देश का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया. संविधान में धर्म निरपेक्ष देश को चलाने के लिए हर संप्रदाय जाति और भाषा के लोगों को इसमें जोड़ा गया था. डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में बनी संविधान सभा में कानपुर के रत्नों ने भी अपना अमूल्य योगदान दिया है.

कानपुर (ब्यूरो)। देश का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। संविधान में धर्म निरपेक्ष देश को चलाने के लिए हर संप्रदाय, जाति और भाषा के लोगों को इसमें जोड़ा गया था। डॉ। भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में बनी संविधान सभा में कानपुर के रत्नों ने भी अपना अमूल्य योगदान दिया है। गणतंत्र दिवस के मौके पर उन रत्नों को भी याद करना जरूरी है। क्योंकि यही संविधान में शैक्षिक, धार्मिक, लोकतांत्रिक व हर तरह की आजादी देता है और हमारे अधिकारियों की रक्षा भी करता है। भारत का संविधान देश का सबसे बड़ा हस्तलिखित संविधान है। हमें गर्व है शहर के उन रत्नों पर जिनके सहयोग से गणराज्य की स्थापना के लिए बने संविधान को रचा गया। आइए आज हम आपको इस खबर में संविधान निर्माण में सहयोग करने वाले कानपुर के रत्नों से परिचित कराते हैैं। कानपुर इतिहास समिति के जनरल सेक्रेटरी अनूप शुक्ला बताते हैैं कि सभा में कानपुर के 10 लोगों ने योगदान दिया है।

संविधान की प्रस्तावना
हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये तथा इसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिये तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिये दृढ़ संकल्पित होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर, 1949 ई। को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

संविधान निर्माण में इनका रहा योगदान

बालकृष्ण शर्मा नवीन
बालकृष्ण शर्मा का जन्म तो 1897 में एमपी में हुआ था। लेकिन उनका मानना था कि उनका असली जन्म 1917 में कानपुर आने के बाद हुआ है। कानपुर आकर उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया और कलम को थामकर अंग्रेजों का विरोध किया। शहर में आकर इन्होंने क्राइस्ट चर्च कॉलेज से स्टडी की और गणेश शंकर विद्यार्थी के कंधे से कंधा मिलाकर चले। अंतिम पायदान में खड़े व्यक्ति की दिक्कतों को बखूूबी समझने के चलते इनको संविधान समिति में रखा गया था।

हरिहरनाथ शास्त्री
कानपुर के पहले सांसद रहे हरिहर नाथ शास्त्री ने संविधान समिति में रहकर निर्माण में योगदान दिया है। बलिया में जन्मे हरिहर नाथ शास्त्री को लाला लाजपत राय के लोक सेवक मंडल की एक्टिविटी को आगे बढ़ाने के लिए भेजा गया था। वह इसके बाद कानपुर के ही होकर रह गए। यह मजूदर विचारक थे। स्वतंत्रता संग्राम में भी इन्होंने योगदान दिया है। मजदूरी के हित में कानून बनाने में इन्होंने विधानसभा में कई प्रस्ताव दिए।

पदमपत सिंघानिया
जेके फैमिली के पदमपत सिंघानिया भी संविधान समिति में शामिल रहे हैैं। इनका जन्म 1905 में कानपुर में ही हुआ था। शहर के इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट मेें तो जेके घराने का योगदान सभी को पता है लेकिन आपको बताना चाहेंगे कि कि अंग्रेजों द्वारा इन्हें नाइटहुड की उपाधि दी गई थी, जिस वजह से इनको सर पदमपत कहा गया। संविधान निर्माण में उद्योगपतियों की बात को समझने के लिए इन्होंने कई प्रस्ताव दिए हैैं।

मौैलाना हसरत मोहानी
मौलाना हसरत मोहानी का जन्म तो 1874 में उन्नाव जिले में हुआ था लेकिन इनकी कर्मभूमि कानपुर रही है। बताया जाता है कि वह संविधान सभा के सदस्य बनने के बाद जब भी दिल्ली गए तब उन्होंने कभी भी गवर्नमेंट सर्विसेज को नहीं लिया, किसी मस्जिद मेें ठहर जाते और वापस लौट आते थे। यह फेमस तो स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और समाजसेवक थे। इनको सर्वहारा वर्ग की बात को संविधान सभा में रखने के लिए सभा में रखा गया था।

