गौरैया की चीं चीं नहीं, अब मोबाइल के अलार्म से खुलती हैैं नींद
कानपुर(ब्यूरो)। बरसों पहले लोगों की नींद गौरैया (चिडिय़ा) की चीं चीं चूं चूं की आवाज से खुलती थी। समय बदलने के साथ साथ नींद खोलने वाली आवाज भी बदल गई। विकास की आंधी में घरों के आंगन और पेड़ों को खत्म किया तो अब मोबाइल फोन के अलार्म की तेज आवाज ने नींद खोलने का काम शुरू कर दिया है। डेवलपमेंट के नाम पर पेड़ों की कटान और बड़े-बड़े मकानों के फ्लैट्स में तब्दील होने से गौरैया के रहने के लिए आशियाना खत्म हो गया है। 20 मार्च को हर साल गौरैया संरक्षण के लिए विश्व गौरैया दिवस को मनाया जाता है, लेकिन संरक्षण के नाम पर सिर्फ एक दिन ही शोर होता है। अगले दिन ही वह शोर थम जाता है। आशा है इस बार कुछ ऐसा होगा, जिससे दोबारा हमें चीं चीं की आवाज सुनने को मिलेगी।
15 प्रतिशत रह गई गौरैया
सीएसए के वैज्ञानिक डॉ। खलील खान ने बताया कि बीते 20 सालों की तुलना करें तो गौरैया अब महज 15 प्रतिशत रह गई हैैं। इनका कहना है कि पेड़ और जंगल कम होने से उनका आशियाना तो घटा ही है। साथ साथ मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली किरणों से उनमें प्रजनन क्षमता घटी और डेथ भी हुई है।
नौ साल से बांट रहे घोसले
गोविंद नगर के रहने वाले गौरव बाजपेई पेशे से तो कॉरपोरेट ट्रेनर हैैं, लेकिन वह बीते नौ सालों से गौरैया संरक्षण का काम कर रहे हैैं। इन्होंने स्वीट स्पैरो कम बैक होम नाम से एक कंपेन भी शुरु किया है। वह अभी तक आठ हजार से ज्यादा घोसलों को बांट चुके हैैं। इसके साथ ही वह गौरैया के आशियाने को सुरक्षित करने के लिए पेड़ों को कटने से रोकते और सात हजार पौधों को लगा चुके हैैं।
गौरैया का घोंसला सुख समृद्धि का संकेत
नगर निगम के उद्यान अधीक्षक डॉ। विजय कुमार सिंह को गौरैया (स्पैरो) चिडिय़ा से बेहद लगाव है। उन्होंने अपने घर में दस से ज्यादा गौरेया के लिए घोंसले बना रखे हैं। डॉ। विजय ने बताया कि गौरैया प्राकृतिक रूप से मांसाहारी होती हैं, लेकिन जब से यह लोगों के करीब रहने लगे हैं तो इनकी अपनी आदतों में बदलाव भी आया है। गौरैया चिडिय़ा का खाना मुख्य रूप से पतंगे और अन्य छोटे कीड़े हैं, लेकिन यह बीज जामुन और फल भी खा सकते हैं। घर में गौरैया का घोंसला बनाना सुख-समृद्धि के आगमन का संकेत माना जाता है। पिछले कुछ सालों में इन गौरैया की संख्या में काफी गिरावट आई है। लगातार घटती इसकी संख्या अगर हमने गंभीरता से नहीं लिया तो वह दिन दूर नहीं जब गौरैया हमेशा के लिए हमसे दूर चली जाएगी।
पर्यावरण संरक्षण में इसकी खास भूमिका भी होती है। इसका जीवनकाल दो से तीन साल का होता है। यह पांच से छह अंडे देती है। ब्रिटेन की रॉयल सोसाइटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड्स ने इस चुलबुली एवं चंचल पक्षी को &रेड लिस्ट&य में डाल दिया है। शहरी हिस्सों में इस की छह प्रजातियां पाई जाती हैं, जिसमें हाउस स्पैरो, स्पेनिश, सिऊं स्पैरो, रसेट, डेड और टी स्पैरो शामिल है। यह यूरोप एशिया के साथ-साथ अफ्रीका न्यूजीलैंड ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के अधिकतर हिस्सों में मिलती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार गौरैया चिडिय़ा का घोंसला सुख सौभाग्य को बढ़ाता है। ऐसे बचाएं गौरैया को
- गौरैया आपके घर में घोंसला बनाए तो उसे हटाए नहीं
- रोजाना आंगन, खिडक़ी, बाहरी दीवारों पर दाना पानी रखें
- गर्मियों में गौरैया के लिए पानी रखें
- जूते के डिब्बे, प्लास्टिक की बड़ी बोतलों और मटकी को टांगे