंसर का खतरा 6 फीसदी ज्यादा - माउथ कैंसर होने का खतरा सामान्य लोगों के मुकाबले तम्बाकू खाने वाले लोगों में 50 फीसदी ज्यादा होता है। उनमें आम तौर पर गाल, गम्स ओर होठों में कैंसर होता है। -एल्कोहल लेने वाले लोगों में माउथ कैंसर का खतरा 6 फीसदी ज्यादा होता है। -जिन लोगों के परिवार में पहले किसी को कैंसर रहा है उनमें भी कैंसर होने का खतरा होता है। ओरल कैंसर के लक्षण और शुरुआती संकेत- - बिना वजह नियमित तौर पर बुखार आना - थकान होना सामान्य गतिविधियों में भी जल्दी थक जाना - गर्दन या जबड़े के आसपास किसी प्रकार की गांठ बन जाना- बिना वजह वजन कम होने लगना
- मुंह में छाले या घाव का न भरना - जबड़ों में खून आना या सूजन रहना - मुंह का कोई हिस्सा जहां स्किन का रंग बदल रहा हो - आवाज में बदलाव आना, गले मे सूजन रहना - चबाने या निगलने में परेशानी - जबड़े या होठों को घुमाने में परेशानी - गले में कुछ फंसे होने का एहसास होना कोरोना संक्रमण की वजह से 2020 के बाद से कैंसर पेशेंट्स के इलाज में कुछ प्रॉब्लम आ रही है। हालांकि सेमी ओपीडी के साथ ही इनडोर में पेशेंट्स देखे जा रहे हैं। कीमो और रेडियोथैरेपी भी हो रही है। कानपुर में तम्बाकू ओरल कैंसर की बड़ी वजह है, लेकिन कोरोन संक्रमण की वजह से हॉस्पिटल बेस्ड कैंसर रजिस्ट्रीज कम हुई है। - प्रो। एसएन प्रसाद, डायरेक्टर , जेके कैंसर इंस्टीट्यूट स्मोकिंग की वजह से लंग्स कैंसर के साथ ही सीओपीडी समेत कई तरह की लंग्स डिसीज का खतरा होता है। इससे लंग्स की कैपेसिटी भी घटती है। मौजूदा दौर में ज्यादा स्मोकिंग करने वाले कोविड पेशेंट्स के क्रिटिकल होने की संभावना ज्यादा रहती है, क्योंकि उनके लंग्स की क्षमता पहले ही कम हो चुकी होती है।- डॉ। संजय वर्मा, प्रोफेसर, रेस्परेटरी मेडिसिन डिपार्टमेंट
ओरल कैंसर के इलाज की कठिन प्रक्रिया- जांच- जख्म या अल्सर मिलने पर उसकी बायोप्सी की जाती है। इसके बाद इंडोस्कोपिक जांच, एमआरआई, सीटी स्कैन जांच की जाती है। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर्स पेट स्कैन भी कराते हैं। इसके अलावा अल्ट्रासोनोग्राफी की मदद से कैंसर की स्टेज का पता लगाया जाता है। इलाज- कैंसर की पुष्टि होने के बाद पेशेंट के कैंसर ग्रस्त हिस्से की सर्जरी की जाती है और उस हिस्से को हटाया जाता है। कई बार डॉक्टर्स इसके बाद रेडियोथेरेपी और कीमो थेरेपी की प्रक्रिया शुरू करते हैं। कीमोथेरेपी के दौरान पेशेंट के शरीर पर काफी दुष्प्रभाव भी सामने आते हैं।