वेंंकटेश नारायण तिवारी
यह फ्रीडम फाइटर होने के साथ साथ राइटर भी थे। हिंदी से इतना प्रेम था कि महात्मा गांधी ने जब हिंदुस्तानी (हिंदी-उर्दू मिश्रित भाषा) का इस्तेमाल करने पर जोर दिया, तो बापू के भक्त होते हुए भी इस बात का जबरदस्त विरोध किया था.संविधान सभा में इन्होंने हिंदी को सब जगह अपनाने के संबंध में एक प्रस्ताव दिया।

ज्वाला प्रसाद श्रीवास्तव
1889 में बस्ती जिले में में जन्मे ज्वाला प्रसाद श्रीवास्तव को बिजनेस में सक्सेस कानपुर आकर मिली। साल 1934 में ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें नाइटहुड़ के अवार्ड से नवाजा। सर जेपी श्रीवास्तव को संविधान सभा में उद्योगों से संबंधित कानून बनाने में राय देने के लिए रखा गया था।

दयाल दास भगत
दयालदास भगत कुलीबाजार में रहते थे। 1921 मे राजनीति मे प्रवेश किया और सन 1937 मे उत्तर प्रदेश असेम्बली के लिए चुने गये। 1940 - 41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन मे भाग लिया और 1 वर्ष की कैद की सजा पायी। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन से सक्रिय रूप से सम्बद्ध होने के कारण 1 वर्ष के लिए नजरबंद किये गये थे। 1952 मे फिर उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य 137 घाटमपुर-भोगनीपुर (पूर्व) (आरक्षित ) से चुने गये। संविधान सभा के सदस्य और बाद मे लोकसभा के भी सदस्य निर्वाचित हुए।

भगवानदीन
भगवानदीन मेहतर को कानपुर शहर के लक्ष्मीपुरवा का निवासी बताया जाता है । भगवानदीन ने उत्तर प्रदेश की तीसरी विधानसभा में कानपुर अनुसूचित जाति सीट से वर्ष 1946 का चुनाव जीत कर विधायक बने। 1962 में भगवानदीन जी ने 108 बछरावा रायबरेली विधानसभा सीट से सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव में भाग लिया और वर्ष 1962 से 1967 तक विधायक रहे थे।

शिब्बनलाल सक्सेना
इनका जन्म 13 जुलाई 1906 को आगरा मे हुआ था। सात साल की उम्र मे माँ के निधन हो जाने पर कानपुर मे छोटे भाई होरीलाल व बहन प्रियंवदा को अपने साथ मामा दामोदरलाल सक्सेना के घर आ गये। कानपुर मे गवर्नमेन्ट स्कूल, क्राइस्टचर्च स्कूल और डीएवी कालेज में स्टडी की। विद्यार्थी जी के नेतृत्व मे 1919 मे जलियावाला हत्याकाण्ड के विरोध में 13 वर्षीय शिब्बनलाल ने हिस्सा लिया और तीन बेत की सजा प्राप्त की थी। 1937 मे पूर्वी उत्तर प्रदेश को कर्मभूमि बनाया और किसान आन्दोलनों की अगुवाई की। आपको पूर्वी उत्तर प्रदेश का लेनिन कहा गया।

प। विश्वम्भरदयाल त्रिपाठी
पंडित विश्वम्भरदयाल त्रिपाठी का जन्म 5 अक्टूबर 1899 को बांगरमऊ के पंडित गयाप्रसाद त्रिपाठी के घर पर हुआ था। स्टूडेंट लाइफ से स्वतंत्रता संघर्ष को उन्मुख हुए। 1920 मे पढ़ाई छोडक़र रसद बेगार आन्दोलन चलाया। सविनय अवज्ञा आन्दोलन से कांग्रेस मे सक्रिय हुए नमक सत्याग्रह मे छ: महीने को जेल गये फिर तो जेल जाने का सिलसिला कायम रहा। 1938 मे जमीदारी प्रथा के विरोध मे उन्नाव के एक लाख से अधिक किसानो के साथ विधान सभा के सामने प्रदर्शन किया , जिसकी आवाज इग्लैण्ड की संसद तक गूंजी।

Posted By: Inextlive