सिस्टम की खता, पब्लिक को मिल रही सजा
कानपुर (ब्यूरो) कोई भी दूसरा पक्ष अगर आपके खिलाफ कोई वाद कोर्ट में दाखिल कराता है तो उसमें आपको कोर्ट से नोटिस जाता है। जिससे आपको केस की जानकारी मिलती है। पुलिस अगर आम आदमी पर कोई कार्रवाई (शांति भंग, आपसी विवाद, कर्कुी की उद्घोषणा, कुर्की का प्री-वारंट, जमीन खाली कराने का नोटिस, मकान मालिक किराएदारी का विवाद) करती है तो इसका नोटिस कोर्ट के माध्यम से दिया जाता है। अगर कोर्ट में केस खुलता है तो उसके लिए भी नोटिस जारी किया जाता है। इसके अलावा ठेकेदारी में भी कई नोटिस जारी किए जाते हैैं। अब अगर वारंट की बात की जाए तो नोटिस के जवाब समय से न मिलने पर बीडब्लयू (बेलेबल वारंट) एनबीडब्लयू (नॉन बेलेबल वारंट) जारी किया जाता है। ये भी कोर्ट मुहर्रिर और थाने के पुलिस कर्मी ही सर्व कराते हैैं।
दर्जनों जमानतें वेरिफिकेशन
इससे कोर्ट के साथ साथ आम आदमी का शेड्यूल तो प्रभावित हो ही रहा है.जेल के बंदियों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। बेल होने के बाद बेल बांड भरने पर उनका वेरिफिकेशन नहीं हो पा रहा है। जिसकी वजह से बेल के बाद भी बंदियों को जेल में रहना पड़ रहा है। कोर्ट के सूत्रों की माने तो पहले के चुनावों में कभी कोर्ट मुहर्रिर या पैरोकार की ड्यूटी नहीं लगती थी। अगर किसी की ड्यूटी लग जाती तो वह कोर्ट ड्यूटी की बात कहकर ड्यूटी कटवा लेता था लेकिन इस बार ड्यूटी तो लगी लेकिन काटी नहीं गई।
बंदियों की तरह कटघरे में रहना पड़ा
पहला मामला : चकेरी के मंगला विहार निवासी सचिन कुमार की पत्नी से विवाद चल रहा था। तीन महीने पहले पत्नी मायके चली गई। कोर्ट से वाद दायर कराया गया। एक सप्ताह के अंदर लगातार तीन नोटिस जारी किए गए, जिनकी जानकारी सचिन को नहीं हो पाई। 15 दिन में एनबीडब्लयू जारी हो गया, जिसकी जानकारी दूसरे पक्ष के वकील ने दी, तब सचिन को वाद का पता चला। सचिन के मुताबिक उसे छह घंटे शातिर अपराधियों की तरह कोर्ट के कटघरे में रहना पड़ा।
दूसरा मामला : नजीराबाद निवासी विवेक का नाम दो साल पहले उजियारीपुरवा में हुई हत्या में आ गया था। विवेक जमानत पर बाहर है। विवेक के मुताबिक मामले में गवाही चल रही है। 15 दिन के अंदर तीन नोटिस कोर्ट से जारी किए गए, जिसकी जानकारी उन्हेें नहीं हो पाई। पुलिस ने कार्रवाई करते हुए 82 का नोटिस तामील करा दिया। एडवोकेट के माध्यम से उन्हें जानकारी मिली तो पता चला, इसके बाद कोर्ट जाकर उन्होंने गवाही की अगली तारीख ली।
तीसरा मामला : जाजमऊ निवासी शादाब का परिवार में विवाद चल रहा है। उनको भी दो नोटिस जारी की गईं, लेकिन जानकारी नहीं हो पाई। 82 यानी कुर्की के पहले की कार्रवाई होने पर शादाब को पता चला, उसने कोर्ट जाकर नोटिस रिकॉल कराए, तब जाकर कहीं उसे राहत मिली।
एडवोकेट की सलाह
हाईकोर्ट के एडवोकेट संदीप कुमार शुक्ला ने बताया कि अगर आपका किसी भी तरह का केस चल रहा है तो एडवोकेट के संपर्क में रहें। अगर कोई वाद की जानकारी मिलती है तो संबंधित कोर्ट में जानकारी कर लें। कोर्ट में अगर अपनी बात बताते हुए क्षमा याचना प्रार्थना पत्र दिया जाता है तो कोर्ट उसे आसानी से एक्सेप्ट कर लेती है और आम आदमी को परेशान नहीं होना पड़ता है। वहीं हाईकोर्ट के एडवोकेट पीके गोस्वामी ने बताया कि चुनाव के दौरान पुलिस की कमी की जानकारी ज्यादातर लोगों को होती है, वे अपने विरोधियों को फंसाने के लिए नोटिस जारी कराते रहते हैैं। ऐसे में अपने बचाव के लिए एडवोकेट के संपर्क में रहें।
पुलिस कर्मियों की कमी हर चुनाव में होती है। इस बार कुछ ज्यादा समय के लिए पुलिस कर्मी छुट्टïी पर गए हैैं। अपनी बात कोर्ट में प्रार्थना पत्र के माध्यम से कहें, राहत मिलेगी।
दिलीप जायसवाल, एडीजीसी क्रिमिनल